Ber ki Kheti: बेर की खेती

Jujube Cultivation
Ber ki Kheti: बेर की खेती

Ber ki Kheti: आमतौर पर शुष्क इलाकों में की जाती है। भारत में भी बेर की खेती (Jujube cultivation) विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है। इसकी खेती मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राज्यस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तामिलनाडू और आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है। बेर हमारे लिए एक बहुपयोगी और पोषक फल है। इसमें विटामिन सी तथा ए प्रचुर मात्र में होते हैं। विटामिनों के अलावा बेर में कैल्शियम, फॉस्फरस तथा आयरन आदि खनिज लवण भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मौसमी फलों में सभी वर्गों में यह बहुत लोकप्रिय है। पोषकता के आधार पर इसे सेब फल के अनुरूप ही पाया जाता है। इस सप्ताहिक पृष्ठ में हम जानेंगे की बेर की खेती कैसे करें, उसके लिए उपयुक्त जलवायु, किस्में, रोग रोकथाम, पैदावार आदि के बारे में

भूमि का चयन | Jujube cultivation

बेर की खेती के लिए दोमट मिटटी जो हलकी क्षारीय हो सर्वोत्तम होती है। परन्तु अच्छे जल निकास वाली विभिन्न प्रकार कि रेतीली से काली मिटटी में भी इसको सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। बेर की खेती बंजर और बारानी इलाकों में की जा सकती है। इसकी खेती लवण वाली, खारी और दलदली मिट्टी में भी की जा सकती है। अधिक पाला व अधिक गर्मी सहन करने कि इसमें असीमित क्षमता होती है। अधिक नमी वाले स्थानों में इसकी बागवानी अच्छी नहीं होती।

उमरान

इस किस्म के फल अंडाकार आकार के चमकदार होते है। इसके फल का रंग सुनहरी पीला होता है, जो पूरी तरह पकने के बाद चॉकलेटी रंग के हो जाते हैं। इसकी फसल मार्च के आखिर या अप्रैल के मध्य तक पककर तैयार हो जाते है। इसके एक पौधे की पैदावार 150 से 200 किलोग्राम होती है। फल तोड़ने के बाद जल्दी खराब नहीं होते हैं।

कैथली | Jujube cultivation

इस किस्म के फल दरमियाने और अंडाकर आकार के होते हैं और फल का रंग हरा पीला होता है। इसकी फसल मार्च के आखिर में पककर तैयार हो जाती है। इसके फलों में मिठास भरपूर मात्रा में होती है। इसके पौधे से 75 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो जाते हैं। इस किस्म को फफूंद के हमले का ज्यादा खतरा रहता है।

जेडजी 2

इस किस्म के बूटे का आकार काफी घना और फैला हुआ होता है। इसके फल छोटे और अंडाकार आकार के होते हैं। पकने के बाद इनका रंग हरा हो जाता है। इसका फल भी मिठास से भरपूर होता है। इस किस्म पर फफूंद का हमला नहीं होता। यह किस्म मार्च के आखिर में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के प्रति पौधे की पैदावार 150 किलोग्राम तक हो सकती है।

वालाती

इस किस्म के फल दरमियाने से बड़े आकार के होते हैं। पकने पर इसके फल का रंग सुनहरी पीला हो जाता है। इस किस्म के प्रति पौधे की पैदावार 115 किलोग्राम तक हो सकती है।
सनौर 2- इस के फल बड़े आकर और नर्म परत वाले होते हैं। इसका रंग सुनहरी पीला होता है। इसका फल भी बहुत मिठास से भरपूर होता है। यह किस्म भी फफूंद के हमले से रहित होती है। मार्च के अंतिम पखवाड़े में इसका फल पककर तैयार हो जाता है। इस किस्म के प्रति पौधे की पैदावार 150 किलोग्राम तक हो सकती है।

गोला

यह ज्यादा पैदावार और जल्दी पकने वाली किस्म के लिए सूखे क्षेत्र अनुकूल होते हैं। इसके फल गोल, हरे पीले रंग के होते है।

बनारसी

यह भी मध्यम समय में तैयार होने वाली किस्म है। फल बड़े अंडाकार और नुकीले पेंदी वाले होते है। फलों कि लम्बाई 4.25 सैंटीमीटर और ब्यास लगभग 2.5 सैंटीमीटर होता है।

जोगिया

यह किस्म मध्यम समय में तैयार होती है, फल पीले रंग के तथा मध्यम आकार वाले होते है। फलों का गुदा मुलायम तथा रसीला होता है, इनकी भण्डारण क्षमता अच्छी नहीं होती है।

(एपल बेर) सेब बेर

यह एक संकर किस्म है। यह भी देर से तैयार होने वाली किस्म है। फलों का आकार मध्यम बड़ा पेंदी दबी हुयी तथा छिलका मोटा होता है। गुदा हलके क्रीम रंग का और काफी मिट्ठा होता है।

अन्य किस्में

बनारसी कडाका, मेहरून, परभनी, इलायची, सनम 5 आदि भी प्रमुख किस्में है।
नर्सरी- बेर की खेती के लिए बीजों को 17 से 18 प्रतिशत नमक के घोल में 24 घंटों के लिए भिगो कर रखें, फिर अप्रैल के महीने नर्सरी में बिजाई करेें पंक्ति से पंक्ति का फासला 15 से 20 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे का फासला 30 सैंटीमीटर होना चाहिए। 3 से 4 सप्ताह बाद बीज अंकुरन होना शुरू हो जाता है और पौधा अगस्त महीने में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाता है।

खेत की तैयारी

पौधे लगाने से पहले 1 गुणा, 1 मीटर के गड्ढे खोद लें और 15 दिनों के लिए धूप में खुले छोड़ दें। अब मिट्टी के उपरी आधे भाग में 25 से 30 किलो गोबर खाद मिलाकर गड्ढों को भर दे इसके बाद सिंचाई कर के मिट्टी को दबा दे बेर की खेती या बागवानी के लिए किस्म के फैलाव के अनुसार पौधे से पौधे का 7 से 9 मीटर तक का फासला रखे। पौधे लगाने से पहले 60 गुणा 60 सैंटीमीटर के गड्ढे खोदें, जहां आप ने मिट्टी और खाद का मिश्रण डाला था, उसके बीच में इसके बाद पौधों को इन गड्ढों में लगा दें। बेर की खेती के लिए पौधों की रोपाई फरवरी से मार्च और अगस्त से सितंबर महीने में कि जाती है।

पौधारोपण और सिंचाई

नर्सरी से पौधे को उखाड़ते समय यह ध्यान रखें कि इसके साथ कम से कम 30 सैंटीमीटर मिट्टी उठाई जाये ऐसा करने से जड़ें कम क्षतिग्रस्त होती हैं तथा रोपण के बाद पौधों को लगने में मदद होती है। पौधे को लगाने के तुंरत बाद सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद पौधे को पूर्णत: स्थापित होने तक प्रतेक सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है। सुुक्ष्मकाल में मार्च से जून तक किसी प्रकार की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

पौधों को फलों के विकास के समय अक्तूबर से फरवरी महीने में एक बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। बेर की खेती में एक वर्ष के पौधे को 10 किलोग्राम गोबर की खाद, 60 से 70 ग्राम नाइट्रोजन तथा 30 से 40 ग्राम फॉस्फरस की आवश्यकता होती है। दो वर्ष के पौधे को 15 से 20 किलोग्राम गोबर की खाद, 120 ग्राम नाइट्रोजन, 70 ग्राम फॉस्फरस और 200 ग्राम पोटाश देनी चाहिए। तीन वर्ष के पौधे को 25 से 30 किलोग्राम गोबर की खाद, 250 से 350 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फरस और 200 ग्राम पोटाश की जरुरत होती है।

4 वर्ष के पौधे तथा सभी फल देने वाले पौधों को प्रतिवर्ष 35 से 40 किलोग्राम गोबर की खाद, 500 से 700 ग्राम नाइट्रोजन, 200 ग्राम फॉस्फरस और 350 ग्राम पोटाश देना चाहिए। गोबर की खाद जून के अंत या जुलाई के प्रथम सप्ताह तथा उर्वरकों को जुलाई के अंतिम सप्ताह में दे गोबर खाद, फास्फोरस और पोटाश एक साथ दे और नाइट्रोजन को बराबर दो भागो में बाटकर दो बार देना चाहिए।

कटाई छटाई और अंतर फसलें

कटाई छटाई- बेर की खेती हेतु हर साल पूरी तरह पौधे की कटाई और छंटाई जरूरी होती है। यह नर्सरी के समय शुरू होती है, ध्यान रखें कि नर्सरी में एक तने वाला पौधा होे खेत में रोपण के समय पौधे का ऊपर वाला सिरा साफ हो और 30 से 45 सैंटीमीटर लंबी 4 से 5 मजबूत टहनियां होनी चाहिऐ पौधे की टहनियों की कटाई करें, ताकि टहनियां धरती पर ना फैल सकेें पौधे की सूखी, टूटी हुई और बीमारी वाली टहनियों को काट दें। Jujube Cultivation

मई के दूसरे पखवाड़े में पौधे की छंटाई करें जब पौधा नहीं बढ़ रहा हो। यानि की बेर का बौर नई शाखा के कलिका में ही ज्यादा आता है। अत: अच्छी फसल के लिए प्रत्येक वर्ष नई शाखाओं की आवश्यकता होती है। इसके लिए एक वर्ष पुरानी शाखा का 25 से 50 प्रतिशत उपरी भाग काट देना चाहिए।

अंतर फसलें- किसान भाई बेर की खेती या बागों से पहले तीन से चार साल अन्य फसलों की बिजाई कर सकते हैं जैसे दलहनी और सब्जी वाली फसलें जो कम पोषक तत्व लेती है, के शुरूआती वर्षों में इस बाग के साथ लगा सकते हैं। इस तरह यह फसलें ज्यादा आमदन देती हैं और जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं।

बेर की खेती या बागवानी में अगस्त महीने के पहले पखवाड़े की शुरूआत में 1.2 किलोग्राम डयूरॉन खरपतवारनाशी प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। खरपतवारनाशी का प्रयोग खरपतवार के पैदा होने से पहले करना चाहिए। खरपतवार के पैदा हो जाने की सूरत में जब यह 15 से 20 सैंटीमीटर तक लंबे हो जायें तो इनकी रोकथाम के लिए 1.2 लीटर गलाईफोसेट या 1.2 लीटर पैराकुएट का प्रति 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। खरपतवारनाशी का छिड़काव बेर पौधों को बचाकर करें या फिर निराई गुड़ाई द्वारा भी बेर के खेत को खरपतवार मुक्त रख सकते है।

कीट और रोग रोकथाम | Jujube Cultivation

कीट-बेर की खेती में लगने वाले मुख्य कीट फल बेधक और फल मक्खी है। फल बेधक की रोकथाम के लिए 3 से 4 मिलीलीटर क्लोरोफायरिफोस प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें, छिड़काव के एक सप्ताह तक फल नहीं तोड़ने चाहिए। फल मक्खी के लिए मिथाइल पाराथोन 2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतर से जनवरी से मार्च के बीच छिड़काव करना चाहिए।

रोग

  • बेर की खेती में मुख्य रोग चुर्णित आसिता लगता है।
  • इस रोग में पौधा पत्तियाँ गिरा देता है।
  • यदि फल रहते भी हैं, तो उनका आकर छोटा हो जाता है।
  • इसकी रोकथाम के लिए जुलाई, सितम्बर, नवम्बर या दिसम्बर माह में कैराथेन 5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे और इसे दोबारा दोहराए।
  • दीमक की रोकथाम के लिए 50 मिलीलीटर क्लोरोफायरिफोस 50 लीटर पानी में घोल कर प्रति पौधा दे।
  • यदि बेर के फलों पर काले धब्बे है, तो रोकथाम के लिए 250 ग्राम मैनकोजेब 75 डब्लयू पी का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके जनवरी महीने से लेकर फरवरी के मध्य तक 10 से 15 दिनों के फासले पर छिड़काव करना चाहिए।
  • पत्तों पर धब्बे और पत्तों पर फंगस के लिए घुलनशील सल्फर और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।

पैदावार

  • बेर की खेती से उपज जलवायु, किस्म और बाग के रखरखाव के आधार पर प्राप्त होती है।
  • लेकिन उपरोक्त विधि से खेती करने पर 9 से 10 वर्ष आयु वाले बेर की कलमी पौधे से औसत उपज 100 से 200 किलोग्राम फल प्रति पौधे से प्राप्त होती है।
  • असिंचित दशाओं में उपज 50 से 120 किलोग्राम प्रति पौधा उपज मिलती है।

उन्नत किस्में-बेर की खेती के लिए क्षेत्र के अनुसार उन्नतशील और संकर किस्मों का वर्गीकरण इस प्रकार है, जैसे-

राज्य अनुसार किस्में | Jujube Cultivation

  • उत्तर प्रदेश बनारसी कडाका, बनारसी, पैवन्दी, नरमा, अलीगंज
  • पंजाब, हरियाणा उमरान, कैथली, गोला, सफेदा, सोनोर- 2, पौंड
  • राजस्थान सौनोर, थोर्नलैस
  • बिहार बनारसी, नागपुरी, पैवन्दी, थर्नलैस
  • दिल्ली गोला, मुड़या महरेश, उमरान, पोंडा
  • महाराष्ट्र कोथो, महरूम, उमरान
  • आंध्र प्रदेश बनारसी, दोढीया, उमरान