14 नवंबर की तारीख को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के तौर पर याद किया जाता है। आज के दिन 1889 को इलाहाबाद में जन्मे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शायद ही कभी ये सोचा होगा कि एक दिन भारत में उनके नाम और काम पर आलोचनात्मक बहस होगी। यह समय अब आ चुका है। केंद्र में बहुमत से बीजेपी की सरकार बनते ही अनदेखी का शिकार होने वाले आजादी के कई नायक सामने आने लगे हैं। असल में ये वो नेता हैं जिन्हें नेहरू परिवार वाले कांग्रेसी नेताओं ने गुमनामी की किताब में डाल दिया। आजादी और देश की प्रगति का जब भी जिक्र हुआ, तब नेहरू, इंदिरा और राजीव के नाम और मुस्कुराते हुए पोस्टर सामने आए। लेकिन अब वक्त बदल चुका है।
31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि के बजाए इस साल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन मनाया गया। इसी तरह नेहरू के जन्म दिन पर मनाए जाने वाले बाल दिवस को नई सरकार बाल स्वच्छता दिवस में बदलना चाहती है। संदेश बुरा नहीं है, देश साफ सुथरा हो तो उसमें हर्ज कैसा। गुमनाम हो चुके नायकों के अचानक सामने आने से उस दौर की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। पता चल रहा है कि नेहरू और पटेल में कैसे मतभेद थे। सी राजगोपालाचारी जैसा विद्वान क्यों नेहरू से नाराज होकर कांग्रेस से दूर हो गया।
नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्री ने दो साल के भीतर राजनैतिक समीक्षकों के मन में गहरी छाप क्यों छोड़ी। अर्थव्यवस्था पर तमाम मतभेदों के बावजूद नेहरू के आलोचक भी मानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं की आजादी को लेकर नेहरू का नजरिया बेदाग ही नहीं काबिले तारीफ था। आईआईटी जैसे संस्थान शुरू कर उन्होंने देश को वैज्ञानिक नजरिया दिया। उनके धर्मनिरपेक्ष नजरिये ने विभाजन का दंश झेल रहे भारत को धर्मांध देश बनने से रोका। प्रकाश और छाया एक दूसरे के पूरक हैं।
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