पिछले दिनों राजस्थान की राजधानी जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहल पर दो दिनी ग्लोबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस आयोजन से इग्लैण्ड, जापान सहित दुनिया के 8 देशों के प्रतिनिधियों और देशभर के जाने माने गांधीवादी विचारकों और खादी से जुड़े विशेषज्ञों ने खादी के भविष्य को लेकर चिंतन मनन किया।
खादी केवल वस्त्र नहीं अपितु यह विचार, स्वाभिमान, अधिक लोगों को रोेजगार का माध्यम है। आज खादी से जुड़े उद्यमियों और विशेषज्ञों को तकनीक में बदलाव, बाजार की मांग के अनुसार उत्पाद तैयार करने और नित नए प्रयोगों की और ध्यान देना जरुरी हो गया है। आजादी के बाद संभवत: यह पहला मौका होगा जब खादी को लेकर केन्द्र या किसी राज्य सरकार द्वारा खादी को अंतरराष्ट्रीय पटल पर लाने के ठोस प्रयास करते हुए ग्लोबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर मंथन किया गया हो।
पिछले दिनों राजस्थान की राजधानी जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पहल पर दो दिनी ग्लोबल कॉन्फ्रेंस का आयोजन इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस आयोजन से इग्लैण्ड, जापान सहित दुनिया के 8 देशों के प्रतिनिधियों और देशभर के जाने माने गांधीवादी विचारकों और खादी से जुड़े विशेषज्ञों ने खादी के भविष्य को लेकर चिंतन मनन किया। खास बात यह रही कि यह आयोजन केवल और केवल सरकारी आयोजन ना होकर सीआईआई जैसी संस्था और खादी से जुड़े लोगों और फैशन डिजायनरों की सहभागिता से उपादेय बन गया।
आजादी के आंदोलन में स्वदेशी और स्वाभिमान का प्रतीक बनी खादी आज अधिक प्रासंगिक हो गई है तो खादी की ताकत को पहचान कर आज भी ग्राम स्वराज का सपना साकार हो सकता है। इको फ्रैण्डली होने से आज दुनिया के देशों में खादी की मांग बढ़ी है। खादी- मार्केटिंग, एक्सपोर्ट पोंटेंशिएल, लो कॉस्ट और प्रोडक्शन केपेसिटी सेशन में कहा गया कि खादी को फैशन से जोड़ना आज की आवश्यकता है तो खादी में इनोवेशन, डायवर्सिफिकेशन, मार्केट इंटेलिजेंस पर ध्यान रखना होगा। पर्यावरण प्रदूषण और पानी की कमी से जूझ रही देश दुनिया के सामने खादी एक सशक्त विकल्प है। इकोफ्रैण्डली होने के साथ ही अधिक लोगों को रोजगार, सभी मौसम में प्रकृति अनुकूल है खादी। खादी क्या और क्यों को चंद शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। खादी मतलब ऑनेस्टी, सिंसिएरिटी, स्वदेशी, जीरो कार्बन फूट प्रिन्ट, जल संरक्षण, इकोफैण्डली सहित ना जाने कितने ही प्रेरणास्पद बहुआयामी मायने रखती है।
आज खादी जन-जन की पहचान बनती जा रही है। खादी वस्त्रों पर 50 प्रतिशत छूट और इस तरह के ग्लोबल आयोजन के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राज्य सरकार की पहल इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि आज विदेशों में इकोफ्रैण्डली परिधानों की मांग हो रही है। यह अच्छी बात है कि खादी में नवाचार किए जा रहे हैं। आईटीईएन्स के सहयोग से उन्नत चरखे तैयार किए जा रहे हैं वहीं डिजाइनरों को इससे जोड़ा जा रहा है। क्योंकि आज यह उभर कर आ गया है कि पर्यावरण का बचाना है तो खादी को अपनाना ही होगा।
आज देश में 20 लाख गांठ कपास उत्पादन में से बड़ी मात्रा में बांग्लादेश को कपास का निर्यात होता है और वहां से अपेरल तैयार होकर दुनिया के देषों को निर्यात हो रहे हैं। हमारे पास कच्चा माल होते हुए भी हम सही मायने में वेल्यू एडिशन नहीं कर पा रहे। सम्मेलन में खादी मंत्री परसादी लाल मीणा और संयोजक गिरधारी सिंह बाफना की सक्रिय भागीदारी में जाने माने फैशन डिजायनरों रीतू बेरी, पूजा जैन, परेश लांबा, पूजा गुप्ता, अदिती जैन, रुमा देवी के साथ ही भारतीय शिल्प कला संस्थान की निदेशक डॉ. तूलिका गुप्ता ने फैशन की दुनिया में हो रहे प्रयोगों पर विस्तार से चर्चा की और एक स्वर में कहा कि आज खादी परिधानों को ग्लोबल फैशन शो में प्रमुखता से प्रस्तुत किया जा रहा है। खादी में रंग संयोजन, नए-नए प्रयोग होने से अब खादी पसंद बनती जा रही है। आयोजन समिति के संयोजक गिरधारी सिंह बाफना, राजस्थान के एसीएस उद्योग डॉ. सुबोध अग्रवाल ने कॉन्फ्रेंस को बहुआयामी और उपादेय बनाते हुए सभी संबंधित को मंथन का मंच उपलब्ध कराया। आयुक्त उद्योग मुक्तानंद अग्रवाल व अन्य अधिकारियों ने सक्रिया भूमिका निभाई जिसका परिणाम रहा कि आजादी के बाद यह पहला मौका है जब पहली बार खादी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तैयार किया गया।
एक समय था जब गांवों में घर-घर में चरखा होता था तो बच्चों को स्कूलों में तकली से कताई सिखाई जाती थी। हांलाकि आज वस्त्र की दुनिया में तेजी से बदलाव आया है पर इको फ्रैण्डली होने के कारण देश विदेश में खादी की तेजी से मांग बढ़ती जा रही है। कातिनों और बुनकरों को मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिलने से धीरे-धीरे गांवों में घरों से चरखे गायब हो गए तो आज की पीढ़ी ने धीरे धीरे इस काम से मुंह मोड़ लिया। खादी की प्रासंगिकता आज और अधिक हो गई है। आवश्यकता है तकनीक में सुधार की, बाजार की मांग के अनुसार खादी वस्त्रों को आकार देने की। आजादी के समय खादी वस्त्र ही नहीं होकर विचार के साथ ही स्वाभिमान का प्रतीक रही है। ऐसे में खादी के वैश्वीकरण के लिए इस क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी लोगों के साथ ही फैशन डिजाइनरों को नई तकनीक और एग्रेसिव मार्केटिंग के साथ आगे आना होगा। यह आयोजन सीधे स्वदेशी अपनाने का आग्रह है तो दूसरी और खादी से जुड़े लाखों कामगारों को रोजगार के बेहतर अवसर, बेहतर तकनीक और उत्साहित करने में सहायक रहा। इससे ग्रामीण स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिल सकेगा।
यह आयोजन इसलिए सामयिक हो जाता है कि बुनकरों की माली हालत दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है। पुश्तेनी धंधे को छोड़कर बेरोजगार होते जा रहे हैं। जबकि सरकार द्वारा बुनकरों के कल्याण की अनेक योजनाएं चलाई जा रही है। एसीएस उद्योग डॉ. सुबोध अग्रवाल का मानना है कि ऐसे में खादी को अंतरराष्ट्रीय पटल पर बाजार दिलाने के लिए जयपुर में आयोजित ग्लोबल कॉन्फ्रेंस अपना अलग मायना रखती है। आयोजन को इसलिए अहम माना जा सकता है कि विचारक, इस क्षे़त्र से जुड़े विशेषज्ञ और ब्यूरोक्रेसी की प्रतिवद्धता की झलक देखने को मिली। खादी में नवचार और बाजार मिलने से इन ग्रामोद्योगों से जुड़े लोगों की आय में इजाफा होगा। ऐसे में अब बारी आती है खादी से जुड़े कामगरों और इससे जुड़े अधिकारियों व कार्मिकों की। एक और हमें प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए खादी उत्पादों को जनता की मांग के अनुकूल बनाना होगा, फैशनेवल व आकर्षक बनाने का शोध कार्य जारी रखना होगा वहीं विपणन कला का उपयोग भी करना होगा। उत्पाद की गुणवत्ता तो पहली शर्त है ही। यदि ऐसा होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब खादी अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहचान बन जाएगी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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