मोदी है तो मुमकिन है..

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पुलवामा हमले के बाद देशवासियों को मोदी पर गर्व

इस लेख का यह शीर्षक मैंने मोदी के एक भाशण से लिया है। क्यों लिया इसे उजागर करने से पहले दो बड़े (It is possible if Modi is) आतंकी हमलों को जान लेते हैं। 15 दिसंबर 2001 को जैशे-मोहम्मद के पांच आतंकियों ने संसद पर हमला बोला था। उस दिन एक सफेद एंबेडसर कार में आए इन आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के इस सबसे बड़े और प्रमुख मंदिर को गोलियों से छलनी किया। हमलाबरों से मुकाबले में अपने प्राणों की परवाह किए बिना सीआरपीएफ के पांच जवान शहीद हुए। एक महिला सिपाही और दो सुरक्षा गार्ड भी दायित्व की वेदी पर बलिदान कर गए। अन्य 16 जवान घायल हुए। इस हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरू था, जिसे बाद में 20 अक्टूबर 2006 को फांसी दे दी गई थी। इस हमले ने देश को बुरी तरह झकझोरा। गोया इस समय ठीक वैसा ही माहौल था, जैसा उरी और पुलवामा हमलों के बाद देखने में आया है। इस समय अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, लेकिन अमेरिकी दबाव में पलटवार का कोई साहस नहीं जुटा पाए ? नतीजतन पाकिस्तान द्वारा निर्यात आतंक की यथास्थिति बनी रही।

अब दूसरे मुंबई में हुए बड़े आतंकी हमले पर आते हैं। 26 नवंबर 2008 को यहां के ताज होटल समेत 10 आतंकियों ने चार (It is possible if Modi is) ठिकानों पर हमले किए। इन हमलों में देशी-विदेशी 166 लोग मारे गए। तीन दिन तक महानगर आतंकियों का बंधक बना रहा। बाद में कसाब को 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई। इस समय में आवाम की भावना उग्र आक्रोश के रूप में दिखी, किंतु सोनिया गांधी द्वारा शासित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोई जवाबी करिश्मा नहीं दिखा पाए ? इसके बाद 18 सितंबर 2016 को उरी में स्थित थल सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले में 18 सैनिक शहीद हुए।

हालांकि जवाबी कार्यवाही में चार आतंकियों को तत्काल मार गिराया गया, किंतु जनता बड़ी कार्यवाही के लिए बेचैन होकर 56 इंची सीने के लिए जबरदस्त चुनौती बनकर पेश आई। परिणाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहस दिखाया और अपने कार्यकाल में 29 सितंबर 2016 को पहली सर्जिकल स्ट्राइक की। थल सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में करीब 20 किमी भीतर घुसकर जैशे-मोहम्मद के कई आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया। इस कार्यवाही से जनता को राहत तो मिली, लेकिन आत्म-संतोश नहीं हुआ। इतना भी इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि मोदी प्रधानमंत्री थे।

अब 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले में जब 44 जवान शहीद हो गए तो देश आगबवूला हो उठा। 20 साल बाद देश पर यह बड़ा आतंकी हमला था। 12 मिराज विमानों ने ग्वालियर और बरेली से उड़ान भरी और बालाकोट, चकोटी व मुजफ्फराबाद में मौजूद जैश के आतंकी शिविरों को ध्वस्त कर दिया। इसमें 325 आतंकी और 25 से 27 प्रशिक्षु आतंकी मारे गए। इनमें चकोटी एवं मुजफ्फराबाद तो पीओके में हैं, किंतु बालाकोट पाकिस्तान के पख्तूख्वा प्रांत में है। 1971 के बाद यह पहला अवसर है कि भारत ने पाक की जमीन पर जबरदस्त बमबारी की और बिना कोई नुकसान उठाए युद्धक विमान और सैनिक सकुशल लौट आए।

पाक को करारा सबक सिखाने की दृश्टि से सेना ने न केवल नियंत्रण रेखा पार की, बल्कि लक्ष्य साधने के लिए पाकिस्तान की मूल सीमा लांधने में भी कोई संकोच नहीं किया। इस प्रतिक्रिया से यह भी पैगाम गया है कि भारत अब लक्ष्य प्राप्ती के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार है। बीते तीन दशक में ऐसे हालात का निर्माण संभव नहीं हो पाया, जबकि चरणसिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, आईके गुजराल, नरसिंह राव, वाजपेयी और मनमोहन सिंह इस बीच प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभालते रहे थे। अब वाकई मोदी का कहा यह वाक्य फलीफूत हुआ है कि ह्यमोदी है तो मुमकिन है..।ह्य अब जाकर ही वास्तव में मोदी की काया में कहीं 56 इंची सीना है, इस तथ्य या वास्तविकता का अहसास हुआ है।

इस हमले और हमले में बरती गई कूटनीति से पाकिस्तान हतप्रभ है। क्योंकि हमने अपनी आत्मरक्षा के लिए केवल आतंकी ठिकानों को बमबारी करके ध्वस्त किया है। इसीलिए पत्रकारों से बातचीत में विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा भी, ह्यखुफिया सूत्रों से जानकारी मिली थी कि जैशे-मोहम्मद देश के अनेक स्थलों पर आत्मघाती हमले की तैयारी में है। इस हेतु फिदायीन जैहादियों को प्रशिक्षित किया जा रहा था। इस खतरे से बचना बेहद जरूरी था। लिहाजा भारत ने बालाकोट, चकोटी और मुजप्फराबाद के आतंकी शिविरों पर हमला किया। यह असैन्य सुरक्षात्मक कार्यवाही पूरी तरह जैश के शिविरों तक सीमित थी। लक्ष्यों का चयन ऐसे किया गया, जिससे स्थानीय नागरिकों को कोई नुकसान न हो।

इस हमले के बाद भारत के पक्ष में जिस तरह विश्व समुदाय उठ खड़ा है, उससे पाक फिलहाल अलग-थलग पड़ गया लग रहा है। जाहिर है, मोदी ने अनेक देशों की यात्राएं करके जो द्विपक्षीय कूटनीतिक संबंध राश्ट्रहित में बनाए हैं, वे अब फलीभूत होते लग रहे हैं। इसीलिए कहीं से भी समर्थन नहीं मिल पाने की वजह से एक तो पाक बौखला रहा है, दूसरा उसका मनोबल भी टूट रहा है। चीन से उसे बड़ी उम्मीद थी, लेकिन चीन केवल परस्पर शांति बनाए रखने की अपील करके बच निकला है। वैसे भी इस समय पाक-पोशित आतंकवाद से अनेक मुस्लिम देशों सहित यूरोपीय देश भी पीड़ित हैं। हालांकि पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने कहा है कि पाक किसी अतिवादी हमले पर विचार न करे। यदि पाकिस्तान एक परमाणु बम पटकेगा तो भारत 20 परमाणु बम पटकेगा। परवेज मुशर्रफ ने सही कहा है, मोदी है तो यही मुमकिन होगा।
लेखक: प्रमोद भार्गव

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