प्रेरणास्त्रोत : गरीब का निमंत्रण

Invitaion
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एक बार महात्मा बुद्ध एक गांव में ठहरे थे। और उस गांव के एक गरीब आदमी ने बुद्ध को निमंत्रण दिया की मेरे घर भोजन करो। बुद्ध ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया। क्योंकि वह व्यक्ति सुबह जल्दी आ गया था। वह जानता था उसका नम्बर बाद में तो नहीं आ पायेगा। इससे पहले और लोग निमंत्रण न दे वह बहुत सुबह उठ बुद्ध की गंध कुटी के सामने आ बैठा। उस की बड़ी तमन्ना थी की जीवन में एक बार बुद्ध उसके यहाँ भी भोजन ग्रहण करें। वह निमंत्रण दे ही रहा था कि इतनी देर में गांव के किसी धनव्यक्ति ने आकर बुद्ध को कहा कि आज का भोजन निमंत्रण मेरे ग्रहण करें। बुद्ध ने कहा आज का तो निमंत्रण आ चुका है। इस प्रेमी ने आज अपने घर बुलाया हैे। उस अमीर ने उस आदमी की तरफ देखा और कहां, इस का निमंत्रण, शायद इस के पास तो अपने खाने के लिए भी कुछ नहीं होगा। इसके तो खुद कई-कई फाँकें पड़े होते हंै। तब उसने उसकी तरफ देख कर उससे पूछा क्या मैं कुछ गलत कह रहा हूं। उस व्यक्ति ने गर्दन हिला कर हामी भर दी। इस के पास कुछ तो खिलाने के लिए होगा तभी तो यह इतनी दूर से मुझे निमंत्रण देने के लिए आया है। जो भी हो इसके पास जो भी होगा, अब निमंत्रण तो इसी का स्वीकार कर चुका हूं। और इसी के घर भोजन करूंगा। जाओ गृह पति आप भोजन की तैयारी करो आज का भोजन आपके यहाँ है। भगवान बुद्ध गये। उस आदमी को भरोसा भी न था कि बुद्ध उसके घर पर भी कभी भोजन ग्रहण करने के लिए आएँगे। उसके पास कुछ भी न था खिलाने को वस्तुत:। वह अमीर ठीक कह रहा था। रूखी रोटियां थीं। सब्जी के नाम पर गरीब किसान जो बरसात के दिनों में कुकुरमुत्ते पैदा हो जाते हंै—लकड़ियों पर, गंदी जगह में—उस कुकुरमुत्ते को इकट्ठा कर लेते है। उसी की सब्जी बनाकर खाते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि कुकुरमुत्ते पायजनस हो जाता है। जहरीले हो जाते है, सांप वगैरा के गुजरने के कारण। बुद्ध के लिए उसने कुकुरमुत्ते की सब्जी बनाई। वह एक दम कड़वे जहर थे। मुंह में रखना मुश्किल था। लेकिन उसके पास एक ही सब्जी थी। तो भगवान बुद्ध ने यह सोच कर कि अगर मैं कहूं कि यह सब्जी कड़वी है। तो यह कठिनाई में पड़ेगा; उसके पास कोई दूसरी सब्जी नहीं है। वह उस जहरीली सब्जी को खा गये। जैसे ही बुद्ध वहां से निकले, उस आदमी ने जब सब्जी को चखा तो वह तो हैरान हो गया। यह क्या यह तो कड़वी जहर सब्जी है। वह भागा हुआ आया और उसने कहा कि आप क्या करते रहे? वह तो जहर है। वह छाती पीटकर कर रोने लगा। लेकिन बुद्ध भगवान ने कहा, तू जरा भी चिंता मत कर। क्योंकि जहर मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगा। क्योंकि मैं उसे जानता हूं वो अमृत है। तू जरा भी चिंता मत कर घर जा। इस तरह बुद्ध ने लोगों में प्रेम भरा।

 

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