सराहनीय। ब्लड कैंसर से जूझ रही बांग्लादेश की लड़की का हुआ सफल उपचार
- तीन साल के भाई ने दान किए बौन मैरो
ब्लड कैंसर से जूझ रही थी अदीबा रहमान
संजय कुमार मेहरा/सच कहूँ गुरुग्राम। ब्लड कैंसर से जूझ रही अपनी 17 साल की बहन को तीन साल के भाई ने बोन मैरो डोनेट करके उसकी जान बचाई है। बहन-भाई बांग्लादेश के रहने वाले हैं। उनका गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में इस बीमारी का सफल उपचार हुआ है।
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कुछ सप्ताह पूर्व तक बांग्लादेश से आया परिवार अपनी बेटी अदीबा रेहमान (17) की जिंदगी बचाने के लिये दिल्ली के एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल घूम रहा था। अदीबा एक्यूट लम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया से पीड़ित थी। परिवार ने कई बड़े अस्पतालों में इलाज कराया, लेकिन अदीबा की सेहत में लगातार गिरावट आ रही थी। उपचार के लिए वे गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भी पहुंचे। यहां क्लीनिकल हेमाटोलोजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के निदेशक डॉ. राहुल भार्गव ने उनकी सभी जांच की और बीमारी के बारे में बारीकी से जाना।
डॉ. भार्गव के मुताबिक अदीबा रेहमान पिछले चार साल से एक्यूट लम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया बीमारी से ग्रस्त थी
इस वजह से उसका प्लेटलेट्स कांउट बहुत कम था। इस मामले में प्रभावी इलाज का विकल्प बोन मैरो ट्रांसप्लांट था। उपचार के लिए भारत आये अदीबा के परिवार के साथ उसका तीन साल का भाई भी था। उन दोनों का बोन मैरो का हेपलो मैच 4/6 था, जो कि बहुत अच्छा बोन मैरो डोनर हो सकता था। परिवार की सहमति के बाद अदीबा के बोन मैरो ट्रांसप्लांट की तैयारी की गई। इलाज में एडवांस बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) तकनीक का इस्तेमाल किया गया। बोन मैरो में जो कोशिकाओं का इस्तेमाल किया गया, वह लड़की के तीन साल के भाई ने डोनेट की थी।
अब लाइलाज नहीं ब्लड कैंसर
डाक्टर भार्गव बताते हैं कि दुनियाभर में सात फीसदी सभी तरह के कैंसर में ब्लड कैंसर कोई दुर्लभ बीमारी नहीं रही। वैसे कैंसर के इलाज और बीएमटी जैसी आधुनिक तकनीकों के बावजूद लोग ब्लड कैंसर को किसी सजा की तरह झेलते रहते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि यह लाइलाज बीमारी है। अदीबा जैसे रोगी न सिर्फ ब्लड कैंसर से लड़ते है, बल्कि उससे बचकर बाहर भी निकलते है।
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दादी की जुबानी दर्दभरी दास्तां
अदीबा की दादी नाजमे एरा भी अपनी पोती के इलाज के लिये परिवार के साथ भारत आई थी। उन्होंने कहा कि चार साल पहले पता चला कि अदीबा को ब्लड कैंसर है। बेहतरीन डॉक्टरों और अस्पतालों में इलाज कराने के बावजूद उसकी सेहत दिन-प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी। एक समय तो ऐसा आया था, जब उन्हें लगा था कि उसे बचाना नामुमकिन है। उसके नाक से खून आना, शरीर पर लाल चकते बनते देखना बड़ा दर्दनाक समय था।
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क्या है बोन मैरो ट्रांसप्लांट
हेमाटोलोजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर कंस्लटेंट डॉ. अनिरूद्ध दायमा ने कहा कि बीएमटी में क्षतिग्रस्त स्टेम सेल्स को स्वस्थ सेल्स से बदल दिया जाता है। इससे बोन मैरो को ब्लड सेल्स बनाने की क्षमता में मदद मिलती है। स्वस्थ स्टेम सेल्स डोनर देता है। बीएमटी को प्रभावी तरीके से सफल बनाने के लिये डोनर के स्टेम सेल्स में पीड़ित के सेल्स से मिलता-जुलता या उसके जैसे जेनेटिक मार्कर की जरूरत होती है। इसलिये भाई-बहन के सेल्स मैच होने के चांस ज्यादा होते हैं।