दिवंगत प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीय ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देकर दोनों को देश के स्तंभ कहा था। उनका संदेश स्पष्ट था कि किसान देश का पेट भरता है और सैनिक दुश्मनों को सीमा की तरफ झांकने नहीं देता। सियाचीन में बर्फ की पहाड़ियों पर खड़े होकर ड्यूटी दे रहे सैनिकों का हौसला काबिल-ए-तारीफ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जवानों के मनोबल को बढ़ाने के लिए पहले सियाचीन व अब हरशिल क्षेत्र (चीन सीमा) पर जाकर सैनिकों के साथ दीपावली मनाई। आतंकवादियों से लोहा ले रहे सैनिकों के लिए इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती कि प्रधानमंत्री उनके पास पहुंचे हैं, लेकिन देश का दूसरा स्तंभ किसान बुरी तरह से सरकार की अनेदखी से पीड़ित है,जिनकी दीपावली मंडियों में बेआरामी, अनिद्रा व खरीद की इंतजार की भेंट चढ़ गई। किसानों की समस्याएं सीमावर्ती समस्याओं से कम अहम नहीं। सैनिकों के साथ हमारा भावनात्मक रिश्ता है जो परिवारों को छोड़कर देश की सुरक्षा के लिए दिन-रात ड्यूटी दे रहे हैं। प्रधानमंत्री इस भावनात्मकता माहौल में अपनी लोकप्रियता हासिल करने का मौका नहीं गंवाते।
इधर किसानों की भी सुध लेनी चाहिए, जिन्होंने अनाज के ढेर लगा दिए हैं। मंडियों में अनाज रखने के लिए जगह नहीं मिल रही लेकिन किसान का दर्द यह है कि वह सरकारी नियमों के चक्करव्यू में पिसता जा रहा है। सरकारी आदेशों के अनुसार धान की फसल ठंडे मौसम में पक रही है और सरकार ही ठंड में पके हुए धान को अधिक नमी वाला कहकर खरीदने से इंकार कर रही है। भू-जल का संकट, वातावरण को पराली के धुएं से बचाने का संकट सब कुछ किसान के सिर मढ़ा जा रहा है। क्या प्रधानमंत्री किसानों की परेशानी को समझकर मंडियों में आएंगे। मंडियों में जाना सीमा पर पहुंचने की अपेक्षा कहीं ज्यादा आसान है। किसान धरने देकर, ज्ञापन देकर सरकार को अपना दुख सुना चुके हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह प्रधानमंत्री को धान की नमी की शर्त में बदलाव करने के लिए पत्र भी लिख चुके हैं लेकिन केंद्र ने नर्मीका कोई संकेत ही नहीं दिया।
मंडियां तो लड़ाई, झगड़ों व धरनों का गढ़ बन गई हैं। जहां किसान अधिकारियों का घेराव करते हैं और कहीं-कहीं अधिकारियों को बंदी भी बना लेते हैं। सीमा पर डटे सैनिकों को जिस प्रकार सरकार की हमदर्दी मिल रही है उसी तरह की हमदर्दी किसानों को मिलनी चाहिए। यूं भी किसान सुनवाई का हकदार है लेकिन अपीलें भी दरकिनार हो रही हैं। देश को भुखमरी के साथ टक्कर लेने के काबिल बनाने में जुटे किसानों को भी प्रधानमंत्री के दौरे का इन्तजार है लेकिन फिलहाल यहां केंद्रीय या राज्यों के कृषि मंत्री भी नहीं पहुंच रहे। केंद्र ने जवानों के लिए एक रंैक एक पैंशन लागू कर दी है लेकिन किसानों के लिए प्रधानमंत्री का पांच हजार पैंशन का वायदा भी बकाया पड़ा है। अभी किसान की जय होती नजर नहीं आ रही।
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