सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि जो मालिक की भक्ति-इबादत करते हैं, जिन लोगों में उस मालिक के प्रति दीवानगी है, जो उस मालिक के रहमो-करम का हकदार बनना चाहते हैं ऐसे बन्दे ही इस दुनिया में मालिक, सतगुरु के लायक होते हैं। जो इन्सान अपने मन के पीछे लगकर ईर्ष्या, नफरत में जलते रहते हैं वो कितना भी बाहरी तौर पर दिखावा करें, लेकिन उनके लिए मालिक के प्यार-मोहब्बत को पाना बड़ा ही मुश्किल है। जब तक अंदर का शीशा साफ नहीं होता मालिक की दया-मेहर, दर्श-दीदार नहीं हो सकते।
आप जी फरमाते हैं कि इन्सान जब तक दूसरों की ईर्ष्या में जलता रहता है, दूसरों को देखता रहता है कि कौन, किधर, क्या कर रहा है और अपने बारे में नहीं सोचता तब तक कभी सुखी नहीं रह सकता, क्योंकि उसके अंदर दूसरों के प्रति बुरे ख्यालात, बुराई की भावना चलती रहती है। ऐसा इन्सान धोबी के मानिंद बिना वजह दूसरों की मैल उतारता रहता है। जब कोई किसी की निंदा करता है तो उसके पाप-कर्म अपने ऊपर ले लेता है। इसलिए जो मालिक से प्यार-मोहब्बत करते हैं, भक्ति करते हैं वही इस जगत में काम के होते हैं।
आप जी फरमाते हैं कि कई बार इन्सान को वो वचन याद रह जाता है जो आसान हो, लेकिन जिस वचन में थोड़ी सी मुश्किल हो वो याद नहीं रहता। इस घोर कलियुग में भक्ति करने से हर कोई कतराता है। इन्सान सोचता है कि कहीं गुरु जी ऐसा वचन कर दें ताकि सुमिरन ही न करना पड़े। नाम जपने का मतलब तो जपना ही है चाहे थोड़ा समय ही सुमिरन करो, लेकिन करो जरूर। एक श्वास भी ऐसा न हो जो गुरु के बताए वचनों के अनुसार न चले। हर श्वास में कोशिश करो कि जैसा मुर्शिदे-कामिल ने बताया है उसके अनुसार ही चला जाए। भक्ति के मार्ग पर सुमिरन-सेवा सबसे मुख्य बात है। दृढ़ विश्वासी बनो ताकि चारों तरफ से खुशियां उमड़-उमड़ कर आ जाएं।
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