देशवासियों को ‘‘इंकलाब जिन्दाबाद’’ और ‘‘साम्राज्यवाद मुदार्बाद’’ का क्रांतिकारी नारा दे, जंग-ए-आजादी में निर्णायक मोड़ देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज 88वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 23 मार्च, 1931 को बरतानिया हुकूमत ने सरकार के खिलाफ क्रांति का बिगुल फंूकने के इल्जाम में उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। सजा पर वे जरा से भी विचलित नहीं हुए और हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर चढ़ गए। महज साढ़े तेईस साल की छोटी सी उम्र में शहादत के लिए फांसी का फंदा हंसकर चूमने वाले, क्रांतिकारी भगत सिंह की पैदाइश 28 सितम्बर 1907 को अविभाजित भारत के लायलपुर बंगा में हुई थी। शहीदे आजम भगत सिंह भारत ही नहीं, बल्कि समूचे भारतीय उपमहाद्वीप की सांझा विरासत का क्रांतिकारी प्रतीक हैं। भगत सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। वे जिस परिवार में पैदा हुए, उसका माहौल ही कुछ ऐसा था कि उन्हें क्रांतिकारी बनना ही था। उनके दादा अर्जुन सिंह आर्यसमाजी थे और दो चाचा स्वर्ण सिंह व अजित सिंह स्वाधीनता संग्राम में अपना जीवन समर्पित कर चुके थे। यही नहीं उनके पिता किशन सिंह कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे। खास तौर पर शहीद करतार सिंह सराभा उनके आदर्श थे। जिनका फोटो वे हमेशा अपनी जेब में रखते थे। जेल जीवन के दो वर्षों में भी भगत सिंह ने खूब अध्ययन, मनन, चिंतन व लेखन किया। जेल के अंदर से ही उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन को बचाए रखा और उसे विचारधारात्मक स्पष्टता प्रदान की। भगत सिंह सिर्फ जोशीले नौजवान नहीं थे, जोकि जोश में आकर अपने वतन पर मर मिटे थे। उनके दिल में देशभक्ति के जज्बे के साथ एक सपना था। भावी भारत की एक तस्वीर थी। जिसे साकार करने के लिए ही उन्होंने अपना सर्वस्व: देश पर न्यौछावर कर दिया। वे सिर्फ क्रांतिकारी ही नहीं, बल्कि युगदृष्टा, स्वप्नदर्शी, विचारक भी थे। वैज्ञानिक ऐतिहासिक दृष्टिकोण से सामाजिक समस्याओं के विश्लेषण की उनमें अद्भुत क्षमता थी।
भगत सिंह ने कहा था कि ‘‘मेहनतकश जनता को आने वाली आजादी में कोई राहत नहीं मिलेगी।’’ उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। आज देश में प्रतिक्रियावादी शक्तियों की ताकत बढ़ी है। पंूजीवाद, बाजारवाद, साम्राज्यवाद के नापाक गठबंधन ने सारी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है। अपने ही देश में हम आज दुष्कर परिस्थितियों में जी रहे हैं। चहुं ओर समस्याएं ही समस्याएं हैं। समाधान नजर नहीं आ रहा है। ऐसे माहौल में भगत सिंह के फांसी पर चढ़ने से कुछ समय पूर्व के विचार याद आते हैं,‘‘जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है, तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वह हिचकिचाते हैं, इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्प्रिट पैदा करने की जरूरत होती है। अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता है। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते में ले जाने में सफल हो जाती हैं। इससे इन्सान की प्रगति रूक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रांति की स्प्रिट ताजा की जाए। ताकि इंसानियत की रूह में एक हरकत पैदा हो।’’
हालिया सालों में साम्राज्यवाद का नंगा नाच सारी दुनिया ने देखा है। अफगानिस्तान, इराक, सीरिया समेत कई देश अमेरिकी साम्राज्यवाद के शिकार हुए हैं। भगत सिंह ने साम्राज्यवाद और साम्राज्यवादियों के इरादे पूर्व में ही भांप लिए थे। लाहौर साजिश केस में विशेष ट्रिब्यूनल के सामने साम्राज्यवाद पर अपने बयान में भगत सिंह ने कहा था कि ‘‘साम्राज्यवाद मनुष्य के हाथों मनुष्य के और राष्ट्र के हाथों राष्ट्र के शोषण का चरम है। साम्राज्यवादी अपने हितों और लूटने की योजनाओं को पूरा करने के लिए न सिर्फ न्यायालयों एवं कानूनों को कत्ल करते हैं, बल्कि भयंकर हत्याकाण्ड भी आयोजित करते हैं अपने शोषण को पूरा करने के लिए जंग जैसे खौफनाक अपराध भी करते हैं। जहां कई लोग उनकी नादिरशाही शोषणकारी मांगों को स्वीकार न करें या चुपचाप उनकी ध्वस्त कर देने वाली और घृणा योग्य साजिशों को मानने से इन्कार कर दें, तो वह निरअपराधियों को खून बहाने में संकोच नहीं करते। शांति व्यवस्था की आड़ में वे शांति व्यवस्था भंग करते हैं।’’
भगत सिंह की सारी जिंदगानी पर यदि हम गौर करें, तो उनकी जिन्दगी के आखिरी चार साल क्रांतिकारिता के थे। इन चार सालों में भी, उन्होंने अपने दो साल जेल में बिताये। लेकिन इन चार सालों में उन्होंने एक सदी का सफर तय किया। क्रांति की नई परिभाषा दी। अंगे्रजी हुकूमत, नौजवानों में भगत सिंह की बढ़ती लोकप्रियता और क्रांतिकारी छवि से परेशान थी। लिहाजा अवाम में बदनाम करने के लिए भगत सिंह को आतंकवादी तक साबित करने की कोशिश की गई। मगर क्रांति के बारे में खुद, भगत सिंह के विचार कुछ और थे। वे कहते थे ‘‘क्रांति के लिए खूनी संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा को कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल की संस्कृति नहीं है। क्रांति से हमारा अभिप्राय यह है कि वर्तमान व्यवस्था जो खुले तौर पर अन्याय पर टिकी हुई है, बदलनी चाहिए।’
’ भगत सिंह ने क्रांति शब्द की व्याख्या करते हुए कहा था कि ‘‘क्रांति से हमारा अभिप्राय अन्तत: एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था से है, जिसको इस प्रकार के घातक हमलों का सामना न करना पड़े और जिसमें सर्वहारा वर्ग की प्रभुसत्ता को मान्यता हो।’’ यानी भगत सिंह हक, इंसाफ की लड़ाई में हिंसा को जायज नहीं मानते थे। उनकी लड़ाई सिर्फ व्यवस्था से थी। सत्ता में सर्वहारा वर्ग काबिज हो, यही उनकी जिन्दगी का आखिरी मकसद था। देश के कई हिस्सों में चरमपंथियों द्वारा क्रांति के नाम पर जारी हिंसा, आतंकवाद को भगत सिंह के विचार आज भी आईना दिखलाते हैं, ‘‘आतंकवाद हमारे भीतर क्रांतिकारी चिन्तन के, पकड़ के अभाव की अभिव्यक्ति है।’’ भगत सिंह आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार हमें नई क्रांति की राह दिखलाते हैं। जिंदगी के जानिब भगत सिंह की सोच हमेशा सकारात्मक रही। खुद उन्हीं के अल्फाजों में ‘‘हवा में रहेगी मेरे विचार की बिजली, ये मुश्ते खाक है फानी रहे ना रहे।’’
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