केजरीवाल के सामने पिछली जीत का इतिहास दोहराने की चुनौती

Delhi Assembly Elections

दिल्ली विधानसभा चुनाव: केजरीवाल का जादू इस बार चलेगा या नहीं इस पर पूरे देश की निगाहें

(Delhi Assembly Elections 2020)

  • राजनीतिक पंडितों का मानना- पिछला करिश्मा दोहराना मुश्किल

  • दिल्ली में आठ फरवरी को मतदान और 11 फरवरी को मतगणना होगी

नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। अगले माह होने वाले (Delhi Assembly Elections 2020) दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी(आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समक्ष अपना सबसे मजबूत किला बचाने की प्रबल चुनौती है। पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल का जादू इस बार चलेगा या नहीं इस पर पूरे देश की निगाहें हैं। केजरीवाल अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान विशेषकर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों को गिनाते हुए इस बार भी पूरे आत्मविश्वास में हैं जबकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पिछला करिश्मा दोहराना मुश्किल नजर आ रहा है।

जब भाजपा तीन पर सिमटी थी

वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही ‘आप’ का गठन हुआ था और उस चुनाव में दिल्ली में पहली बार त्रिकोणीय संघर्ष हुआ जिसमें 15 वर्ष से सत्ता पर काबिज कांग्रेस 70 में से केवल आठ सीटें जीत पाई जबकि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) सरकार बनाने से केवल चार कदम दूर अर्थात 32 सीटों पर अटक गयी। ‘आप’ को 28 सीटें मिली और शेष दो अन्य के खाते में रहीं। भाजपा को सत्ता से दूर रखने के प्रयास में कांग्रेस ने ‘आप’ को समर्थन दिया और केजरीवाल ने सरकार बनाई।

  • लोकपाल को लेकर दोनों पार्टियों के बीच ठन गई और केजरीवाल ने 49 दिन पुरानी सरकार से इस्तीफा दे दिया ।
  • इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा ।
  •  फरवरी 2015 में ‘आप’ने सभी राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 70 में से 67 सीटें जीतीं।
  • भाजपा तीन पर सिमट गई जबकि कांग्रेस की झोली पूरी तरह खाली रह गई ।

यह चुनाव का दारोमदार पूरी तरह से केजरीवाल के कंधों पर

  • दिल्ली में 2015 ‘आप’ को मिली भारी जीत के समय केजरीवाल के साथ कई दिग्गज नेता थे
  • किंतु सत्ता में आने के बाद वे एक एक करके किनारे कर दिए गए ।
  • इनमें योगेंद्र यादव , प्रशांत भूषण और आनंद कुमार प्रमुख थे।
  • पार्टी के एक अन्य प्रमुख चेहरा कुमार विश्वास पार्टी में तो हैं किंतु एक तरह से बनवास ही भुगत रहे हैं ।

‘आप’ ने दिल्ली विधान सभा चुनाव और 2014-2019 के आम चुनावों के अलावा इस दौरान विभिन्न राज्य विधानसभा चुनावों में भी हिस्सा लिया। पंजाब विधानसभा को छोड़ दिया जाए तो उसकी झोली खाली ही रही बल्कि उसके बड़ी संख्या में उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हुई । पिछले आम चुनाव में पंजाब में चार सीटें जीतने वाली आप इस बार एक पर ही सिमट गई। केजरीवाल की पार्टी में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को छोड़ दिया जाए तो संभवत: ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी पूरी दिल्ली पर मजबूत पकड़ नजर आती हो ।

  • इस विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को जीत दिलाने का दारोमदार पूरी तरह से केजरीवाल के कंधों पर ही है ।

21 वर्ष से भाजपा सत्ता से बाहर (Delhi Assembly Elections 2020)

भाजपा 21 वर्ष से दिल्ली की सत्ता से बाहर है और वह इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि तथाहाल ही में 1731 कच्ची कालोनियों को नियमित करने के केंद्र सरकार के फैसले को लेकर अपना मजबूत दावा ठोंकने की बात कर रही है। पार्टी का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में तीनों नगर निगमों के चुनाव में राजधानी की जनता ने ‘आप’ को नकार दिया ।

  •  इस बार लोकसभा चुनाव में उसकी स्थिति पिछले आम चुनाव से भी बदतर हुई।
  • पार्टी कांग्रेस की सक्रियता का लाभ मिलने की उम्मीद कर रही है ।

कांग्रेस को उम्मीद इस बार बनेगी उसकी सरकार

कांग्रेस ने हाल ही में अपने पुराने नेता सुभाष चोपड़ा को कमान सौंपी है और वह सभी पुराने नेताओं को एकजुट कर पूरी सक्रियता से जुटे हैं और पार्टी का घोषणापत्र आने से पहले ही सत्ता में आने पर लोक लुभावने वादे करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में अच्छा इजाफा होता है तो केजरीवाल के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।  पिछले साल मई में हुए आम चुनाव भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटें जीतीं थी  और कांग्रेस पांच में दूसरे नंबर पर रही थी ।

  • वर्ष 2014 के आम चुनाव में सभी सातों सीटों पर दूसरे नंबर पर रहने वाली ‘आप’ इस बार केवल दो पर ही दूसरे स्थान पर रही ।
  • पिछले साल हुए आम चुनाव में कुल पड़े वोटों में से आधे से अधिक 56.50 प्रतिशत भाजपा की झोली में पड़े
  • जबकि ‘आप’ को केवल 18.10 प्रतिशत ही मत मिले।
  • आम चुनाव में भाजपा 70 में से 65 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी, शेष पांच पर कांग्रेस आगे रही थी।

 

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