मध्य एशिया में कजाखस्तान का साथ जरूरी

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मध्य एशियाई देश कजाखस्तान से रिश्तों को नई ऊचाईयां प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कजाखस्तान की यात्रा की। इससे पहले प्रधानमंत्री जुलाई 2015 में मध्य एशिया के चार देशों की यात्रा के दौरान मोदी कजाखस्तान गए थे। इस बार शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक के बहाने प्रधानमंत्री कजाखस्तान गए। कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में 8-9 जून को संपन्न हुए एससीओ के शिखर सम्मेलन में भारत को इस क्षेत्रीय संगठन में पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।

कजाखस्तान मध्य एशिया का महवपूर्ण देश है और पारंपरिक रूप से भारत के साथ उसके रिश्ते बहुत अच्छे हैं। आज से अढ़ाई दशक पूर्व जब कजाखस्तान ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी, तब भारत ने रूस की नाराजगी की चिंता किए बिना कजाखस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन किया था। दूसरी और कजाख राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने भी भारत की भावना का सम्मान करते हुए वर्ष 1992 में राष्ट्रमंडल देशों को छोड़ कर भारत की यात्रा की। पिछले दो दशकों के दौरान दोनों देशों के आपसी संपर्क द्वीपक्षीय संबंधों से आगे बढ़ते हुए रणनीतिक भागदारी तक पहुंचे हंै।

भारत और कजाखस्तान दोनों ही क्षेत्रीय शांति, कनेक्टिविटी, समन्वय, यूएनओ सुरक्षा परिषद में सुधार और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जैसे जरूरी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर समान राय रखते हैं। वतर्मान में दोनों देश व्यापार और अर्थव्यवस्था में सहयोग की नीति पर काम कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच लगभग 426 अमेरिकी डॉलर का सालाना व्यापार है, जोकि शेष मध्य एशियाई देशों के कुल व्यापार के आधे से अधिक है। दोनों ही इस बात को समझते हैं कि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अपने-अपने हितों को बनाये रखने के लिए आपसी सहयोग व समन्वय जरूरी है।

भारत अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मध्य एशियाई देशों के अकूत प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना करना चाहता है, इसके लिए कजाखस्तान भारत का महत्वपूर्ण सहयोगी साबित हो सकता है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जुलाई 2015 में जब कजाखस्तान की यात्रा पर गए थे, उस वक्त दोनों देशों के बीच 5 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए रक्षा समझौता और यूरेनियम आपूर्ति का समझौता भी शामिल है। रक्षा सहयोग के क्षेत्र में हुए करार से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का दायरा और व्यापक हो गया है। इस समझौते के तहत दोनों देश सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षण, सैन्य तकनीकी सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सहयोग व विशेष सुरक्षा बलों के अदला-बदली जैसी योजनाओं पर मिलकर काम कर सकेंगे।

रणनीतिक दृष्टि से भी कजाखस्तान भारत के लिए खासा महत्वपूर्ण हैं। रूस और अमेरिका के अलावा चीन की भी इस क्षेत्र में दिलचस्पी बढ़ी है। अब शंघाई सहयोग संघ का पूर्णकालिक सदस्य बन जाने के बाद भारत अपना कद और अपनी भूमिका इस क्षेत्र में बढ़ाना चाहेगा।

भारत उभरती हुई अर्थव्यवस्था और दक्षिण एशिया का मजबूत देश है। कजाखस्तान भी अपनी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए भारत के सहयोग का इच्छुक है। वह चाहता है कि भारत उसके ढांचागत विकास में सहयोग करे। लेकिन तथ्य यह भी कि वह भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भी संपर्क साध रहा है। ऐसी स्थिति में भारत को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी होगी। ऐसा न हो की कजाखस्तान भारत की कीमत पर पाकिस्तान के साथ संबंधों को विकसित करने लगे। ऐसा होता है तो मध्य एशिया में भारत के प्रयासों को बड़ा झटका होगा।

कोई संदेह नहीं की भारत और कजाखस्तान के बीच दीर्घअवधि के रणनीतिक और व्यापारिक संबंध है। फिर भी अभी कुछ क्षेत्र ऐसे है जिसमें सहयोग कर आपसी रिश्तों को और मजबूत किया जा सकता है। उदाहरण के लिए खनिज क्षेत्र को ले सकते हैं। दोनों देशों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए। कुल मिलाकर यह तय है कि दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के विकास का दारोमदार काफी हद तक भारत-कजाखस्तान के रिश्तों पर निर्भर करता है।

– एनके सोमानी

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