नशे के गिरफ्त में देश का भविष्य

nternet addiction is a major problem around the world

भाषा ज्ञान घटता जा रहा है | Internet addiction

अभी तक शराब, गांजा, अफीम और कोरेक्स की लत से लोग छुटकारा (Internet addiction) पाने के लिए परेशान रहते थे। पर अब शराब, गांजा, अफीम और कोरेक्स एक साथ एक और नशा जुड़ गया है इंटरनेट। इंटरनेट का नशा तेजी से फैल रहा है जिसका मुख्य कारण स्मार्टफोन है। जिस तेजी से हर हाथ मे स्मार्टफोन आ रहे हैं उसी रफ्तार से इंटरनेट अडिक्शन की समस्या भी बढ़ती जा रही है।इंटरनेट ने पूरी दुनिया को ग्लोबल विलेज बनाने में एक बड़ी भूमिका निभाई है लेकिन अब यही इंटरनेट पूरी दुनिया के बच्चों, किशोरों और युवाओं को तेजी से साइबर ऐडिक्ट भी बना रहा है। लोग नशीले पदार्थों के कारोबार से अधिक रफ्तार से सोशल मीडिया की लत में घिरते जा रहे है।

50 फीसदी बालक -बालिकाएं मोबाइल इंटरनेट का प्रयोग करते है

युवा तो युवा स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र भी पूरी तरह से इसका शिकार बनते जा रहे है। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस और एम्स के बिहेवियर अडिक्शन यूनिट द्वारा संयुक्त रूप से किए गए सर्वे में यह बात सामने आई हैं कि स्कूलों में पढ़ने वाले हर पांच बच्चों में एक बच्चा प्रोब्लेमेटिक इंटरनेट यूजर यानी पीआईयू का शिकार है। बालिकाओं की अपेक्षा बालकों में इंटरनेट अडिक्शन की समस्या ज्यादा है। 50 फीसदी बालक -बालिकाएं मोबाइल इंटरनेट का प्रयोग करते है जबकि दूसरे माध्यम क्रमश: लेपटॉप, डेस्कटॉप और टैबलेट है।

सबसे ज्यादा इंटरनेट एडिक्शन का खतरा मोबाइल से ही है।ज्यादातर छात्र छात्राएं पढ़ाई के दौरान देर रात को इंटरनेट पर व्यस्त रहते है।कुछ लोगों का मानना है कि इंटरनेट छात्रों को पढ़ने में सहायता करती है। पर इंटरनेट का उपयोग कर पढ़ने से छात्रों को आसानी तो मिलती है पर भविष्य में उसके लिए खतरनाक साबित हो जाता है। यही,नहीं कम्प्यूटर और इंटरनेट के कारण पश्चिमी देशों में हाथ से लिखने की आदत तिरोहित होती जा रही है। भाषा ज्ञान घटता जा रहा है। लोग अपनी मातृभाषा तक को व्याकरण और वर्तनि कि गलतियों के बिना सही ढंग से लिख नहीं पाते हैं।

सबसे अधिक लत से ग्रसित 14 से 24 वर्ष की आयु के बीच बच्चें और युवा है | Internet addiction

यहाँ तक कि डॉक्टरेट (पीचडी) के लिए अपना शोधप्रबंध(थीसिस) भी लोग स्वयं लिखने के बदले इंटरनेट से लेकर (कॉपी-पेस्ट) करने लगे हंै। इंटरनेट से होने वाली यह ‘ज्ञान चोरी’ इस ‘सीना-जोरी तक पहुँच गयी है की जर्मनी में तो देश के रक्षा मंत्री से लेकर आधा दर्जन अन्य नेताओं और सांसदों की डॉक्टर की पदवी छीनी गई थी। एक सच्चाई यह भी है कि कम्प्यूटर और इंटरनेट का प्रसार -प्रचार बढ़ने से केवल अश्लीलता और भाषा ज्ञान की ही सिर्फ गिरावट नहीं आ रही बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी गिर रहा है।

इंटरनेट भी शराब जैसे नशे का रूप ले सकता है

अपराध और हिंसावृती भी बढ़ रही है कुछ उसी तरह जिस तरह शराब पीने से होता है। इंटरनेट भी शराब जैसे नशे का रूप ले सकता है। इस नशे की भी ऐसी लत लग सकती है कि कम आयु के छात्र तो क्या अधेड़ आयु के लोग भी मानसिक और शारीरिक खंडहर बन कर रह जाएं। शराब के नशेड़ी की तरह ही इंटरनेट का लत भी एक दिन लतों का ऐसा देवता सिद्ध हो सकता है, जिस पर बातों का कोई असर नहीं होता। अपने आप को सभ्य ,सुसंस्कृत और विकसित समझने वाला जर्मनी इसी समस्या से जूझ रहा है। जर्मन स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से हाल ही मे कुछ ऐसे तथ्य सामने आए, जो चौकाने वाले ही नही, सरकार के लिए काफी चिंताजनक भी है। जर्मनी की सवा आठ करोड़ की जनसंख्या में, जो भारत मे आंधप्रदेश की जनसंख्या से भी कम है, 5 लाख 60 हजार लोग इंटरनेट के लत से ग्रसित है। सबसे अधिक लत से ग्रसित 14 से 24 वर्ष की आयु के बीच बच्चें और युवा है।

लोग अपनी वास्तविक समस्याओं से कट रहे है | Internet addiction

सर्वे के मुताबिक 37 फीसदी छात्र अपने मिजाज और पढ़ाई के प्रेशर से ध्यान हटाने के लिए इंटरनेट का सहारा ले रहे है। इस सर्व में दिल्ली के साउथ डिस्ट्रिक्ट के 25 नामी स्कूलों के कुल 6291 छात्रों ने हिस्सा लिया। इसमें कक्षा 6 से 12 वी तक के छात्रों को शामिल किया गया। सर्वे छात्रों के इंटरनेट यूजर्स पेटर्न पर आधारित था जिसमे साइकोमेट्रिक स्केल पर 15 अलग-अलग आइटम्स या कैटोगरी में छात्रों के इंटरनेट पर बिताए गए समय और पैटर्न पर उनको रेट किया गया। अगर स्कोर 60 के ऊपर है तो छात्र पिआईयू यानी प्रोब्लेमेटिक इंटरनेट यूजर्स है।

19 फीसदी छात्रों के 60 से ऊपर स्कोर मिले जो कि बेहद चिंता का विषय

सर्वे के मुताबिक 19 फीसदी छात्रों के 60 से ऊपर स्कोर मिले जो कि बेहद चिंता का विषय है। यह आंकड़े उतरी अमरीका और यूरोपीय देशों से कही ज्यादा है। आज हालात यह है कि डिजिटल लत से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका , चीन , दक्षिण कोरिया ,अल्जीरिया जैसे कई देशों में क्लिनिक खोले गए है। बैंगलोर और दिल्ली जैसे मैट्रो शहरों में डी-एडिक्शन सेंटर खोले जा रहे है। दरअसल आज देश ही नही ,दुनियाभर में इंटरनेट की लत एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसे कम करने के लिए ही दुनिया भर मे इंटरनेट डी-एडिक्शन सेंटर्स की जरूरत महसूस की जाने लगी है। इन डी-एडिक्शन सेंटर्स पर ‘जिंदगी को आॅफलाइन बनाने’ पर काम किया जाता है। डिजिटल लत की वजह से लोग अपनी वास्तविक समस्याओं से कट रहे है, साथ ही लोगों का सामाजिक दायर भी कम हो रहा है।

अभिजीत मेहरा

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