उत्तरभारत में पिछले कई महीनों से आत्म-सम्मान के लिए हत्याओं का सिलसिला भयानक रूप लेता जा रहा है। उधर, शिक्षा व आर्थिक प्रगति के चलते भारतीय समाज में जमीन-आसमान का परिवर्तन हो चुका है। आज से चालीस वर्ष पहले का भारत पारिवारिक व जातिगत बंधनों में रहना पसंद करता था। जहां परिवार, रिश्तेदार, अपना गौत्र, जाति व गांव को लोग अपने-आपको एक ईकाई की तरह ही मानते थे, लेकिन अब चालीस साल पुराना वह समाज बदल चुका है। इस बदलाव में सबसे क्रांतिकारी भूमिका संचार माध्यमों, जिनमें टीवी, इंटरनेट, अखबारों ने निभाई है। बदलाव अपने साथ जहां परिवर्तन की नई हवा लाते हैं, वहीं ये कई दफा एक समस्या भी बनते हैं। देश में आत्मसम्मान के लिए हत्याओं के अपराध बढ़ रहे हैं। हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान कोई भी प्रदेश इससे अछूता नहीं, जहां इस तरह के अपराध न हो रहे हों।
यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में भी लोग अपने सामाजिक रीति-रिवाजों से जुड़ी प्रतिष्ठा के चलते नवयुवकों के आपसी संबंधों पर मरने-मारने पर उतारु हैं। सरकार देश में जातिवादी, वर्गवादी व्यवस्था का अंत चाहती है। सरकार ने प्रावधान किया है कि यदि युवा अन्तरजातीय शादी करते हैं, तब उन्हें शगुन या प्रोत्साहन के तौर पर एक लाख रुपए दिया जाएगा। भारतीय समाज की पुरानी पीढ़ी अन्तरजातीय संबंधों को नफरत से देखती है। वह नहीं चाहती कि उनके पुत्र-पुत्रियां विवाह पूर्व आपस में किसी को अपनी पसंद बनाएं। प्रौढ़ व वृद्ध पीढ़ी युवाओं को ऐसे युगलों के खिलाफ उकसाती भी है, जो समाज में अन्तरजातीय विवाह करने की राह पर चलते हैं, न्यायालय के आदेशों पर अन्तरजातीय विवाह करने वालों के लिए सुरक्षित घर व सुरक्षा की व्यवस्था भी सरकारें कर रही हैं, लेकिन सब विफल है।
यहां जो सामाजिक टकराव है, इसे सरकार, युवाओं एवं पुरानी पीढ़ी को मिलकर सुलझाना होगा। सबसे पहले देश में जाति की ऊंच-नीच के मानसिक बंधनों को गिराना होगा। यह सब तब संभव है, जब आरक्षण व जातिवादी राजनीति पर प्रतिबंध लगे। लोगों में सही धार्मिक शिक्षा व आधुनिक शिक्षा का अर्थ जाए, जो यह समझा सके कि मनुष्य एक-समान है। कोई उच्च अथवा नीच जाति या कुल नहीं है। साथ ही यह भी माहौल बने कि जो व्यक्ति बुरे कर्म करता है, जैसे नशा करना, वेश्यावृति करना, बेइमानी, भ्रष्टाचार करने वाले लोगों से नफरत की जाए, अन्यथा कोई व्यक्ति नफरत के लायक नहीं। समाज को समझना होगा कि सामाजिक जीवन सदैव परिवर्तनशील रहता है। अत: यह किसी एक मान्यता व विचारों में बंधा नहीं रह सकता।
लोग शिक्षा, पूंजी हासिल ही इसलिए करते हैं कि वह पहले से बेहतर जीवन जी सकें। सबसे हिल-मिल सकें, ऐसे में पुरानी मान्यताओं पर सिमटकर अपराध करना उचित नहीं। युवाओं को भी सोचना होगा, चूंकि समाज की अंत:संबंधों के प्रति नफरत का कारण वासनापूर्ण संबंध हैं। जहां प्रेम या शादी का विचार न होकर यौन संबंधों को जीना मात्र होता है, जोकि समाज को आत्मसम्मान के लिए हत्या करने के लिए उकसाते हैं।
अत: युवाओं को चाहिए कि वह भी अच्छी शिक्षा हासिल कर अपने लिए व परिवार के लिए समाज में एक सम्मानजनक स्थान हासिल करें। वह नौकरी, व्यापार, पेशेवर कोई भी हो सकता है। महज विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण को ही जीवन का लक्ष्य न बनाएं, चूंकि अब देखा जा रहा है कि किशोर उम्र में ही युवक-युवतियां भटक रहे हैं, जो उनके अपने जीवन व तरक्की के लिए भी कोई अच्छी पहल नहीं कही जा सकती।