सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना की महामारी पर सुनवाई करते हुए स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Health) बताया है, सरकार को भी निर्देश दिया है कि वह नागरिकों को सस्ता ईलाज मुहैया करवाए। देश में जिस गति से निजीकरण बढ़ रहा है स्वास्थ्य सेवाओं को निजी क्षेत्र ने अच्छी कमाई का एक बहुत बड़ा स्त्रोत बना लिया है। महानगरों के अलावा छोटे-छोटे शहरों में पंचतारा हस्पताल खुल चुके हैं। यहां सामान्य बीमारियों के लिए भी मरीजों के परिजनों को भारी राशि खर्च करनी पड़ रही है।
निजी क्षेत्र से बाहर सरकारी क्षेत्र में सुविधाएं नाकाफी हैं। वर्ष 2018 में बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 8 लाख 38 हजार लोग हर वर्ष इसलिए मर जाते हैं कि वह स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच ही नहीं पाते। ठीक ऐसे ही 24 लाख लोग सामान्य बीमारियों में इसलिए जान गंवा लेते हैं कि उन्हें गलत ईलाज दिया गया होता है। ग्रामीण भारत की स्थिति ज्यादा खराब है, यहां हजारों प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं जो बिना डॉक्टर के चल रहे हैं। सरकारी डॉक्टर भी मरीजों की जांच, दवाईयां व ऑपरेशन के लिए निजी हस्पतालों में जाने को मजबूर करते हैं, जिस वजह से देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा दवाओं व ईलाज नहीं मिल पाने के कारण ही मौत के मुंह में चला जाता है।
कुछ वर्ष पहले प्रख्यात अभिनेता आमिर खान द्वारा प्रदर्शित शो ‘सत्यमेव जयते’ में राजस्थान के आईएएस अधिकारी डॉ. सुमित अग्रवाल का साक्षात्कार किया गया जिसमें दवाओं के लिए जा रहे पैसे का जब उन्होंने खुलासा किया कि किस तरह दस्त, बुखार, जुकाम की दवाएं भी मरीजों को भारी कीमत देकर मिलती हैं, गरीब उन्हें खरीद नहीं पाते और जान खो लेते हैं। देश में गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, गुर्दे, लीवर से जुड़े रोगों के लिए लाखों रुपये ईलाज पर खर्च आता है, इनका ईलाज कोई कैसे करवाए। उन अधिकारी महोदय ने बताया कि किस तरह उन्होंने राजस्थान में सरकार को सुझाव व कार्य योजना दी जिस पर अमल हुआ व जन औषधि केन्द्र खोले गए, सरकार की ओर से जेनरिक दवाएं सस्ते में आमजन को उपलब्ध करवाई गई।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के मोहल्ला क्लीनिक भी सरकार की अच्छी पहल है, यहां आमजन को सस्ता ईलाज देने की कोशिशें हो रही हैं। लेकिन पूरे देश में ये प्रयास ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के जैसे हैं। पंजाब में कुछ स्वंय सेवी संस्थाएं ‘दवाओं का लंगर’ अभियान के अंतर्गत एवं ‘गुरु नानक मोदीखाना’ के नाम से आमजन को सस्ती दवाएं देने की कोशिश कर रही हैं, परन्तु देश में दवा एवं स्वास्थ्य माफिया ऐसे प्रयासों को रोकने की कोशिशें भी बराबर करता है, जोकि लोगों के स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार को प्राप्त करने में सबसे बड़ी रूकावट है।
भारत में केन्द्र व राज्य सरकारें अगर तत्परता व पूरी ईमानदारी से लोक स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता बनाना चाहें तो वह ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। चूंकि भारत जीवनरक्षक दवाओं का एक बड़ा निर्यातक है। हर वर्ष करीब पैंतालीस हजार करोड़ रूपये की दवाएं देश से निर्यात होती हैं। स्पष्ट है देश में दवा निर्माण में देश काफी अच्छी स्थिति में है। सरकार को स्वास्थ्य पर बजट बढ़ाना होगा, स्वास्थ्य नेटवर्क के फैलाव में तेजी लानी चाहिए। इतना ही नहीं स्वास्थ्य क्षेत्र के माफिया पर थोड़ा नियंत्रण कर उच्चतम न्यायलय के निर्देशित ‘स्वास्थ्य मौलिक अधिकार’ की रक्षा की जा सकती है।
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