दिल की बीमारी से चल रही थी जद्दोजहद
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत हुआ संभव
श्रीगंगानगर (अजय राजपुरोहित)। ये दर्द भरी दास्तां है नन्हें, मासूम जयवीर की, जो जन्म से ही जिंदगी से जंग लड़ रहा था। ऐसी मार्मिक व्यथा जिसे सुन किसी की भी अश्रुधारा बह निकले। लेकिन अब खुशी इस बात की है कि जयवीर ने यह जंग जीत ली, वह पूरी तरह से ठीक है और घर-आंगन को चहका रहा है।
यह संभव हो पाया राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की बदौलत, जिसकी टीम ने न केवल जयवीर को चिन्हित किया बल्कि उसका नि:शुल्क आॅपरेशन व उपचार करवाने में अथक प्रयास भी किए। गांव 22 एमएल निवासी सवा दो वर्षीय जयवीर और उसके परिजनों की पीड़ा की कहानी, उनके पिता रतनलाल ने बताई कि जयवीर के जन्म पर हम सभी बेहद खुश थे, जैसे किसी भी बच्चे के जन्म पर उसके परिजन होते हैं।
लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं रही, क्योंकि जन्म के कुछेक दिन बाद ही जयवीर बीमार रहने लगा और एक माह के अंतराल में ही हमें चिकित्सकों ने बता दिया कि उसके दिल में छेद है। इस दौरान अचानक बेहोश हो जाना, शरीर नीला पड़ जाना सामान्य था। नन्ही मासूम सी जान को तड़पते देख, घर के हर सदस्य की आंखों में आंसू भर आते।
फरिश्ता बनकर आई आरबीएसके टीम
इसी दौरान हमारे लिए फरिश्ता बनकर आई आरबीएसके टीम नंबर एक, जिसमें शामिल डॉ. योगेंद्र, डॉ. कंचन व फार्मासिस्ट केसर भाटी ने जयवीर की सेहत को जांचा और उसका आरबीएसके कार्ड बनाया। टीम ने ही प्रयास कर उसके नि:शुल्क आॅपरेशन व उपचार के लिए जयपुर के प्रतिष्ठित फोर्टिस हॉस्पीटल में भेजा।
मुझे बताया गया कि हॉस्पीटल से विभाग का टाइअप है इसलिए पूर्णत: नि:शुल्क इलाज होगा, लेकिन फिर भी इतने बडेÞ हॉस्पीटल को देख डर लग रहा था। यहां के चिकित्सकों ने भगवान बन मेरे बेटे का नि:शुल्क व सफल आॅपरेशन किया, जो मैं चाहकर भी नहीं करवा पा रहा था। वाकई में यह योजना और डॉक्टर मेरे बेटे और मेरे परिवार के लिए भगवान से कम नहीं है।
जयवीर को देख हमारा दिल पसीज उठा। परिवार के हिसाब से उसकी स्थिति बहुत दयनीय थी, लेकिन हमने ठान लिया था कि जयवीर और उसके परिवार को राहत दिलाकर ही दम लेंगे। जयपुर में भी चिकित्सकों ने हमारा साथ दिया और जयवीर का बेहतर इलाज संभव हो सका। निश्चित ही आरबीएसके के जरिए मासूमों को राहत मिल रही है।’
-डॉ. योगेंद्र, टीम प्रभारी, आरबीएसके
आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण हम उसका इलाज करवाने में अक्षम
हमारे लिए यह किसी सदमें से, किसी सुनामी से कम न था। क्योंकि आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण हम उसका इलाज करवाने में अक्षम थे। इसके बाद तो हमारी दिनचर्या ही बदल गई, कभी किसी डॉक्टर के पास, किसी वैध के पास। दर-दर भटके, दवा-दुआ जो भी हमसे बन पड़ा हमने किया, लेकिन धीरे-धीरे जयवीर की हालत बिगड़ती गई।
पिछले दिनों तो एकबारगी हालात ज्यादा खराब हो गई, हम उसे एक बड़े हॉस्पीटल में लेकर गए, जहां चिकित्सकों ने बताया कि इसका जयपुर या अन्य बड़े शहर में इलाज करवाना होगा और करीब तीन लाख रुपए खर्चा लगेगा, जो हमारे बस के बाहर था। ऐसे ही दर्द भरे माहौल में दो साल बीत गए, जयवीर का मन बहला रहे इसलिए उसे आंगनबाड़ी भी भेज देते।
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