बिहार व उत्तरप्रदेश के शैल्टर होम में बच्चियों के साथ दुराचार की घटनाएं रूह कंपा देने वाली हैं। देश में एनजीओ के नाम पर सिर्फ सरकारी पैसों का गबन ही नहीं हो रहा बल्कि नैतिकता की सीमाएं भी लांघी जा रही हैं। एनजीओ को स्वीकृति व अनुदान राशि किस तरह मिलती हैं यह भी जाहिर हो गया है। यह सिस्टम बन गया है- सरकारी पैसे का हड़प करो व ऐश उड़ाओ। हैरानी की बात है कि सरकारी पैसे से चलने वाले एनजीओ अपराध का अड्डा बन गए हैं। जिन अध्यापकों व राजनेताओं ने समाज से बुराइयों को रोकना था वही अधिकारी व राजनेता बच्चियों का शोषण कर रहे हैं। सरकारी पैसे के साथ एनजीओ संचालकों ने राजनीति में किस तरह अपनी पैंठ बना ली है यह बात किसी से छुपी नहीं है। समाज सेवा के नाम पर राजनीति से हर तरह लाभ प्राप्त करने की कोशिश की गई। बिहार की जिस महिला मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा उसके पति के एनजीओ संचालक के साथ नजदीकी संबंध थे। सिस्टम की विडम्बना यह है कि जहां कोई गुनाह नहीं होता वहां कानून का राग गाया जाता है। जहां सरकारी पैसों के बल पर राजनीतिक पहुंच के साथ बच्चों पर कहर ढ़ाया जाता है वहां दशकों तक कोई जांच-पड़ताल नहीं की जाती। कहीं अपने घर पर अपने ही बच्चों पर जुल्म ढहाते हैं व कहीं संचालक अधिकारियों व राजनेताओं को खुश करने के लिए मासूमों को राक्षस प्रवत्ति व्यक्तियों के हवाले कर अपने काम निकलवाते हैं। केन्द्र व राज्य स्तर पर बच्चों व महिलाआें की भलाई के लिए कई विभाग हैं जिनमें सत्ताधारी पार्टियों अपने चहेते नेताओं को खुश करने के लिए चेयरमैन का पद देना कभी नहीं भूलती। कभी भी यह पद खाली नहीं होते, अधीनस्थ स्टाफ बेशक कम हो जाए। लेकिन इन चेयरमैन लोगों ने अपने पद की जिम्मेवारी को जरा सा भी सही तरह से निभाया होता तब इनके विभाग के संरक्षण में पल रहे दर्जनों बच्चे जुल्मों का शिकार न होते। ’बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा भी इस स्थिति में गुम होता हुआ नजर आ रहा है। इस माहौल में भलाई नहीं हो रही व भलाई के ड्रामे करने वाले देश के साथ धोखा कर रहे हैं। उक्त मामलों के आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर उनको सख्त सजा देने की जरूरत है। आरोपियों को बचाने वाले भी कभी बख्शे न जाएं।
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