किसी भी समाज की प्रगति उस समाज में महिलाओं और पुरुषों द्वारा हासिल की गई प्रगति से मापी जाती है । आज आठ मार्च को विश्व भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है , जिसकी इस वर्ष की थीम है “डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकी”। आइए इस विषय की जरुरत और महत्ता को समझते हैं। ट्रेन की टिकट बुकिंग, प्रियजनों को सन्देश, बैंक लेनदेन ,शिक्षा, खरीदारी, चिकित्सा नियुक्ति की बुकिंग ,यहाँ तक कि बच्चों के लिए वर-वधु ढूंढना,वर्तमान में सब कुछ एक डिजिटल प्रक्रिया से गुजरता है और दूसरी बात क्या ऐसा कोई क्षेत्र है जहाँ औरतों की भागीदारी न हो या वो उस कार्य को करने में सक्षम न हों, शायद नहीं ।
उनकी क्षमता या योग्यता या शारीरिक संरचना या जैविक जिम्मेदारियों के कारण उनकी भागीदारी कम या ज्यादा तो हो सकती है लेकिन उनकी अनुपस्तिथि कतई नहीं । फिर भी यदि हम आई टी सेक्टर में देखें तो उनकी भागीदारी कुछ कम नजर आती है ,कारण एक नहीं अनगिनत हैं जैसे, आंकड़ों के अनुसार 37% महिलाएं आज भी इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करती हैं या यूँ कहिये इंटरनेट का उपयोग करने में असमर्थ और असहज हैं, लड़कों की तुलना में उनके पास बेहतर स्मार्ट फ़ोन नहीं हैं , ऑनलाइन असुरक्षित महसूस करती हैं।
आपने जैसे ही सोशल मीडिया पर प्रोफाइल बनाई वैसे ही अनगिनत हेलो कहाँ से हो..? कैसी हो.. असहज करने वाले हजारों मैसेज इनबॉक्स में ऐसे आकर बैठ जाते हैं जैसे चौपाल में लोग ..दूसरी तरफ शिक्षा …लड़कों की तुलना में लड़कियों को आज भी कम ही शिक्षित किया जाता है और यदि किया भी जाता है तो प्राथमिकता घर – परिवार की जिम्मेदारी और ज़्यादा से ज़्यादा आठ से दो बजे या नौ से पाँच बजे तक की नौकरी की होती है । इसलिए डिजिटल वर्ल्ड में संलग्न होने के लिए आवश्यक डिजिटल कौशल विकसित करने में वे असमर्थ होती हैं, जिस कारण विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग संबंधित करियर बनाने के उनके अवसर कम हो जाते हैं ।
बढ़ते वैश्विक संकटों के सामने, आज एक ज्वलंत प्रश्न उठता है कि, प्रौद्योगिकी की मौजूदा असमानताओं को चौड़ा करने और कुछ लोगों के हाथों में शक्ति केंद्रित करने की अनुमति दें, या इसे सभी के लिए अधिक सुरक्षित, अधिक टिकाऊ, अधिक न्यायसंगत और भविष्य के सतत विकास का आधार बनाएं।आज का जीवन मजबूत तकनीकी एकीकरण पर निर्भर करता है , अतः महिलाओं को प्रौद्योगिकी में लाने से अधिक रचनात्मक समाधान मिल सकते हैं और इसमें नवाचारों की अधिक संभावना भी हो सकती है जो न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हैं और राष्ट्र उन्नति में सहयोग भी । अतः आप सभी से निवेदन है कि महज इस थीम को एक दिन का सेलेब्रेशन न बनाएं अपितु प्रण लें कि हम न केवल बेटियों को शिक्षित करेंगे बल्कि उच्च शिक्षा भी देंगे,प्रण लें कि सड़कों पर ही नहीं बल्कि डिजिटल वर्ल्ड में भी बेटियों और महिलाओं को सुरक्षित महसूस कराएँगे,हम घरेलू हिंसा के साथ डिजिटल हिंसा का भी विरोध करेंगे ताकि डिजिटल तकनीकों तक पहुँच और दक्षता के मामले में पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती असमानताओं को कम किया जा सके।
इंटरनेशनल वीमेन डे 2023 की थीम में एक शब्द और है नवाचार। नवाचार दो शब्दों नव + आचार से मिल कर बना है। नव का अर्थ है नवीन या नया और आचार का अर्थ होता है व्यवहार अथ्वा रहन-सहन। नवाचार हर क्षेत्र का मूलरूप आधार है ,किसी भी क्षेत्र में नए-नए तथ्य, सिद्धांत, विधियां एवं सामग्रियों को जोड़ना नवाचार कहलाता है ताकि नित्य आ रही समस्याओं को उसमें आवश्यक परिवर्तन करके सुधार किया जा सके।
इस पत्र के माध्यम से में यही कहना चाहूँगी कि मैं नारीवादी महिला ही नहीं, मैं नारीवादी पुरुष का सन्देश देना चाहती हूँ जहाँ एक दूसरे का सम्म्मान हो , लिंग के आधार पर असमानता न हो। सकारात्मक पहलू देखें तो बीते कुछ सालों में महिला फ़ोन यूजर्स की तादाद बढ़ने से उनके लिए अवसरों का पिटारा खुला है, ऑनलाइन शॉपिंग ,ऑनलाइन क्लास, डांस, कुकिंग ,योग, फिटनेस मेकअप आर्ट सभी जगह डिजिटल प्लेटफार्म यूट्यूब व फेसबुक के जरिये महिलाएं सक्रिय हैं और परिवार के आर्थिक बोझ को साझा कर रही हैं। किसी भी राष्ट्र को लैंगिक असमानता की एक बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ती है, क्योंकि यह उत्पादकता और आर्थिक विकास में बाधा डालती है, जबकि, लैंगिक समानता समाज के सभी सदस्यों की पूरी क्षमता का दोहन करके आर्थिक विकास में वृद्धि करती है । अंत में यही कहना चाहूँगी “जब हम अपनी प्रगति के लिए प्रयास करते हैं, तो हम वैश्विक प्रगति की भी परिकल्पना करते हैं” ।
अतः साथ-साथ आगे बढ़े ।
स्मिता अग्रवाल , हिसार
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