रू हों की सच्ची पुकार सुनकर भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा स्वरूप सच्चे संत इस धरा पर अवतरित होते हैं। वे इस मृत्यु लोक में फंसी रूहों के उद्वार के लिए नाम-शब्द गुरुमंत्र की सौगात बख्शते हैं। जिसका जाप करके मनुष्य जन्म मरण के चक्करों से मुक्त हो जाता है। सच्चे सतगुरु की महिमा को लिख बोलकर शब्दों में ब्यां नहीं किया सकता, क्योंकि अगर शिष्य को सतगुरु के चरणों में शरण मिल जाये तो उसे स्वर्ग की भी इच्छा नहीं रहती। गुरु की शरण एक ऐसा धाम है, जिसमें रहते हुए किसी प्रकार की कामना मन को विचलित नहीं कर सकती, वहाँ प्राप्त होने वाली तृप्ति से कोई भी तृष्णा बाकी नहीं रह जाती, उन चरणों का सान्निध्य पाकर कहीं ओर सिर झुकाने का विचार ही नहीं आता। ऐसा ही अलौकिक धाम है ‘डेरा सच्चा सौदा’, सरसा।
पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना 29 अप्रैल सन् 1948 को की, जिसका हुक्म आप जी को बाबा सावण शाह जी महाराज से पहले ही हो चुका था। यह जगह सरसा-भादरा सड़क पर शहर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उस समय यह जगह बहुत ही वीरान थी। ज़मीन ऊबड़-खाबड़ थी। कहीं कांटेदार झाड़िंयाँ व कहीं गहरे गड्ढे थे। पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने पवित्र कर-कमलों से फावड़े का टक लगाकर डेरा बनाने का शुभारम्भ किया। डेरा सच्चा सौदा के मुहूर्त के समय मुम्बई के एक भक्त ने जो भजन गाया, उसकी टेक थी:-
‘हरि कीआं कथा कहाणीआं गुरिमीति सुणाईआं’
पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने इस भजन पर अपनी मस्त-वाणी में व्याख्या भी की और इसके साथ ही आश्रम बनाने की सेवा का कार्य जोर-शोर से शुरू हो गया। सबसे पहले वहां झोंपड़ी बनाई गई। सेवा में डेरे के साथ लगती ढाणी तथा सरसा शहर से संगत आने लगी। दिन-रात सेवा चलने लगी। पूज्य शहनशाह मस्ताना जी संगत के पास खड़े होकर सेवा करवाया करते। सबसे पहले जितनी जमीन में डेरा बनाना था, उसे समतल किया गया। वहाँ बहुत साँप और बिच्छू निकले। पूज्य शहनशाह जी ने सेवादारों को फरमाया, ‘‘किसी ने साँप-बिच्छू आदि जहरीले जीवों को मारना नहीं है बल्कि उसे आराम से पकड़कर आबादी से दूर छोड़कर आना है।’’ पूज्य शहनशाह जी के हुक्मानुसार यहां किसी भी जीव चाहे वह सांप हो, बिच्छू हो इत्यादि को मारा नहीं गया और न ही किसी जीव ने किसी को कोई नुक्सान पहुंचाया। जब भी कोई सांप या बिच्छू निकलता, सेवादार उसे आराम से पकड़कर आबादी से दूर छोड़ आते। यह प्रथा आज भी डेरा सच्चा सौदा में ज्यों की त्यों लागू है।
‘ख़ुद-ख़ुदा का बनाया हुआ है डेरा सच्चा सौदा’
एक बार की बात है कि सरसा शहर के कुछ भक्तों ने पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज के समक्ष विनती की कि सार्इं जी! अपना आश्रम शहर से बहुत दूर है। यहां आना-जाना बहुत मुश्किल है। जंगली तथा वीरान क्षेत्र होने के कारण शहर से माता-बहनों का आना बहुत ही कठिन है और वर्षा के समय सारा रास्ता कीचड़ से भर जाता है। अत: आश्रम शहर के पास बनाओ। उस समय आप जी बड़े गेट के पास खड़े थे। आप जी ने वहां से बेरी का एक सूखा डंडा उठाया और सेवादारों को कहकर उसे जमीन में गड़वा दिया। फिर आप जी ने उस डंडे की ओर इशारा करके भक्तों को फरमाया, ‘‘अगर यह बेरी का सूखा डंडा हरा हो गया तो सच्चा सौदा दरबार यहीं रखेंगे और अगर डंडा हरा न हुआ तो आप जहां कहेंगे, डेरा वहां बना लेंगे।’’ कुछ ही दिनों के पश्चात वह सूखा डंडा अंकुरित होने लगा। बड़ा होने पर उस पर बहुत ही मीठे बेर लगे। आप जी फरमाया करते, ‘‘यह जो डेरा सच्चा सौदा बना है यह किसी इंसान का बनाया हुआ नहीं है। यह सच्चे पातशाह के हुक्म से ख़ुद-ख़ुदा का बनाया हुआ है।’’
कैसे पड़ा ‘सच्चा सौदा’ नाम
जब आश्रम बनकर तैयार हो गया तो पूज्य शहनशाह जी ने साध-संगत को इकट्ठा किया और उनसे मुखातिब होकर पूछा कि अब हम इस आश्रम का नाम रखना चाहते हैं, क्या नाम रखा जाए? सभी भक्त चुप हो गए। पूज्य शहनशाह जी ने स्वयं ही तीन नाम तजवीज किए- 1. रूहानी कॉलेज 2. चेतन कुटिया 3. सच्चा सौदा। पूज्य शहनशाह जी ने साध-संगत से पूछा कि इन तीनों में से कौन सा नाम रखें? तब एक भक्त ने खड़ा होकर कहा-सच्चा सौदा। इस प्रकार एक भक्त के मुंह से कहलवाकर सांई जी ने इस पवित्र जगह का नाम सच्चा सौदा अर्थात् डेरा सच्चा सौदा रख दिया। उस समय पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाए कि यह वह सच्चा सौदा है, जो आदिकाल से चला आ रहा है। यह कोई नया धर्म, मज़हब या लहर नहीं है। सच्चा सौदा का भाव है सच का सौदा। इसमें सच है भगवान, ईश्वर, इसरार, वाहेगुरु, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड और सच्चा सौदा है उसका नाम जपना अर्थात् नाम का धन कमाना। दुनिया में भगवान के नाम के सिवाय सब सौदे झूठे हैं। कोई भी वस्तु इस जहान में सदा स्थिर रहने वाली नहीं है। ईश्वर, वाहेगुरु, ख़ुदा, गॉड के नाम का सौदा करना ही सच्चा सौदा है।
‘शाह सतनाम जी धाम’ बारे वचन
सत्संगी हंंसराज गांव शाहपुर बेगू ने बताया कि सन् 1955 की बात है। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव नेजिया खेड़ा में सत्संग फ रमाने के लिए जा रहे थे। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गांव के नजदीक एक टीले पर विराजमान हो गए, जहां अब शाह सतनाम जी धाम में अनामी गुफा (तेरा वास) है। सभी सत्ब्रह्मचारी सेवादार तथा अन्य सेवादार अपने पूज्य मुर्शिदे-कामिल की हुजÞूरी में आकर बैठ गए। पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सभी सेवकों को फरमाया, ‘‘आप सभी हमारे साथ मिलकर इस पवित्र स्थान पर सुमिरन करो।’’ सभी ने बैठकर पन्द्रह-बीस मिनट तक सुमिरन किया। फिर पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने हँसते हुए फरमाया, ‘‘बल्ले! इत्थे रंग-भाग लग्गणगे।’’ इस पर पूज्य मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘‘भई! रंग-भाग तां लग्गणगे, पर नसीबां वाले देखेंगे। बाग-बगीचे लग्गणगे। लक्खां संगत देखेगी।’’
‘‘पुट्टर! इतनी-इतनी ज़मीन लेंगे और पैसे देकर ही लेंगे।’’
शहनशाह मस्ताना जी महाराज के समय के एक सत्ब्रह्मचारी सेवादार अर्जुन जी ने बताया कि सन् 1958 की बात है। एक बार पूज्य मस्ताना जी महाराज बालू रेत के टीले (शाह सतनाम जी धाम वाली जगह) पर एक जण्ड के पेड़ के नीचे विराजमान थे। आई हुई साध-संगत भी पूज्य बेपरवाह जी की हुजूरी में बैठी हुई थी। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- सेवादार श्री दादू बागड़ी, श्री जोतराम नंबरदार, श्री अमीचंद नंबरदार, श्री नेकीराम नुहियांवाली वाले और श्री राम लाल कैरांवाली वाले। अर्जून सिंह ने बताया कि मैं भी उनमें शामिल था। बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने वचन फरमाया, ‘‘यहां लाखों दुनिया बैठी है। दुनिया की गिनती कोई नहीं।’’ सेवादार दादू बागड़ी खड़ा होकर बोला, ‘‘सार्इं जी, यहां तो हम गिनती के आदमी हैं, लाखों नहीं। पूज्य मस्ताना जी ने फरमाया, ‘‘यहां सतगुरु का बहुत बड़ा कारखाना बनेगा। पुट्टर! यहां इलाही दरगाह का रूहानी कॉलेज बनाएंगे।’
इतने में वहां परस राम जी बेगू वाले भी आ गए, जिसे बुलाने के लिए बेगू गांव में पहले से ही एक आदमी को भेज दिया गया था। उसने पूज्य बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। पूज्य सार्इं जी ने परस राम से पूछा, ‘‘पुट्टर! हमने यह जमीन मोल लेनी है, क्या भाव मिलेगी।’’ परस राम ने कहा कि सार्इं जी, मेरी तो यहां बीस बीघे जमीन है, ऐसे ही ले लो! पूज्य मस्ताना जी महाराज ने फरमाया ‘‘पुट्टर, हम ऐसे नहीं लेंगे, मोल लेंगे।’’ पूज्य मस्ताना जी महाराज ने अपनी शाही डंगोरी को ऊपर उठाकर इशारे से चारों तरफ घुमाते हुए वचन फरमाया, ‘‘पुट्टर! इतनी-इतनी ज़मीन लेंगे और पैसे देकर ही लेंगे।’’
मानवता भलाई कार्य कर रही है साध-संगत
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां छह करोड़ से अधिक साध-संगत को अपना अनमोल प्रेम और रहमतों के खजाने बख़्श रहे हैं। आपजी के पावन सान्निध्य में डेरा सच्चा सौदा द्वारा निरंतर 135 मानवता भलाई कार्य किए जा रहे हैं, जिनमें रक्तदान, गुर्दा दान, मंदबुद्धियों की देखभाल व उनका उपचार करवाना, निराश्रयों के मकान बनाकर देना, गरीब कन्याओं की शादियों में आर्थिक सहयोग देना, वेश्यावृत्ति की दलदल में फंसी युवतियों को समाज की मुख्य धारा में लाना, मरणोपरांत नेत्रदान और शरीरदान आदि शामिल हैं। इसके साथ-साथ जब भी देश में कहीं भी कोई आपदा आई तो डेरा सच्चा सौदा ने सबसे पहले मदद का हाथ आगे बढ़ाया। कोरोना जैसी महाबिमारी में जब लोग अपने परिवार के संक्रमित सदस्यों की सार सम्भाल से कतरा रहे हैं, वहीं ये सेवादार अपनी जान की परवाह किए बिना समाज के कोने-कोने में सेनेटाइजेशन और लोगों के घरों में राहत सामग्री पहुंचाने में जुटे हुए हैं। देश-विदेश में आई प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पूज्य गुरु जी के पावन मार्गदर्शन में शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के जवानों ने जी-जान से राहत एवं बचाव कार्य चलाए और लोगों का अमूल्य जीवन बचाया और पीड़ितों की मदद की।
जाम-ए-इन्सां की शुरूआत
पूरे समाज का भला हो, पूरी कायनात का भला हो, लोगों में इन्सानियत के गुण पैदा हों। ऊंच-नीच का भेदभाव न हो, समाज में प्यार-मुहब्बत की गंगा बहे, इसी उद्देश्य से मर रही इन्सानियत को पुनर्जीवित करने के लिए पूज्य गुरु जी ने जाम-ए-इन्सां (रूहानी जाम) पिलाने की शुरूआत की। इसके लिए 47 नियम निर्धारित किए गए हैं।
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