लोक सभा चुनावों की तैयारी में मुद्दे गायब, गठबंधन पर जोर

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देश की केंद्रीय सरकार में 2019 की लोकसभी चुनाव संबंधी घड़ियां जा रही हैं रणनीतियों का पूरा गठबंधन बन गया है। भाजपा ने सत्ता में चुनाव के बावजूद अपने भाईचारे को जोड़े रखने के लिए मुहिम छेड़ दी है। ये मुहिम लगभग सहयोगी पार्टियों से हां करवाना ही है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का आज अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल से मुलाकात का प्रोग्राम है। बिहार में भाजपा नेता सुशील मोदी ने नितीश को एनडीए का चेहरा कहकर भाजपा और जनता दल यू की जोड़ी बनाने का प्रयास किया है। पिछले दिनों नितीश ने नोटबंदी पर सवाल खड़े करके भाजपा नेताओं की चिंता बढ़ा दी थी। इसी तरह महाराष्टÑ में शिव सेना को मनाने की कोशिश की जा रही है। इधर कांग्रेस 2019 में भाजपा को सरकार से बाहर रखने के लिए विरोधी पार्टियों से गठबंधन के लिए सरगर्म हैं।

इसकी शुरूआत कर्नाटक में सरकार बनान से हो चुकी है। दरअसल कर्नाटक और उपचुनावों के नतीजों के बाद भाजपा 2019 के चुनावों के लिए सरगर्मी से काम कर रही है। तृणमूल कांग्रेस, बसपा, राष्टÑीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, तेलगू देशम पार्टी, भाजपा के खिलाफ एकजुट हो गई हैं। कांग्रेस की सख्त विरोधी रही आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस के साथ चलने का मन बना लिया है। ऐसे हालातों में भाजपा के लिए सबसे जरूरी चीज अपने सहयोगी दलों को साथ रखना है।

तेलगू देशम पार्टी ने भाजपा से सिर्फ नाता नहीं तोड़ा बल्कि केंद्र की आलोचना भी की है। अकाली दल के प्रमुख नेता नरेश गुजराल ने कई बार भाजपा पर सहयोगी पार्टियों को नजरअंदाज क रने का दोष लगाकर नई चर्चा छेड़ दिया थी। इसलिए भाजपा प्रधान किसी तरह की कमी नहीं छोड़ना चाहते। संसदीय प्रणाली में गिनती का महत्व बढ़ गया है और मुद्दों की अहमियत घट गई है। गठबंधन की मजबूती की मुहिम में क्षेत्रीय पार्टियों की कदर बढ़ गई है पर मुद्दों पर सारे चुप हैं। राजनीति के मौजूदा रुझान ने आम आदमी को नजरअंदाज कर दिया है और कुर्सी ही बड़ा उद्देश्य बन गई है। किसके साथ जाना है की चर्चा है मुद्दों की शर्त गायब है।