एक सदी के बाद पंजाब सरकार को जलियांवाला बाग के शहीदों की सूची बनाने की याद आई। यह देश भक्तों का अपमान व इतिहास के प्रति बड़ी लापरवाही है। देश को आजाद करवाने के लिए शहीदों के बारे में जनता को नहीं बताया जाना बेहद शर्मनाक घटना है। यह हमारा देश ही है जहां देश के लिए मर-मिटने वाले लोगों को शहादत का सर्टीफिकेट देने के लिए एक सदी लग जाती है। हद तो तब हो गई थी जब लंबे अरसे बाद जलियांवाला बाग में अंग्रेजों के अत्याचार में अपनी जान गंवा चुके लोगों को सरकारी रिकार्ड में शहीद घोषित करवाने के लिए भी लोगों को संघर्ष करना पड़ा। यहां अगर किसी मंत्री को सम्मान देना हो तब प्रशासन विधानसभा एवं संसद सब एक सुर हो लेते हैं, लेकिन इतिहास व आजादी जैसे मामलों पर तब तक कोई बात नहीं की जाती जब तक आमजन या सामाजिक संस्था द्वारा कोई आवाज नहीं उठाई जाती। यह भी मामला पूर्व राज्य सभा मैंबर तरलोचन सिंह ने उठाया है।
शहीदों का अपमान अपने-आप में अगली पीढ़ियों के लिए चिंता का विषय है। यदि भावी पीढ़ियां शहीदों का सम्मान करने की शिक्षा विरासत के रूप में प्राप्त करेंगी तब उनके दिलों में देश भक्ति का जज्बा पैदा होगा। जहां तक जलियांवाला बाग की शौर्यगाथा का संबंध है इसने अंग्रेज शासकों की काली करतूत को उजागर कर दिया था। इसी घटना के कारण देश भक्तों का खून उबल उठा था। रूस सहित यूरोप के कई देश अपनी विरासत को संभालने में प्रसिद्ध हैं। हमारे देश में देश भक्तों की याद में होने वाले कार्यक्रम भी राजनीतिक रंग में रंगे होते हैं। स्वतंत्रता सेनानियों व उनके परिजनों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए पता नहीं कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भले ही एक सदी गुजर गई कम-से-कम सरकार अब तो शहीदों की सूची बना ले। सूचि का काम बहुत सावधानी व गंभीरता से किया जाना चाहिए, क्योंकि एक भी शहीद के साथ अन्याय होता है तो देशवासियों व देश दोनों को शर्मसार होना पड़ेगा।
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