अगली सुनवाई 10 सितम्बर को
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को रिण अधिस्थगन (लोन मोरेटोरियम) मामले में लोगों को अंतरिम राहत देते हुए कहा है कि यदि बैंक ने अगस्त तक बैंक रिण खाते को गैर निष्पादित राशि (एनपीए) घोषित नहीं किया है तो उसे अगले दो महीने तक भी एनपीए घोषित नहीं किया जाए। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने आज लोन मोरेटोरियम मामले की सुनवाई की । अब अगली सुनवाई 10 सितंबर को होगी। आज की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि सरकार रिण का भुगतान नहीं कर पाने पर किसी पर जबरन कार्रवाई नहीं करे। सरकार की ओर से सोमवार को शीर्ष न्यायालय में हलफनामा दिया गया जिसमें यह संकेत दिया गया है कि मोरेटोरियम को दो साल तक बढ़ाया जा सकता है किंतु इसका लाभ कुछ ही क्षेत्र को ही मिलेगा । हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि ब्याज पर ब्याज मामले का निर्णय रिजर्व बैंक लेगा। केंद्र का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘हम नुकसान का आकलन कर ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित कर रहे हैं जिनको राहत दी जा सकती है। पीठ ने इस पर कहा कि इस मामले में अब और देर नहीं की जा सकती है। यह मामला वैश्विक महामारी कोविड -19 महामारी को देखते हुए केंद्रीय बैंक के 27 मार्च के उस निर्णय से संबंधित है जिसमें बैंकों को तीन महीने की अवधि के लिए मासक किश्तों के भुगतान (ईएमआई)के लिए मोहलत दी गई थी।
इस छूट को रिजर्व बैंक ने 22 मई को 31 अगस्त तक के लिए तीन माह और बढ़ा दिया था। इस निर्णय से कर्ज पर ईएमआई पर छह माह की मोहलत हो गई थी। इस मामले में दाखिल याचिका में कहा गया है कि बैंक ईएमआई पर मोहलत देने के साथ- साथ ब्याज लगा रहे हैं जो कि गैरकानूनी है। ईएमआई का ज्यादातर हिस्सा ब्याज का ही होता है और इस पर भी बैंक ब्याज लगा रहे हैं अर्थात ब्याज पर भी ब्याज लिया जा रहा है। इसी याचिका पर शीर्ष अदालत ने रिजर्व बैंक और केंद्र से जवाब मांगा था। मेहता ने दलील दी कि, ‘बैंकिंग क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, हम ऐसा कोई भी निर्णय नहीं ले सकते हैं जो अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकता हो। हमने ब्याज माफ नहीं करने का फैसला लिया है लेकिन भुगतान के दबाव को कम किया जाएगा।
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