दो-दो बार विश्व विजेता बेटियों को तीन साल बाद मिला आधा ईनाम (World Champions)
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महीने भर से ईनाम में मिले चैक का नहीं हो रहा भुगतान
भिवानी (सच कहूँ/इन्द्रवेश दुहन)। भिवानी व चरखी दादरी की विश्व विजेता बॉक्सर बेटियां हमारे सिस्टम व सरकार के काफी परेशान हैं, क्योंकि एक तो इनकी ईनाम राशि तीन साल बाद स्वीकृत हुई और जब हुई तो अब महीने से ज्यादा समय से ईनामी राशि के चैक का भुगतान नहीं हो रहा। इन विश्व विजेता बेटियों के कोच जगदीश ने नाराजगी जाहिर की है। कहते हैं देर से मिला न्याय भी अन्याय जैसा होता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है मिनी क्यूबा कहे जाने वाले भिवानी की विश्व विजेता बेटियों के साथ। न केवल भिवानी, बल्कि चरखी दादरी की दो बेटियों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। यूं तो कोरोना काल से कोई अछूता नहीं रहा, लेकिन रिंग में दो-दो हाथ करती ये नीतू व साक्षी हैं। अपने मुक्कों की बदौलत इन दोनों बेटियों ने न केवल देश में भिवानी का नाम रोशन किया, बल्कि पूरी दुनिया में धाक जमाई। नीतू व साक्षी एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार विश्व विजेता रही हैं। लेकिन इससे सिस्टम व सरकार की ढिलाई कहें या इनका दुर्भाग्य कि इन्हें जो विश्व विजेता का ईनाम मिलना था, वो पहले तो आधा किया गया और फिर उसे स्वीकृत करने में तीन साल लग गए। यही नहीं अब वो स्वीकृत राशि के चैक का भुगतान नहीं हो रहा। बता दें कि नीतू व साक्षी ने साल 2017 व 2018 में गोहाटी व हंगरी में हुई विश्व महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीत कर देश व देश की बेटियों का गौरव बढ़ाया था।
नीतू, साक्षी तथा इनके कोच जगदीश का कहना है कि विश्व चैंपियन के लिए 20 लाख रुपये का ईनाम प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाता था, जो उन्हें तीन साल के संघर्ष के बाद आधा यानि 10-10 लाख रुपए मिला। विश्व विजेता बॉक्सर नीतू व साक्षी का कहना है कि तीन साल बाद उनके 20-20 लाख रुपए ईनाम राशि स्वीकृत तो हुई, लेकिन अब एक महीने से भी ज्यादा समय से ईनाम राशि के चैक का भुगतान नहीं हो रहा। इन दोनों बॉक्सर बेटियों ने सीएम मनोहर लाल से जल्द ईनाम राशि का भुगतान करने की मांग की है। गुरू द्रोणाचार्य अवार्डी कोच जगदीश ने बताया कि 6 अगस्त के इन बेटियों के चैक लगाए गए थे, जो बताया जाता है कि ट्रेजरी से वित्त विभाग में चले गए। उन्होंने बताया कि पूरा सिस्टम ऑनलाइन है। ऐसे में ऑनलाइन का फायदा तो तब होता जब एक दो दिन में चैकों का भुगतान होता। उन्होंने कहा कि इससे तो ऑफलाइन सिस्टम बेहतर था। तय समय पर भुगतान तो होता।
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