एक बार एक भालू और एक कठफोड़वे के बीच लड़ाई हो गई। बात इतनी बिगड़ गई कि उन्होंने युद्ध का ऐलान कर दिया। सारे जानवर भालू की तरफ थे और सारे पक्षी और कीड़े-मकोड़े कठफोड़वे की तरफ। कठफोड़वे ने अपने एक गुप्तचर मच्छर को जानवरों के पास भेजा, चुपके से यह पता लगाने के लिए कि वहाँ क्या चल रहा है। मच्छर छिपकर जानवरों की बातें सुनने लगा।
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‘मेरी लाल पूँछ तुम सबको दूर से ही नजर आ जाती है। इसीलिए मैं तुम्हें संकेत देने के लिए अपनी पूँछ का इस्तेमाल करूँगी। जब मैं अपनी पूँछ को हवा में सीधा खड़ा करूँ तो समझना कि रास्ता साफ है और आगे बढ़ते रहना। और अगर मैं पूँछ को हिलाऊँ तो समझ लेना कि खतरा है और हम पूरी तरह घिर चुके हैं। ऐसी स्थिति में तुम हथियार डाल देना और हार मान लेना।’ सब जानवरों ने एक साथ कहा, ‘ठीक है।’
मच्छर ये खबर लेकर वापस अपने साथियों के पास पहुँचा। उसने सबको लोमड़ी की योजना बताई। फिर सब कीड़ों और पक्षियों ने एक और योजना बनाई। अगले दिन सुबह युद्ध शुरू हुआ। जानवर चीखते-चिंघाड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे और कीड़े अपने पेखों से ज… ऽ… ऽ… ऽ… की तेज आवाज निकाल रहे थे। पक्षियों के शोर से पूरा आकाश गूँज रहा था। लोमड़ी सबसे आगे आई। सब जानवर उनकी पूँछ देख रहे थे। पूँछ खड़ी हुई थी और जानवर आगे बढ़ते जा रहे थे। जब लोमड़ी थोड़ी आगे निकल गई तो कठफोड़वे ने एक ततैया को उसके पास भेजा। ततैया ने लोमड़ी की पूँछ पर डंक मारना शुरू कर दिया। लोमड़ी को बहुत दर्द हो रहा था। लेकिन वह अपनी पूँछ को सीधा रखने की पूरी कोशिश कर रही थी। अपने साथियों को संकेत देने के लिए उसे ऐसा करना पड़ा।
आखिरकार ये दर्द उससे सहन नहीं हुआ और उसने पूँछ हिलाई, ततैया को भगाने के लिए। जानवरों ने दूर से देखा कि लोमड़ी पूँछ हिला रही है। उन्होंने सोचा कि खतरा है और हार मानकर वापिस लौट गए। लोमड़ी बेचारी दुश्मनों के बीच अकेली पड़ गई। चारों तरफ से दुश्मनों को आता देख वह भी घबराकर भागी। इस तरह अपनी बुद्धिमानी से छोटे-छोटे पक्षियों और कीड़ों ने बड़-बड़े जानवरों को हरा दिया।
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