अंतरिक्ष में बढ़ता उपग्रहों का कबाड़

OneWeb Satellite

पैमनुष्य को सुरुचिपूर्ण जीवन देने के लिए उन्नत विज्ञान की चाह में हरेक देश इस कोशिश में है कि उसके उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित हो जाएं। इनकी बढ़ती संख्या और बेकार हो चुके उपग्रह अंतरिक्ष में कबाड़ का सबब भी बन रहे हैं। इन्हें जब प्रक्षेपास्त्र से नष्ट किया जाता है, तो ये लाखों टुकड़ों में बदलकर तेज गति से अंतरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। भारत ने हाल ही में उपग्रह भेदी मिसाइल (ए-सैट) से अपने ही एक उपग्रह को नष्ट करके अंतरिक्ष में मिसाइल से निशाना साधने की एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल की है। अमेरिका के पेंटागन स्थित रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता डेविड ईस्टबर्न ने कहा है कि अमेरिका इस परीक्षण की वजह से उत्पन्न हुए मलबे के 250-270 टुकड़ों पर निगरानी रखे हुए हैं।

हालांकि इससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) को कोई खतरा नहीं है। इस खबर से यह विवाद भी छिड़ गया है कि अमेरिका भारत की उपग्रह भेदी मिसाइल के सिलसिले में पहले से ही जासूसी में लगा था और उसे पता था कि यह परीक्षण कब किया जाएगा। इस सवाल की सफाई में ईस्टबर्न ने कहा है कि ह्यकोई भी अमेरिकी तंत्र भारत की जासूसी नहीं कर रहा था, बल्कि अमेरिका भारत के साथ अपनी साझेदारी बढ़ा रहा है, जिससे आर्थिक संबंधों को मजबूती मिले। बहरहाल गुप्तचरी एक अलग मसला है, लेकिन अंतरिक्ष में कबाड़ के रूप में जो 17 करोड़ टुकड़े गतिशील हैं, वे किसी भी वक्त सक्रिय उपग्रह से टकराकर उन्हें नष्ट कर सकते हैं। अंतरिक्ष स्टेशन को भी इस कबाड़ से खतरा है। ऐसा होने पर यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। ध्यान रहे अंतरिक्ष कबाड़ से बचने के लिए ही आईएसएस को अपनी स्थिति नियमित रूप से बदलनी पड़ती है।

अंतरिक्ष विशेषज्ञों के अनुसार पुराने रॉकेट और बेकार हो चुके उपग्रहों का मलबा बहुत तेज गति से पृथ्वी की कक्षा में घूमता है। यह जल्दी ही वातावरण की ऊपरी सतह को बेकार कर सकता है। वर्तमान में पृथ्वी की इस कक्षा में 3,000 से भी ज्यादा उपग्रह चलायमान हैं। यह मानव समाज के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि इनके जरिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सतत् जानकारी तो ली ही जा रही है, संचार व्यवस्था भी इन्हीं उपग्रहों से संचालित होती है। इनसे रक्षा के क्षेत्र में निगरानी और जासूसी भी की जाती है। इस कक्षा में मौजूद उपग्रहों की लागत करीब 33 लाख करोड़ रुपए हैं। इनसे लगभग 20,000 करोड़ आस्ट्रेलाई डॉलर एक वर्ष में कमाए जाते हैं।

भारत ने अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने की प्रौद्योगिकी हासिल की है, तब से वह भी इस व्यापार से करोड़ों डॉलर कमा रहा हैं। भारत ने एक साथ 104 उपग्रह स्थापित करने का कीतीर्मान भी बनाया है और अब भारत उपग्रह भेदी मिसाइल का निर्माण व प्रयोग कर अमेरिका, रूस और चीन के बाद इस क्षेत्र में चैथा देश बन गया है। आस्ट्रेलिया में अंतरिक्ष पर्यावरण शोध केंद्र के सीईओ बेन ग्रीन का कहना है कि अंतरिक्ष में इतना मलबा इकट्ठा हो गया है कि परस्पर टकरा रहा हैं, जिस कारण यह कबाड़ एक सेंटिमीटर तक के टुकड़ों में परिवार्तित होता जा रहा है। इनका आकार एक सॉफ्टबॉल से भी बड़ा है। नतीजतन यह आशंका बन रही है कि यह खतरनाक अंतरिक्ष कबाड़ चक्कर लगा रहे सभी उपग्रहों को कहीं नष्ट न कर दे ? अंतरिक्ष कबाड़ के 17 करोड़ टुकड़ों में से फिलहाल सिर्फ 22,000 टुकड़ों को ही सूचीबद्ध किया जा सका है।

अमेरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक मलबे के पांच लाख से भी ज्यादा टुकड़े या स्पेस जंक पृथ्वी की कक्षा में 17,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहे हैं। यह मलबा इतना शक्तिशाली है कि इसका एक छोटा सा टुकड़ा भी किसी उपग्रह या अंतरिक्ष यान को क्षतिग्रस्त करने के लिए सक्षम है। यहां तक कि सौ अरब डॉलर की लगत से बने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को भी इन टुकड़ों से बचकर निकलना होता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अंतरिक्ष में मलबा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है और इसे जल्दी ही नहीं हटाया गया तो इससे भविष्य में अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह नष्ट हो सकते हैं।

यदि ऐसा हुआ तो अंतरिक्ष अभियानों पर भी प्रतिबंध लगाना जरूरी हो जाएगा। दूसरी तरफ अमेरिकी खगोल विज्ञानियों ने एक सर्वेक्षण करके बताया है कि अंतरिक्ष से प्रत्येक वर्ष 1000 टन कबाड़ धरती पर गिरता है। इसकी ठीक से पहचान नहीं हो पा रही है। अंतरिक्ष का यह कबाड़ प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव निर्मित भी। बेकार हो चुके अंतरिक्ष यान, नष्ट किए गए उपग्रह और इनके कलपुर्जे ही वे मानव निर्मित वस्तुएं हैं, जो कचरे के रूप में अंतरिक्ष में मंडरा रही हैं और फिर एकाएक अंतरिक्ष के गुरुत्वीय बल से छिटक कर धरती के चुंबकीय प्रभाव में आ जाती हैं।

अंतरिक्ष में मलबे का ढेर लगने से छोटी-मोटी घटनाओं से परे कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं, जिन्होंने अंतरिक्ष में कचरे का अंबार लगा दिया है। 2007 में चीन ने एक साथ बड़ी मात्रा में अपने उपग्रह भेद कर अंतरिक्ष में कबाड़ एकत्रित कर दिया था। चीन ने इसी साल उपग्रह भेदी मिसाइल बनाकर उसका परीक्षण करने के लिए अपने ही बेकार हो चुके उपग्रह नष्ट किए थे। व्यर्थ हो चुका मौसम की जानकारी देने वाले एक उपग्रह के तो 1.5 लाख टुकड़े कर दिए थे। इस कबाड़ का प्रत्येक टुकड़ा एक सेंटीमीटर के बराबर है। इसके बाद 1996 में एक पुराने फ्रांसीसी उपग्रह की अपने ही देश के एक पुराने रॉकेट के अवशेषों से टक्कर हो गई।

इससे भी बड़ी मात्रा में कबाड़ पैदा हुआ था। 10 फरवरी 2009 को एक खराब रूसी उपग्रह की अमेरिका के ईरीडियम व्यापारिक सक्रिय उपग्रह से टक्कर हो गई। इस कारण 2,000 टुकड़ों का नया कचरा पैदा हुआ। यह कचरा भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को भी प्रभावित करने की स्थिति में आ गया है। यह बाधा तब देखने में आई थी, जब भारत ने स्वदेशी पीएसएलवीसी-21 रॉकेट के प्रक्षेपण मिशन में दो मिनट की देरी हुई। श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जब पीएसएलवीसी-21 की 2 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष की ओर रवानगी डाली तो 51 घंटे की उल्टी गिनती को दो मिनट के लिए बढ़ाना पड़ा था। 9 सितंबर 2017 को 9 बजकर 51 मिनट पर यह प्रक्षेपण किया जाना था। लेकिन अंतरिक्ष के मलबे ये टक्कर बचाने के लिए इस प्रक्षेपण को दो मिनट रोकना पड़ा। यह रॉकेट अपने साथ फ्रांस के उपग्रह एसपीओटी-6 और जापान के अंतरिक्ष यान प्राईटेरेस को लादकर रवाना हुआ था। गोया, निर्धारित समय से 18 मिनट बाद इन उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करने में सफलता मिल पाई थीं।

अब अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि अंतरिक्ष से जो कबाड़ धरती की ओर गिरते हैं, उन्हें फिर से वायुमंडल में वापिस पहुंचा दिया जाए। इस नाते स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने ह्यक्लीन स्पेस वनह्य नामक उपग्रह के निर्माण की घोषणा की है। इसका निर्माण स्विस स्पेस सेंटर द्वारा किया जा रहा है। इस पर करीब 1.1 करोड़ डॉलर खर्च आएगा। इसे तीन से लेकर 5 साल के भीतर तैयार करके प्रयोग किया जाएगा। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि 10 सेंटीमीटर से बड़े आकार के 16,000 और इससे छोटे टुकड़े लाखों की संख्या में पृथ्वी के आस-पास चक्कर लगा रहे हैं। इनकी गति कई 100 किलोमीटर प्रति सेकेंड है। इस सफाई उपग्रह का आविष्कार होने के बाद सबसे पहले दो स्विस उपग्रहों को पकड़ने के लिए भेजा जाएगा। ये उपग्रह 2009 और 2010 में अंतरिक्ष में छोड़े गए थे, जो अब निष्क्रिय अवस्था में पड़े हैं, बहरहाल अंतरिक्ष में बढ़ता कबाड़ धरती के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है।

 

 

 

 

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