दर्दनाक हादसे
लौंगोवाल(पंजाब) में एक स्कूल वैन को आग लगने से घटित हुए दर्दनाक हादसे के बाद प्रशासन की नींद पूरी तरह से खुल गई है। हादसे के दूसरे दिन धड़ाधड़ प्राईवेट स्कूल बसों की जांच की गई। एक ही दिन में 1649 बसों के चालान काटे गए व 253 बसों को जब्त किया गया। यह कार्रवाई साबित करती है कि ट्रांसपोर्ट विभाग किस तरह कुंभकरणी नींद सोया हुआ था।
अगर कानून की पालना नाम की कोई चीज होती तब वाहन जब्त करने की संख्या 253 तक नहीं पहुंचती। विभाग की एक दिन की चुस्ती-फुर्ति ने साबित कर दिया है कि कितने बड़े स्तर पर लापरवाही हो रही है। अगर यह जांच बदस्तूर जारी रहे तो बहुत से दर्दनाक हादसे हों ही नहीं। मीडिया में चैकिंग की खबरें व विभाग के चुस्त-दुरूस्त होने की बजाय निक्कमे होने की तस्वीरें अधिक प्रसारित की जाती हैं। विभाग कितने लम्बे समय से लापरवाही करता आ रहा है, इस संबंधी अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं।
वाहनों की चैकिंग करना अच्छी बात है लेकिन क्या चैकिंग का यह सिलसिला विभाग की कार्यप्रणाली का सदैव अंग बना रहेगा, यह सवाल ही सबसे अहम है? चलन यही बना हुआ है कि घटना घटने के बाद सरकारी मशीनरी में जहां खामियां होती हैं, उसे सही करने के लिए धड़ाधड़ कार्रवाई की जाती है लेकिन धीरे-धीरे कार्य करने का तरीका अपनी पुरानी लापरवाही पर आ जाता है। असल में लापरवाह होने का चलन बहुत समय पहले ही खत्म हो जाना चाहिए था।
सीख लेने के लिए 2016 में जिला अमृतसर में घटित हुई घटना काफी थी जब अज्ञात ड्राईवर के कारण स्कूली बस सेमनाले में गिर गई थी व उसमें 8 बच्चे मौत के मुंह में समा गए थे। इस घटना ने सभी को झिंजोड़ कर रख दिया था लेकिन किसी ने इस घटना से सीख नहीं ली व अब भी वैसी ही घटना घटित हो गई। महज स्कूली बसों व ड्राईवरों संबंधी कानून लागू करने से ही काम नहीं चलेगा। ग्रामीण क्षेत्र में कितने नहरी व सेमनाले के पुल हैं, जहां रेलिंग टूटी हुई है। समाचार प्रकाशित होेने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। अगर कानून लागू करने की हिम्मत होगी तब माहौल बनेगा व उसकी पालना भी होगी। हादसों की भरपाई केवल मुआवजा देने, घटना की जांच करवाने या दोषियों को सजाएं देने के साथ ही नहीं होगी बल्कि प्रशासन स्तर पर ढ़ांचें में सुधार करने एवं कठोरता से कानून लागू करना होगा। हादसे फिर से न दोहराए जाएं, इस लक्ष्य को लेकर चलने से ही कानूनों का पालन हो सकता है।
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