प्रेरणास्त्रोत : चीन का राजा

King of china

विश्व भर के मनीषियों ने यह माना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। मनुष्य यदि चाहे तो किसी भी आयु में ज्ञान प्राप्त कर सकता है। एक बार चीन राज्य के राजा फिड ने अपने मंत्री शिख्वाड़ से कहा, ‘‘मैं अब सत्तर वर्ष का हो गया हूँ। यद्यपि अध्ययन करने तथा पुस्तकें पढ़ने की लालसा मेरे मन में अब भी बनी हुई है, फिर भी मुझे लगता है कि अब इसके लिए मेरी उम्र नहीं रही।’’ मंत्री ने सुझाव दिया, ‘‘राजन्! आप दीपक क्यों नहीं बन जाते।’’ राजा गुस्से में भरकर बोला, ‘‘मैँ तो तुमसे गंभीरता से बात कर रहा हूँ और तुम मुझसे मजाक कर रहे हो?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं हैं राजन्’’ मंत्री ने शंतिपूर्वक उत्तर दिया।

‘‘मैं तो आपका मंत्री हूँ, भला आपसे मजाक करने की हिम्मत कैसे कर सकता हूँ? मैंने सुना है यदि कोई आदमी युवावस्था में अध्ययन में रुचि लेता है तो उसका भविष्य सुबह के सूरज के समान होता है, यदि वह प्रौढ़ावस्था में अध्ययन शुरू करता है तो उसका भविष्य दीपक की लौ के समान होता है। यद्यपि दीपक में अधिक प्रकाश नहीं होता, फिर भी उसका उजाला अंधेरे में भटकने से तो बेहतर ही होता है।’’ राजा को लगा की मंत्री ने उसकी शंका का उचित समाधान कर दिया है।

दु:ख को मित्र बना लो

एक दु:खी व्यक्ति को लग रहा था कि उसका दु:ख संसार में सबसे अधिक है। उसकी मुलाकात एक संत से हो गई। उसने उनसे अपने दु:ख के बारे में बात की। संत ने उसे सुझाव दिया कि अपने दु:ख को एक कागज पर लिखकर कल आना। वो अपना दु:ख लिखकर दूसरे दिन संत के पास पहुँचा। उसने अपने दु:ख का कागज, संत को दिया। संत के पास लोग अपने-अपने दु:खों के लिखे हुए कई कागज छोड़ गये थे। संत ने उस व्यक्ति से कहा, तुम अपना कागज रखकर कोई दूसरा कागज, जिसमें ‘‘दु:ख’’ कम हो, वो अपने साथ ले जाओ। उसने कई कागज पढ़ें पर उसे किसी का भी दु:ख समझ में नहीं आया।

उसने संत से अपना कागज वापस ले लिया। संत ने पूछा, क्यों क्या बात हुई? उस व्यक्ति ने कहा, दूसरे के दु:खों से मेरा दु:ख ही अच्छा है। संत ने मुस्कराते हुए कहा, कि अगर तुम दु:ख से मित्रता कर लो तो तुम सुखी हो जाओगे। उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। संत के उपाय से वह व्यक्ति सुखी हो गया।

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।