इस्लामिक देशों के जातीय व क्षेत्रीय मसलों की लड़ाई का आईएस फायदा उठा रहा है। ऐसे कृत्य में अमेरिका की भूमिका अप्रत्यक्षरूप से सामने आ रही है। चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट का ईरानी संसद व अयातुल्लाह खुमैनी के मकबरे पर किए गए हमले के पीछे की वजह ईरान सीरिया में राष्ट्रपति असद का समर्थन करना बताया जा रहा है।
हालांकि आतंकियों ने ईरान को पहले कई बार धमकी दी थी कि वह सीरिया का समर्थन न करे। आतंकियों की धमकियों को ईरान ने अनदेखा किया था। आइएस की धमकियों पर ज्यादा गौर नहीं किया। लेकिन हमले के ठीक दो दिन पहले आइएस ने ईरान सरकार को अंजाम भुगतने को लेकर एक वीडियो जारी किया था। जिसे भी ईरानी सरकार ने दरकिनार कर दिया था।
इस बात से आइएस आतंकी गुट खासा नाराज था। उसी नाराजगी का नतीजा है संसद व अयातुल्लाह खुमैनी के मकबरे पर हमला करना। ईरान मौजूदा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय और प्रभावशाली स्तंभ है इसलिए आतंकी नुकसान पहुंचाना चाह रहे हैं। इस हमले के बाद हम सबके लिए चिंता की बात यह है कि मध्य-पूर्व देशों के बीच कूटनीतिक जंग का लाभ अगर आतंकी संगठन उठाए, तो यह खतरनाक संकेत होंगे। फिलहाल भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है।
ईरानी संसद पर आइएस ने हमला करके अपने दुस्साहस का एक बार फिर से परिचय दिया है। हमले का कारण साफ है। सीरिया के लिए ईरान का साथ देना उनके लिए फांस बन गया। ईरान सीरिया के साथ देने की कीमत चुका रहा है। हालांकि ईरान अब भी पीछे नहीं हटेगा। लेकिन रास्ते उसके लिए कठिन होने वाले हैं। आतंकी संगठन आइएस ने शिया बहुल देश ईरान पर बड़ा मौजूदा हमला करके पूरे संसार के शिया मुस्लमानों को भयभीत कर दिया है। आइएस ने कुछ ही मिनटों में पूरे ईरान को दहला दिया।
आतंकियों ने अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए मुल्क की दो प्रमुख जगहोें को चुना। आतंकियों ने बुधवार की सुबह ईरान की संसद व क्रांतिकारी नेता अयातुल्लाह खुमैनी के मकबरे में घुसकर एक साथ दोनो जगहों पर आत्मघाती हमला कर अपने दुस्साहस का परिचय दिया। आतंकियों ने हमला उस वक्त किया जब संसद की कार्रवाही चल रही थी जिसमें सभी संसद सदस्य व सरकार के मंत्री-अधिकारी मौजूद थे। हमले के वक्त चारों ओर गोली चलने की तड़तड़ाहट से संसद सदस्यों में भगदड़ और अफरा-तफरी मच गई।
करीब दस मिनट की आतंकियों द्वारा गोलीबारी में दर्जनभर से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई और पचास से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। गनीमत इस बात की रही है सुरक्षाकर्मियों ने सभी सांसदों को सुरक्षित दूसरे कमरों में पहुंचा दिया। शिया बहुल ईरान में सुन्नी चरमपंथी गुट आईएस का पहला बड़ा हमला माना जा रहा है।
आइएस के इस हमले पर ईरानी-अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषकों ने चिंता जाहिर की है। उन्हें अयातुल्लाह खुमैनी के मकबरे व संसद पर हमले बहुत ही नियोजित लगते हैं। हमलावरों ने दो ऐसी अहम जगहों को चुना, जो इस इस्लामी गणराज्य का प्रतीक हैं संसद और खोमैनी का मकबरा। वह ईरानी सरकार पर सीधा निशाना साध रहे हैं। क्योंकि ईरानी सरकार उनके उनके खिलाफ है।
भारत में जिस तरह से महात्मा गांधी को महान शख्सियत का दर्जा दिया गया है। उनके खिलाफ कोई भी गलत बात नहीं सुन सकता। वैसे खोमैनी के प्रति वहां की आवाम में प्यार है। आपको बता दें कि खोमैनी 1979 की इस्लामी क्रांति के नेता थे और उन्हें मौजूदा ईरान की सबसे बड़ी शख्सियत समझा जाता है। उनके मकबरे पर यूं हमला करना, वहां की आवाम की भावनाओं पर सीधी चोट मारने जैसा है।
आतंकी संगठन आइएस गुट ने ईरान पर सीरिया के अलावा कतर का भी सहयोग देने का आरोप लगाया है। ईरान इस्लाम में प्रचलित शिया मत को तरजीह देता है। पर, आईएस कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा वहाबी अरब को मानता है। साउदी अरब भी वहाबी को मानता है। यही वजह है कि साउदी और ईरान के बीच भी सालों से जंग छिड़ी है।
एक दूसरे के बीच विचारों व सियासी मापदंडों को लेकर दुश्मन बने हुए हैं। इसके पीछे अमेरिका की गलत कूटनीति का असर है। अमेरिका कई मुस्लिम देशों के बीच जातीय संघर्ष को हवा देकर ऐसे खेल, खेलता आ रहा है। अमेरिका की पूर्व की दोषपूर्ण कूटनीति का ही परिणाम है कि इस समय मध्य-पूर्व व पश्चिम एशिया में अस्थिरता है और आतंकी गुट आईएस, अलकायदा, तालिबान जैसे अन्य आतंकी संगठनों को जन्म लेने का मौका मिला। अमेरिका की कुछ अराजकताभरी नीतियां रहीं है जिससे इस तरह की अस्थिरता पनपी है।
सीरिया युद्ध में जबसे ईरान ने राष्टÑपति बशर का साथ देने की घोषणा की है, तभी से आइएस उसका दुश्मन बना है। आइएस ने इससे पहले प्रत्यक्षरूप से कभी भी हमला नहीं किया। आइएस ने कई मर्तबा ईरान को सीरिया का साथ न देने को चेताया, लेकिन ईरान ने उनकी सभी बातों को दरकिनार किया। मौजूदा हमला उसी नजरअंदाजी का परिचायक है।
हमले के बाद ईरान का रूख क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। हालात खराब होंगे, इसकी आशंका दिखने लगी है। भारत के लिए सचेत रहने की जरूरत है। वहां रह रहे भारतीयों को दूतावास के संपर्क में रहने को कहें। और जिन जगहों पर हमले हुए हैं, वहां से तत्काल हटने को कहें। जरूरत पड़े तो देश छोड़कर भारत आने की भी सलाह दें।
-रमेश ठाकुर
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