शिक्षा मंत्रालय स्कूलों में विश्वस्तरीय शिक्षा देने की पहल तेजी से अपनाने की तैयारी कर रहा है। इसलिए शिक्षा मंत्रालय और एनसीईआरटी ( राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की संयुक्त टीम दुनिया में बेहतर स्कूली शिक्षा देने वाले उन देशों का दौरा कर रही हैं, जिनकी शिक्षा प्रणाली मानक और वैश्विक गुणवत्ता के अनुरूप है, तथा जिसे भारत में भी अपनाया जा सकता है।
नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है – भारत में शिक्षा प्रणालियों में परिवर्तनकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना और शिक्षा व्यवस्था को समग्र, बहु-विषयक और व्यावहारिक बनाना। शिक्षण संस्थानों को ज्ञान और नवोन्मेष का उभरता केंद्र बनाने के प्रयास करना। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा शिक्षा तक में युगांतकारी परिवर्तन किया गया है। हालांकि विशेषतौर पर स्कूलों के लिए एनईपी आने के बाद कई नए कदम उठाए जा रहे है। यथा, कक्षा और परीक्षा पद्धति, पाठ्यचर्या से लेकर पाठ्यक्रम को वैश्विक शैक्षिक चुनौतियों के अनुरूप बनाने और उसे धरातल पर लागू करने और क्रियान्वयन के लिए प्रयास जारी हैं।
चूंकि शिक्षा नीति में विशेष तौर से स्कूली शिक्षा के उत्थान पर बल दिया गया। इसी संदर्भ में तुलनात्मक दृष्टि से दुनिया की श्रेष्ठ स्कूली शिक्षा प्रणालियों के मूल बिंदुओं के आकलन के लिए, उनका शोध, अध्ययन और विमर्श करने लिए और देश में स्कूली शिक्षा के स्तर पर विश्वस्तरीय शिक्षा देने की पहल अमल में लाने के लिए शिक्षा मंत्रालय द्वारा कार्य किया जा रहा है। इससे यह भी जाहिर हो रहा है कि भारतीय बच्चों को विश्वस्तरीय शिक्षा देने की मुहिम को यह रफ्तार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) के आने के बाद मिलने लगी है। जिसमें भारत के शिक्षण संस्थानों को फिर से नालंदा व तक्षशिला जैसा गौरव दिलाने की सिफारिश की गई है। लिहाजा, इसके तहत शिक्षा मंत्रालय अभी दुनिया के टॉप एजुकेशन सिस्टम वाले देशों के स्कूली शिक्षा की अच्छी पहल के अध्ययन करने में जुटा है।
फिलहाल शिक्षा मंत्रालय और एनसीईआरटी ( राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की संयुक्त टीम दुनिया में बेहतर स्कूली शिक्षा देने वाले उन देशों का दौरा कर रही हैं, जिनकी शिक्षा प्रणाली मानक और वैश्विक गुणवत्ता में सबसे आगे है, तथा जिसे भारत में भी अपनाया जा सकता है। जो हमारी स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को विश्वस्तरीय मानकों पर मजबूती से खड़ा कर सके। यह संयुक्त टीम यह अब तक आस्ट्रेलिया, कोरिया, अमेरिका सहित करीब आधा दर्जन देशों की दौरा कर चुकी है। मौजूदा समय में यह टीम फिनलैंड के दौरे पर है। एनसीईआरटी के मुताबिक विश्वगुरु बनने के लिए दुनिया का अध्ययन करना जरूरी है।
विश्वस्तरीय शिक्षा के मानक: विश्वस्तरीय शिक्षा के लिए कई मानक निर्धारित होते है। जैसे तकनीक का समावेश और प्रयोग,विज्ञान के प्रति सजगता तथा राष्ट्रीय सांस्कृतिक मूल्यों को महत्व आदि प्राथमिक आधार है। इसके अलावा स्कूल स्तर पर अच्छी अधोसंरचना, हर विद्यार्थी के लिए परिवहन सुविधा, नर्सरी, केजी कक्षाएं, शत-प्रतिशत शिक्षक एवं अन्य स्टाफ, स्मार्ट क्लास एवं डिजिटल लर्निंग, सुसज्जित प्रयोगशालाएं एवं समृद्ध पुस्तकालय, व्यावसायिक शिक्षा और अभिभावकों की सहभागिता की सुनिश्चितता। स्मार्ट क्लास और स्मार्ट आॅफिस, जिसमें डैश बोर्ड पर उपलब्ध सूचना के आधार पर शिक्षकों एवं सुपरविजन स्टाफ की प्रभावी मॉनिटरिंग होती है और विद्यार्थियों-स्कूल संबंधी डेटा तथा इंटरनेट आॅफ थिंग्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बिग डेटा और एनालिटिक्स के माध्यम से मीनिंगफुल एनालिसिस कर उसके स्कूली शिक्षा के सभी नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं। इसके अलावा स्टेम लैब स्मार्ट क्लास की पहली शर्त है।
यह लैब कई चीजों में स्मार्ट क्लास का बड़ा रूप कहा जा सकता है। स्टेम लैब के द्वारा विज्ञान, तकनीक और गणित विषय को विद्यार्थियों की योग्यता एवं रुचि के अनुसार रोचक तरीके से सिखाया जाता है। बच्चों को खिलौनों के साथ-साथ हर एक चीज की जानकारी प्रोजेक्ट के माध्यम से बताने का काम होता है। स्टेम लैब से बच्चों को एक मंच मिलता है, जहां वे अपने सोच को उकेर सकते हैं। वर्तमान में तकनीक का भरपूर उपयोग वर्ल्ड क्लास शिक्षा की श्रेणी में आता है।
टॉप एजुकेशन सिस्टम वाले देशों की शिक्षा : इंटरनेशंस के सर्वे के अनुसार फिनलैंड, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड और दक्षिण कोरिया दुनिया के टॉप 4 एजुकेशन सिस्टम वाले देश है। इसमें फिनलैंड का एजुकेशन सिस्टम उच्च गुणवत्ता का माना जाता है। यहां स्टूडेंट्स को क्रिएटिविटी के साथ पढ़ाया जाता है। यहां के टिचर कम्पटीटिव दौड़ के खिलाफ है। 16 साल की उम्र तक बच्चों को किसी भी तरह का एग्जाम नहीं देना पड़ता है। इसमें बच्चों को अच्छा इंसान बनाने पर जोर दिया जाता है। इसका साथ ही उन्हें हेल्थ के बारे में बताया जाता है। बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाता है। बच्चों को उनके हिसाब से पढ़ने की छूट है।
बेसिक एजुकेशन पॉलिसी ऐसी है जहां टीचर बच्चे में ये क्षमता पैदा करे कि वो अपना मूल्यांकन खुद ब खुद कर सकें। इस सिस्टम की सबसे अच्छी बात ये है कि यहां के स्कूलों में अमीर घरों के बच्चे और मिडिल और वर्किंग क्लास के बच्चे साथ-साथ पढ़ाई करते हैं। यहां के सभी स्कूल एक जैसे हैं। इसके साथ ही यहां गरीब बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाती है और स्कूल से जुड़ी सारी सामग्रियां उन्हें मुफ़्त मिल जाती है। फिनलैंड के स्कूल में टीचर एक दिन में चार घंटे ही पढ़ाते हैं। यहां बच्चों पर किसी भी तरह का बोझ नहीं होता, वे अपनी मर्जी और अपनी क्षमता के हिसाब से अपनी विषय चुन सकते हैं। वहीं, सिंगापुर का एजुकेशन सिस्टम, प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल एसेसमेंट(पीआईएसए) की रैंकिंग में सबसे ऊपर है।
सिंगापुर शिक्षा मंत्रालय का उद्देश्य है ‘छात्रों को उनकी पूरी क्षमता का एहसास करने और आजीवन सीखने के जुनून को विकसित करने में मदद करने के लिए छात्रों को अपनी प्रतिभा को खोजने और सर्वश्रेष्ठ बनाने में मदद करना’ है। यहां, प्रमुख रूप से एजुकेशनल रिसर्च पर विशेष जोर दिया जाता है। टेक्स्टबुक, वर्कशीट और पढ़ाए गए पाठ की प्रैक्टिस-शीट का इस्तेमाल स्टूडेंट्स की योग्यता बढ़ाने में किया जाता है। टीचर्स की योग्यता का आकलन, उत्तरदायित्व और पढ़ाने की उसकी शैली का मूल्यांकन इसी के जरिये होता है। दसरी तरफ स्विट्जरलैंड की स्विस शिक्षा प्रणाली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने उच्च शैक्षणिक मानकों, प्रसिद्ध अनुसंधान आउटपुट और छात्र-केंद्रित शिक्षण विधियों के लिए प्रसिद्ध है। शिक्षा को बड़े पैमाने पर राज्य द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। एक छात्र को केवल स्कूल की आपूर्ति, किताबें और स्कूल ट्रिप के लिए ही पैसा देना पड़ता है।
वर्ल्ड क्लास शिक्षा के लिए हम क्या करें : भारत में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली पुस्तकों पर केंद्रित रही है। जबकि,दुनिया में पुस्तकों के अतिरिक्त बच्चों को विस्तृत ज्ञान देना अहम माना जाता है। लिहाजा,सही तरीके से और सही दिशा में प्रयास किए जाए तो नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के बाद भारत एजुकेशन सेक्टर में इंटरनेशनल लेवल के कॉम्पीटिशन पर आ जाएगा। इसके लिए शिक्षकों और छात्रों, दोनों के कौशल और अध्ययन प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए प्रौद्योगिकी (वीडियो, आइसीटी ओपन रिसोर्स, सेल्फ लर्निंग माड्यूल आदि) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। शिक्षकों को प्रौद्योगिकी विकास की पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वे अपनी अध्यापन क्षमता में भी सुधार कर सकें। बहरहाल,भारत की शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे बड़ी होने के बावजूद इसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
ये चुनौतियां पठन-पाठन की गुणवत्ता, सरकारी-निजी भागीदारी, विदेशी संस्थानों का प्रवेश, रिसर्च क्षमता में वृद्धि और फंडिंग, इनोवेशन, अंतरराष्ट्रीयकरण, वैश्विक अर्थव्यवस्था की बदलती मांग जैसे क्षेत्रों में हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना आवश्यक है। अभी तक हम अमेरिका-यूरोप के स्कूल और कॉलेजों का उदाहरण देते थे कि कैसे वहां छोटी क्लास से ही बच्चों को तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा दी जा रही है। बच्चे पढ़ाई के साथ अपनी हॉबी पूरी कर स्पोर्ट्स और आर्ट्स के क्षेत्र में नाम कमा रहे हैं। अब प्रयास होना चाहिए कि पूरे विश्व से ना केवल हम कदम से कदम मिला सके बल्कि पूरा विश्व हमारे देश का उदाहरण दें।
-नरपतदान बारहठ
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