केजरी को क्यों भाने लगी कांग्रेस ?

Kejriwal

चुनाव नजदीक आते ही बदली दिल्ली की राजनीतिक हवा

भारतीय राजनीति में अचनाक एक नायक फिल्म की तरह आम आदमी की एंट्री होती है। वो किसी के आंदोलन का हिस्सा (Kejriwal) बनकर देश को बदलने की हुंकार भरता है लेकिन जब लगा कि इससे भी कुछ नही हो सकता तो वह अपनी पार्टी बना लेता है। पोस्टरों पर आम चेहरे के साथ वो बातें लिखी जा रही थी जो सबके दिल दिमाग पर छा गई थी। लोगों को वादों के साथ विश्वास कराया जाता है जो इतिहास में कोई नहीं दिला पाया था। अंत पार्टी बनाकर वो कर दिखाया जिससे भारतीय राजनिती में भूचाल आ गया था। देश की राजधानी दिल्ली में 70 विधानसभा में से रिकार्डतोड़ 67 सीटों जीतकर इतिहास लिख ड़ाला था।

सभी पार्टियों को इतना नीचा दिखाया और इतनी व ऐसी पोस्टर बाजी की जिससे जनता सभी पार्टियों से नफरत करने लगी (Kejriwal) थी जिनमें से प्रमुख थी कांग्रेस। यह सब करने वाले अरविंद केजरीवाल थे जो अब आम आदमी से खास आदमी बनकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। यह वो ही केजरीवाल है जिन्होनें दिल्ली जीतने के बाद देश इस तरह बदलने की बात कहीं थी जैसे अब कोई बहुत बड़ा चमत्कार होने वाला है लेकिन समय बीतते यह जनाब भी राजनीति के उस रंग में रंग चुके हैं जिसमें हरके को आना पड़ता है। अब आलम यह है कि जिस पार्टी के सीने पर पैर रखकर या यूं कहें कि उस पार्टी के प्रति दिल्ली की जनता में इतनी नफरत पैदा करा दी थी जनता ने उस पार्टी को इस कदर नकारा कि उसके ही गढ़ में उसकी बौनी तक भी नही हुई थी लेकिन आज उस पार्टी से गठबंधन की भीख मांगी जा रही है।

यह जनाब तो अब कांग्रेस हराने की बात भी नहीं करते क्योंकि पूरी दिल्ली में इनके पोस्टरों पर लिखा है कि भाजपा को हराना है तो आम आदमी पार्टी को वोट दें। कांग्रेस गठबंधन की बात के बाद अपने वजूद को बचाने के लिए केजरीवाल साहब की इस घटना के बाद जनता अब बेहद गंभीर सोच में पड़ चुकी। हम ऐसा नही कर रहे कि गठबंधन नही होते लेकिन कुछ गठबंधनों जनता पचा नही पाती जिसमें एक अन्य उदाहरण उत्तर प्रदेश के परिवेश में भी देखने को मिला। सपा बसपा के इस गठबंधन के बाद भी प्रदेश की जनता कुछ समझ नही पा रही क्योंकि अब ऐसे गठबधन के मैनिफेस्टों में राज्यों की तरक्की नही सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को हराना हैं।

बहराहल, केजरीवाल के गठबंधन के ब्यान के बाद दिल्लीवासियों को बहुत आघात पहुंचा है। लोग एक बार फिर अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं क्योंकि पिछले कई बारी से दिल्ली में कांग्रेस सरकार रही थी और केजरीवाल ने यह महसूस करवा दिया था कि जनता कांग्रेस से बेहद परेशान है। शायद कांग्रेस की कुछ नीतियों से लोग खुश नही थे तभी केजरीवाल ने चमत्कार किया। यहां चमत्कार शब्द का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जब आम आदमी पार्टी की सरकार तब बनी थी जब मोदी की पूरे देश में लहर थी। केजरीवाल के कई मुख्य सिपलेसाहरों ने उन पर तानाशाही व भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड दी। कपिल मिश्रा ने तो दिल्ली सरकार पर 1700 करोड़ रुपये के गबन का आरोप लगाया व वहीं सामाजिक कार्यकर्ता व रिसर्चर विकास झा ने कहा था कि कैग रिपोर्ट में खुलासे के बाद केजरीवाल सरकार ने खुद को बचाने के लिए संबंधित अधिकारियों पर आरोप मढ़ दिया था। इसके अलावा केजरीवाल अपनी एक अन्य अहम अदा के लिए पहचाने जाने लगे हैं।

पहले तो बिना सबूत के किसी भी पार्टी व नेता पर बडे बड़े आरोप लगा देते हैं व कोर्ट में केस जाने के बाद माफी मांग लेते हैं। ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है। केजरीवाल की इस तरह की घटनाओं से अब यह बात तय हो जाती है आने वाले कई दशकों तक किसी नई पार्टी का उदय नही होगा क्योंकि जिस स्तर पर आप को लोगों ने सिर पर बिठाकर कमान दी थी वह पूर्णत उस कसौटी पर खरे नही उतरे। अब मुददे की बात यह है कि क्या केजरीवाल को बीजेपी का इतना डर सता रहा है कि वो कांग्रेस तक से गठबंधन के लिए पर उतारु हो गए या फिर अन्य दलों की तरह विपक्ष को मजबूत करना चाहते हैं।

दोनों में से मामला चाहे कुछ भी हो लेकिन यह बात आम से लेकर खास को आश्चर्यचकित कर रही है कि जिस पार्टी ने दिल्ली की लगभग पूरी दिल्ली पर विजय प्राप्त की हो वो ऐसा व्यवहार आखिर क्यों कर रही है व साथ में गठबंधन भी उससे करना चाहती जिसको जड़ से उठाकर फेंक दिया था। राजनीतिक दलों की एक बात समझ नही आती कि वो जनता को इतना मूर्ख क्यों समझते है। क्या उनको लगता है कि उनकी हर झूठी बात को हम बार बार मान लेगें। ये सब बेहद हैरान व परेशान करने वाली घटना है। लेकिन कई बार हमें यह भी महसूस होता है कि नेता हमें बेवकूफ इसलिए भी बना देते हैं क्योंकि इन्हें जनता की कमजोरी या आदतों का रहस्य पता चल चुका है।

इस समय देशभर में अदभूत तरह की राजनीति चल रही है। लगातार गठबंधन की खबरों से यह तय हो रहा है कि कब,कौन किसके पाले में चला जाए कहा नही जा सकता। जनता के मंथन व पार्टियों के आत्मचिंतन से देश का भविष्य तय होता था लेकिन अब सब हास्यप्रद सा लगने लगा। अब किसी को भी चुनने से पहले हमें स्वयं में ठहरावट की जरुरत है क्योंकि हरेक पार्टी अपने को ऐसे प्रस्तुत करती है कि उसके सिवाय देश का भला कोई और कर ही नही सकता।
लेखक: – योगेश कुमार सोनी

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