गत 22 सितम्बर को जयपुर में जीका से पीड़ित एक मरीज सामने आया। अब तक कुछ दिनों के ही भीतर मरीजों की संख्या 50 तक पहुंच गई। बीमारी की भयानकता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जागरूकता नाम का कोई अभियान नजर नहीं आ रहा। महानगरों, बड़े शहरों में बढ़ते 80 प्रतिशत लोगों को इस बीमारी की जानकारी ही नहीं है, गांवों की बात तो अभी दूर की है। जीका एक भयानक बीमारी है, जो एडीज मच्छरों से फैलता है। आंखों में जलन, सिरदर्द, जोड़ों-मासपेशियों में दर्द होता है।
इस बीमारी से लकवा व मौत होने की संभावना होती है। गर्भ में बच्चे पर इसका खतरनाक प्रभाव होता है, जिससे बच्चों का दिमाग अधूरा विकसित होता है। सब से चिंताजनक बात यह है कि 70-80 प्रतिशत मामलों की पहचान ही नहीं होती। इन हालातों में जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है क्योंकि जीका के वायरस से बचने के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन सकी। उधर डेंगू के बुखार का जोर है, जिससे स्पष्ट है कि बारिश के बाद मच्छरों की पैदायश रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए।
राजस्थान के डेंगू के कुल मरीजों में से 42 मरीज केवल जयपुर से ही संबंधित हैं। यदि जयपुर राजधानी का यह हाल है तो छोटे शहर जो पानी की निकासी व कूड़े की समस्या से घिरे हुए हैं उनका क्या हाल होगा। हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं का अंदाजा यहीं से ही लगाया जा सकता है कि सन 2006 में डेंगू की शुरूआत भी देश की राजधानी दिल्ली से हुई थी। राजस्थान में चुनाव का बुखार जोरों पर है इसीलिए सरकार के नुमायंदों को लोगों के डेंगू या जीका के कारण हो रहे बुखार की चिंता कम ही है।
भारत में जीका के पहले तीन केस 2017 में गुजरात के अहमदाबाद में मिले थे। उस वक्त उम्मीद थी कि स्वास्थ्य प्रबंधों पर हजारों-अरबों रुपए खर्च करने वाली केंद्र व राज्य सरकारें बीमारी का सामना करने के समर्थ होंगी किंतु जीका तो क्या रोकना था डेंगू, चिकनगुणिया, मलेरिया जैसी बीमारी से निजात नहीं मिली। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जीका के संबंध में अलर्ट तो 2016 में ही जारी कर दिया था और एक समिति गठित कर बीमारी पर नजर रखने के लिए कहा था लेकिन बहुत कुछ घोषणाओं तक ही सीमित था। सरकार जमीनी स्तर तक लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाए और बीमारियों की रोकथाम के लिए जागरूक अभियान चलाए।
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