अभी भी वक्त है, हम जाग जाएं अन्यथा प्रकृति कब तक अनावृत्त होकर हमारे अनाचार सहती रहेगी। जिस प्रलय का इंतजार हम कर रहे हैं, वह एक दिन इतने चुपके से आयेगी कि हमें सोचने का मौका भी नहीं मिलेगा। उपरोक्त पंक्तियां पेश हो रहे राष्ट्रीय व प्रादेशिक बजटों में पर्यावरण की अनदेखी को लेकर सावधान करती हैं।
बजट भले ही केंद्र सरकार का हो या राज्य सरकारों का, उनमें ऐसा दिखाया जाता मानो देश में पर्यावरण की कोई समस्या ही नहीं रही। केंद्र सरकार ने इस बार पर्यावरण, वन व जलवायु मंत्रालय को बजट 2020-21 के मुकाबले 230 करोड़ रुपए कम फंड दिया। यही हाल पंजाब और हरियाणा सरकार के बजट का है, वातावारण के लिए फंड आरक्षित किया गया है किंतु जिस प्रकार वातावारण का संकट बढ़ रहा है, उसकी गंभीरता को देखते हुए सरकारों ने वातवारण को अनेदखा कर दिया है। जिस प्रकार सरकारें अन्य विकास प्रोजैक्टों पर पैसा खर्च कर रही हैं, दूसरे छोर पर पर्यावरण के लिए कोई बड़े कदम नहीं उठाए जा रहे।
पहाड़ी राज्यों में जंगलों की गैर-कानूननी कटाई और माइनिंग की बहुत बड़ी समस्या है। जिन वृक्षों को धरती का आभूषण माना जाता है, उनका खात्मा किया जा रहा है। विकास की इस अंधी दौड़ के पीछे धरती के संसाधनों का जमकर दोहन किया जा रहा है। पानी की उपलब्धता और पानी की गुणवत्ता की समस्या कई अन्य समस्याओं को जन्म दे रही है। हम सभ्यता का गला घोंट रहें हैं। हम जिस धरती की छाती पर बैठकर इस प्रगति व लम्बे-लम्बे विकास की बातें करते हैं, उसी छाती को रोज घायल किये जा रहे हैं।
पृथ्वी, पर्यावरण, पेड़- पौधे हमारे लिए दिनचर्या नहीं अपितु पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनकर रह गए हैं। राज्य सरकारों के लिए पर्यावरण कोई मुद्दा ही नहीं है और वह हमेशा केंद्र सरकार की तरफ झांकने लगती हैं। यदि केवल पंजाब का हाल जानें तब सतलुज, ब्यास नदी प्रदूषित हो चुकी है। कभी यही पानी स्वच्छ व जीवनदाता था जिसकी वास्तविक्ता लॉकडाउन में कुछ हद तक प्रदूषण कम होने के कारण देखने को मिली थी। लोग नदियों का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं। विकास केवल नई बसों, सड़कों व ऊंची इमारतों का नाम ही नहीं है बल्कि स्वच्छ हवा और पानी जीवन की सर्वप्रथम प्राथमिकता है।
यदि हरियाणा की बात करें तब घग्गर नदी एक गंदा नाला बन चुकी है। विकास भी आवश्यक है लेकिन यह विनाश भी नहीं बनना चाहिए। यदि प्रदूषण के प्रति इसी तरह लापरवाही बढ़ती गई तब वह दिन दूर नहीं जब लोगों को स्वच्छ हवा के लिए आक्सीजन के सिलेंडरों पर निर्भरता बढ़ानी होगी। फैक्ट्रियां भी चलनी चाहिए लेकिन प्रदूषण की रोकथाम के लिए तकनीक पर पैसा खर्च किया जाना चाहिए। हमें अब भली-भांति समझ लेना होगा कि पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी और सबसे महत्वपूर्ण यही है कि हम धरती की पर्यावरण संबंधित स्थिति के तालमेल को बनाए रखें।
विशेषज्ञों की यह सलाह बिल्कुल सही है कि कैंसर के इलाज के लिए केवल अस्पताल खोल देना ही वास्तविक समाधान नहीं बल्कि उनके कारणों को तलाश कर उन्हें समाप्त करने की आवश्यकता है। सूखे वृक्षों को भी तभी काटा जाय, जब उनकी जगह कम से कम दो नए पौधे लगाने का प्रण लिया जाय। अपनी वंशावली को सुरक्षित रखने हेतु ऐसे बगीचे तैयार किये जा सकते हैं, जहाँ हर पीढ़ी द्वारा लगाये गए पौधे मौजूद हों। यह मजेदार भी होगा और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में एक नेक कदम भी।
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