कोरोना वायरस की उत्पति के संबंध में अनेक देशों का मानना है कि यह प्राकृतिक नहीं अपितु मानव निर्मित है और चीन इसका कारण है जिसके कारण संपूर्ण विश्व में मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। चीन ने ताईवान जैसे देशों द्वारा इसके बारे में मांगी गयी सूचना उपलब्ध नहीं करायी और वह वुहान के बारे में तथ्यों को छिपा रहा था और विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक इस लीपापोती में चीन सरकार के साथ सांठगांठ कर रहे थे। जांच से तथ्यों का पता चलेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की 18 और 19 मई को हुई बैठक में कोरोना वायरस की उत्पति की जांच के मामले पर निर्णय किया गया। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ साथ भारत ने भी यह मांग उठाई और अंतत: चीन इस मांग को स्वीकार करने के लिए सहमत हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में से 160 देशों ने इसकी स्वतंत्र जांच की मांग की। एक सप्ताह पूर्व जब पहली बार आस्ट्रेलिया द्वारा यह मांग की गई थी तो चीन ने इस पर आपत्ति जताई थी। इस बैठक में दूसरा मुद्दा विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताईवान की भागीदारी को लेकर था जिसे इस वर्ष की अंतिम तिहाई तक स्थगित कर दिया गया है। किंतु यह एक विवादास्पद मुद्दा है और इसके कारण 72 वर्ष पूर्व स्थापित इस संगठन के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा सकता है। कोरोना वायरस की उत्पति के संबंध में अनेक देशों का मानना है कि यह प्राकृतिक नहीं अपितु मानव निर्मित है और चीन इसका कारण है जिसके कारण संपूर्ण विश्व में मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। चीन ने ताईवान जैसे देशों द्वारा इसके बारे में मांगी गयी सूचना उपलब्ध नहीं करायी और वह वुहान के बारे में तथ्यों को छिपा रहा था और विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक इस लीपापोती में चीन सरकार के साथ सांठगांठ कर रहे थे। जांच से तथ्यों का पता चलेगा।
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लिखे गए एक लंबे पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक की अनेक कमियों को उजागर किया गया है जिससे यह इंगित होता है कि वे चीनी नेतृत्व के साथ मिले हुए थे। ट्रंप ने उसी पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक को चेतावनी दी थी जब तक संगठन के ढांचे और कार्यकरण में स्पष्ट बदलाव नहीं किया जाता है तब तक वह संगठन को अमरीकी प्रशासन द्वारा दी जाने वाली राशि को जारी नहीं करेंगे। साथ ही अमरीका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अपनी सदस्यता वापस लेने की धमकी भी दी है।इस संदेह और आरोपों का कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक के रूप में ट्रैडोस की नियुक्ति की पृष्ठभूमि है। ट्रेडोस डाक्टर नहीं हैं अपितु इथोपिया के एक राजनेता हैं और वह कट्टरवादी समाजवादी संगठन टिगरे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के सदस्य हैं जो अपने आतंकवादी कृत्यों के लिए कुख्यात है। वे मानव अधिकारों के हनन के आरोपी रहे हैं। उनका संगठन मार्क्सवादी, लेनिनवादी और माओवादी विचारधारा का समर्थन करता है और ट्रैडोस वैचारिक दृष्टि से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से जुडे हुए हैं। साथ ही ट्रैडोस अफ्रीका में अपने देश इथोपिया के माध्यम से चीन को पांव जमाने में मदद करने के लिए भी जिम्मेदार हैं।
जब ट्रैडोस अपने देश के स्वास्थ्य और विदेश मंत्री थे तो उन्होने 50वीं बेल्ट एंड रोड की मेजबानी की और इथोपियाई रेलवे में चीन का 45 मिलियन डॉलर का निवेश कराया और साथ ही इथोपिया से अन्य अफ्रीकी देशों को जोडने के लिए अरबों डॉलर का निवेश भी कराया। उन्होने इथोपिया में चीन द्वारा आठ औद्योगिक पार्कों के निर्माण की पहचान की और चीन के शासकीय दैनिक समाचार पत्र में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के साथ एक लेख लिखा और इसे द्विपक्षयीता का मॉडल बताया। चीन ने विश्व को पांच महामारियां – एशियन प्लू, सार्स, एवियन प्लू, स्वाइन प्लू और कोरोना महामारी दी हैं और अब विश्व समुदाय कहने लगा है कि वे चीन से इन महामारियों के प्रसार को नहीं सहेंगे चाहे वे प्रयोगशालाओं से फैल रहे हों या जंगली जानवरों के बाजार से फैल रहे हों। अमरीकी नेतृत्व ने कहा है कि हम जानते हैं कि यह वुहान से आया है और इस बात के परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं कि यह प्रयोगशाला या जंगली जानवरों के बाजार से आया है और विश्व अब यह नहीं सह सकता है कि चीन से महामारियां फैलती रहें।
दूसरा मुद्दा विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताईवान की भागीदारी और सदस्यता है। ताईवान एक लोकतांत्रिक देश है और उसने कोरोना महामारी के नियंत्रण में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है और अन्य देशों को सहायता देने की पेशकश की है। चीन नहीं चाहता कि ताईवान विश्व स्वास्थ्य संगठन में शामिल हो और उसने अमरीका और अन्य देशों से शिकायत की है कि वे ताईवान से जुडे मामलों पर चर्चा कर विश्व स्वास्थ्य संगठन का राजनीतिकरण कर रहे हैं। किंतु स्वयं चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताईवान की भागीदारी को लेकर राजनीति की है। ताईवान ने 2009 से लेकर 2016 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठकों में एक पर्यवेक्षक के रूप में भाग लिया। उस समय एक चीन नीति का उल्लंघन नंही हुआ क्योंकि उस दौरान ताईवा्रन में चीन समर्थित पार्टी के राष्ट्रपति थे किंतु 2016 के बाद जब डेमोकेटिक पीपुल्स पार्टी के डॉ0 साई इंग वेन ताईवान के राष्ट्रपति बने तो चीन ने ताईवान की भागीदारी से अपना समर्थन वापस ले लिया। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी शुरू से ताईवान की पूर्ण स्वतंत्रता की पक्षधर है। अमरीका विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताईवान की पूर्ण सदस्यता का समर्थन कर रहा है। जिनेवा बैठक में 16 सदस्यों ने ताईवान की भागीदारी का अनुरोध किया है किंतु कोरोना महामारी की जांच को लेकर इस मामले को स्थगित कर दिया गया है। किंतु ताईवान की सदस्यता का मुद्दा बीच बीच में उठता रहेगा।
ताईवान की भागदारी और सदस्यता के बारे में भारत का क्या रूख होगा। अब भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष है और इसलिए विभिन्न मुददों पर भारत का प्रभाव रहेगा। भारत ने 1949 से एक चीन नीति का समर्थन किया हालांकि ताईवान के साथ उसके सांस्कृतिक, व्यापारिक और कूटनयिक संबंध बने रहे और अब ताईवानी नेतृत्व को भारत के विद्यमान नेतृत्व से अपेक्षाएं हैं क्योंकि वह साहसिक निर्णयों को लेने के लिए जाना जाता है। 1949 से एक चीन की नीति का समर्थन करने के संबंध में हम पंडित नेहरू की विरासत को नजरंदाज कर सकते हैं। कुछ लोग नेहरू की चीन समर्थक नीति का विरोध करते हैं जिसके अंतर्गत उन्होने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता चीन के पक्ष में छोड़ दी थी। परमाणु लाभ नहीं उठा पाए, तिब्बत मुद्दा और चीन पर विश्वास करना जिसका परिणाम यह हुआ कि 1962 के युद्ध के लिए हम बिल्कुल तैयार नहीं थे और इस नीति को बदला जाना चाहिए।
चीन खुल्लम-खुल्ला भारत का विरोध करता है। चीन लद्दाख, डोकलाम और अन्य क्षेत्रों में सीमाओं पर हमारे लिए समस्याएं खड़ी करता रहा है। पाकिस्तान को समर्थन और पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की गतिविधियों के बारे में भारत की चिंताओं को वह नजरंदाज करता रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा है और उसके बिना भारत का एकीकरण अधूरा है। चीन भारत के भूभागों पर अपना दावा करता है। जब तक चीन अपना दावा नहीं छोड़ता तथा प्रत्यक्ष रूप से या हमारे दूसरे पड़ोसी के माध्यम से भारत का उत्पीडन बंद नहीं करता तब तक चीन को किसी तरह की रियायत देने का कोई कारण नहीं है।भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन में ताईवान की सदस्यता और चीन से तिब्बत की स्वत्रतंता का समर्थन करना चाहिए। इन ऐतिहासिक भूलों को सुधारा जाना चाहिए। ऐसा कर भारत एक चीन नीति का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऐपेक आदि में ताईवान की भागीदारी रही है और समय आ गया है कि भारत चीन की इस दादागिरी का उत्तर दे।
अमरीका और यूरोपीय संघ जैसे देश व्यापारिक लाभों के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों और मानव अधिकारों का सौदा करते रहे हैं। इन देशों को इनके विरुद्ध भारत का समर्थन करना चाहिए। चीन को बढावा देने के लिए यही देश जिम्मेदार हैं किंतु अब यह बेकाबू हो गया है। उन्हें उन राजनीतिक मूल्यों का पालन करना होगा जिनका वे उपदेश देते हैं और इसी से वे चीन का मुकाबला कर सकते हैं। पश्चिमी देशों की दुविधा या उनकी विदेश नीति की विसंगतियां आज विश्व की अधिकतर समस्याओं का कारण हैं। ये समस्याएं पैदा करते हैं और फिर उनका समाधान का प्रयास करते हैं। इराक, अफगानिस्तान, चीन आदि ऐसी ही समस्याएं हैं। इन्हें अपने सिद्धान्तों पर खरा उतरना पडेगा अन्यथा मानव जीवन पर ऐसा ही खतरा मंडराता रहेगा।
डॉ. डीके गिरी
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