पराली संकट : महंगी तकनीक निकालेगी सरकारी दावों का धुआं

Economic Crisis

आर्थिक संकट की मार झेल रहे किसानों के लिए महंगे कृषि यंत्र खरीद कर पराली निपटाना मुश्किल | Economic Crisis

बठिंडा(सच कहूँ/अशोक वर्मा )। पराली का निपटारा करने के लिए तकनीकें महंगी होने के कारण इस वर्ष भी(Economic Crisis) अवशेष को आग लगाने का रूझान बरकरार रहने के संकेत हैं चाहे जिला मैजिस्ट्रेट ने पराली जलाने पर रोक लगाई है परन्तु इन आदेशों पर अमल होता दिखाई नहीं दे रहा है। किसान कहते हैं कि वह तो पहले से ही आर्थिक संकट की मार झेल रहे हैं इस लिए महंगे यंत्र खरीद कर पराली निपटाना उनके बस का बात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पराली को आग न लाने के आदेश जारी किए हैं। अदालती आदेशों की रौशनी में सरकार ने धान की कटाई के लिए कम्बाईनें और सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट व्यवस्था लाने के लिए कहा है। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी की ओर से ईजाद इस तकनीक के साथ कम्बाईन पराली के छोटे-छोटे टुकड़े कर खेतों में बिखेर देती है।

पराली जलाने की पाबंदी : जिला मैजिस्ट्रेट|Economic Crisis

अतिरिक्त जिला मैजिस्ट्रेट सुखप्रीत सिंह सिद्धू ने धारा 144 के अंतर्गत जिला बठिंडा की सीमा में धान के अवशेष को आग लगाने पर पाबंदी शाम 7 बजे से सुबह 10 बजे तक कम्बायनों के साथ धान की फसल काटने पर रोक लगा दी है। सिद्धू ने कहा कि यदि कोई भी कम्बायन इस समय दौरान धान की फसल काटती पकड़ी जाती है तो उसे जब्त किया जाएगा। उन्होंने बताया कि धान के अवशेष को आग लगाने से जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है उन्होंने बताया कि पराली की आग के कारण खेतों में खड़ी और गोदामों में स्टोर फसल और गोला बारूद के डीपू में आग लग सकती है, जिससे भारी जानी और माली नुक्सान हो सकता है।

एसएमएस सिस्टम से 500 रूपये कटाई महंगी |Economic Crisis

  • आम किस्म की कम्बाईन के साथ धान की कटाई और 1 हजार से 12 सौ रुपये खर्च आते हैं
  • स्ट्रा मैनेजमेंट सर्विस (एसएमएस) सिस्टम से यह खर्च 500 रूपये बढ़ जाता है।
  • कम्बाईन चालक महेन्दर सिंह ने बताया कि इस तकनीक से डीजल की खपत बढ़ती है
  • इसी कारण ही बहुत से किसान महंगी कटाई करवाने से कन्नी कतरा रहे हैं।
  • बठिंडा जिले में औसतन 1.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की बिजाई होती है
  • इसमें से तकरीबन साढ़े तीन लाख मीट्रिक टन पराली पैदा होती है
  • बड़ी समस्या गीली पराली की होती है जो लम्बे समय सुलगती रहती है।
  • इस कारण कार्बन डाईआॅक्साईड, कार्बन मोनोआॅक्साईड व मीथेन गैसें निकलती हैं,
  • प्रदूषण बढ़ता है सिविल अस्पताल बठिंडा के मेडीकल अधिकारी डॉ. गुरमेल सिंह का कहना था
  • पराली के कारण पर्यावरण में फैले धुओं के साथ सांस की गंभीर बीमारी हो सकती है।

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