नौकरी तो नहीं जाएगी, तबादले का खतरा है।
अगर दिल्ली की तरफ देखता तो लोन की सरकार बनती और मंैं इतिहास में एक बेईमान आदमी के तौर पर जाना जाता। इसलिए मैंने ये कदम उठाया। अब ये गाली देंगे लेकिन मैं कन्विंस हूं मैंने सही किया।’ ये शब्द जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक (Jammu and Kashmir Governor Satyapal Malik) के हैं। यही नहीं अगले दिन उन्होंने कहा ‘अपने आपमें पता नहीं कब तबादला हो जाए। नौकरी तो नहीं जाएगी, तबादले का खतरा है।’ वस्तुत: ये बयान देकर उन्होने इतिहास में अपना नाम दर्ज करा दिया है और इस तरह से उन्होंने भारत की राजनीति के एक रहस्य को उजागर कर दिया है।
भाजपा के 26 और 18 अन्य विधायकों का समर्थन प्राप्त है
अपनी बात स्पष्टत: कहकर मलिक ने नि:संदेह इस बात का खुलासा कर दिया कि केन्द्र चाहता था कि वे दो विधायकों वाली सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस की सरकार बनाए जो दावा कर रहे थे कि उन्हें भाजपा के 26 और 18 अन्य विधायकों का समर्थन प्राप्त है। दूसरी ओर महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने अपने 28 विधायकों, अब्दुला की नेशनल कांफ्रेस के 15 और राहुल की कांग्रेस के 12 विधायकों के साथ गठबंधन कर 87 सदस्यीय विधान सभा में 56 सदस्यों के समर्थन का दावा कर अपनी सरकार बनाने का दावा रखा था। यह एक तरह से मई में कर्नाटक, मार्च में मेघालय, और पिछले वर्ष गोवा और मणिपुर की पुनरावृति होती जब राज्यपालों ने उन राज्यों में भाजपा की सरकार बनाई।
1971 के दौरान राज्यपाल के पद का दुरूपयोग करते हुए 27 राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया
हालांकि पार्टी को उन रज्यों में बहुमत प्राप्त नहीं था। राज्यपालों द्वारा नियमों की गलत व्याख्या और अपनी मर्जी से व्याख्या करना आम बात हो गयी है। वे अक्सर अपने निष्कर्ष निकालते हैं और केन्द्र में अपने माई-बाप की मर्जी के अनुसार निर्णय देते हैं। 2008 में मेघालय, 2007 और 2011 में कर्नाटक, 2005 में गोवा, बिहार और झारखंड इसके उदाहरण हैं। 1971-81 के दौरान राज्यपाल के पद का दुरूपयोग करते हुए 27 राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया थ और 1983 आते आते 70 बार राज्यों में राष्ट्रपति शसन लगा दिया गया था।
क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारों जैसे संयुक्त मोर्चा, जनता पार्टी और तीसरे मोर्चे की सरकारों ने राज्यपाल को अपना पिछलग्गू बनाकर इस पद का उपयोग, दुरूपयोग और कुप्रयोग किया तथा विपक्ष शासित राज्यों की सरकारें गिराने के लिए इस पद का दुरूपयोग किया गया। केन्द्र की मर्जी के चलते विभिन्न राज्यों में 120 बार अनुच्छेद 356 लागू किया गया और जब इसे लागू किया गया तो इसकी बहुत आलोचना हुई किंतु उसका उपयोग सभी दलों ने किया। इसलिए इस संविधान निमार्ताओं ने कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी।
वर्तमान में 60 प्रतिशत राज्यपाल सक्रिय राजनेता हैं
आज राज्यपाल की नियुक्ति का मानदंड यह नहीं रह गया कि वह प्रतिष्ठित व्यक्ति होे और उसकी सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता संदेह से परे हो अपितु वह केन्द्र का यस मैन हो। इससे स्थिति ऐसी बन गयी है कि वर्तमान में 60 प्रतिशत राज्यपाल सक्रिय राजनेता हैं और बाकी आज्ञाकारी नौकरशाह, पुलिस अधिकारी और सैन्य अधिकारी हैं। वस्तुत: यह पद आज्ञाकारी अधिकारियों के लिए सेवानिवृति के बाद का विदाई उपहार बन गया है। जिससे स्पष्ट होता है कि विशेषकर विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल केन्द्र का एक औजार बन गया है।
शासन आज नौटंकी बन गयी है और इसके नियमों को बदला जा रहा है, लोकतंत्र को पलटा जा रहा है, नियमों को तोडा-मरोडा जा रहा है। मोदी का राजग भी वीपी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा, वाजपेयी के राजग या 2004 के संप्रग से अलग नहंी है। जिन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा नियुक्त राज्यपालों से त्यागपत्र दिलाया। 2014 के बाद नौ राज्यपालों ने त्यागपत्र दिया है। केरल की शीला दीक्षित, महाराष्ट्र के शंकर नारायण, पश्चिम बंगाल के नारायणन, उत्तर प्रदेश में जोशी, पुडुचेरी में कटारिया, गोवा में वांचू, नागालैंड में अश्विनी कुमार, छत्तीसगढ मे शेखर दत्त और मिजोरम में पुरूषोत्तमन ने त्यागपत्र दिया। हालांकि इस संबंध में 2010 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया था कि सरकार बदलना राज्यपाल बदलने का मानदंड नहीं है भले ही वे नीतियों और राजनीतिक विचारधारा में केन्द्र से अलग रूख क्यों न अपनाते हों।
पूनम आई कौशिश
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो।