हिम्मत के साथ मन से लड़ते रहो

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सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान को चाहे दुनिया का कितना भी तजुर्बा आ जाए, पर वह मालिक की तरफ से तब तक नन्हा बच्चा ही रहता है, जब तक इन्सान सत्संग नहीं सुनता, अमल नहीं करता।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान अपने मन-जालिम की वजह से दिखता कुछ और है, करता कुछ और है। ऐसे में इन्सान कभी सुख हासिल नहीं कर पाता। फिर वो जीव भाग्यशाली होते हैं जो मन से लड़ते हुए सत्संग में आते हैं।

जीवों के कोई अच्छे संस्कार होते हैं कि जीव सत्संग में आ जाता है और मन की नहीं मानता। हालांकि मन तरह-तरह के विचार देता है, लेकिन जीव विचारों पर अमल नहीं करता तो वह विचारों के फल से बच जाता है। आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को अपने बुरे विचारों को काबू करना चाहिए।

अगर इन्सान को बुरे विचार आते हैं तो उसी समय सुमिरन कर लो। फिर धीरे-धीरे ये विचार आने बंद हो जाएंगे, लेकिन मन ऐसा जादूगर योद्धा है, जो थकता नहीं है। इसलिए ऐसा नहीं है कि आपके पांच मिनट के सुमिरन से मन काबू आ जाएगा।

अत: आप भी हिम्मत वाले बन जाओ कि जब मन शुरु होगा तो मैं भी शुरु हो जाऊंगा। तो यकीन मानिए कि बुरे विचारों का लेश मात्र भी असर आपकी भक्ति पर या आपकी जिंदगी पर नहीं आएगा।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को अपने विचारों को सोच-सोचकर बीमार नहीं होना चाहिए कि अब तो मुझे खुशी नहीं, रहमत नहीं है। अब तो मैं दुखी हो जाऊंगा। अगर आप ऐसा करते रहोगे तो ये मन की चालें हैं।

इसलिए मन की कभी न सुनो और मन से लड़ते रहो। सुमिरन करने से मन कंट्रोल में आ जाएगा और एक दिन आत्मा की जीत जरूर होगी। वो दिन आपके लिए सबसे सुखों भरा होगा, खुशियां लेकर आएगा। सिर्फ आपके ही नहीं बल्कि परिवारों के चेहरे भी खुशियों से लबरेज हो जाएंगे।

 

 

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