हिमाचल में सोलन स्थित कुमारहट्टी में और मुंबई के डोंगरी इलाके में इमारत गिरने से कई लोगों के मरने की घटना ने फिर एक बार सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिये हैं। दो चार दिन के हो-हल्ले और शोर शराबे के बाद जिन्दगी पुरानी पटरी पर चलने लगी है। देश में प्रतिदिन जर्जर इमारतों के ढहने के मर्मान्तक हादसे हो रहे और लोगों को मौत नसीब हो रही है। लापरवाही से इमारतें कब्रगाह बनती जा रही हैं। यदि भवनों की कमजोर बुनियाद की समय रहते पड़ताल कर ली जाती तो ये हादसे टाले जा सकते थे। हिमाचल में सोलन स्थित कुमारहट्टी में पहाड़ पर बेतरतीब बनी चार मंजिला इमारत के गिरने से असम राइफल्स के तेरह जवानों समेत 14 लोगों की मौत की जवाबदेही तो तय करनी ही होगी। इमारत में बने ढाबे में जलपान के लिए रुके जवानों को क्या पता था कि उनका विश्राम मौत का सबब बन जायेगा। बरसात में बहुमंजिले भवन तब गिरते हैं जब कुदरत के व्यवहार में उन्सानी हस्तक्षेप की हद हो जाती है। जाहिर है भरभरा कर गिरी इमारत की बुनियाद कमजोर थी।
मूसलाधार बारिश से जूझने के बाद देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के डोंगरी में बीते मंगलवार को एक चार मंजिला इमारत ढह गई। इस हादसे में मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब तक यह आंकड़ा 14 पहुंच चुका है। बिल्डिंग 100 साल पुरानी थी। संकरी गली में बनी इस इमारत के नीचे दुकानें बनी थीं, जबकि इसकी ऊपरी मंजिलों पर परिवार रह रहे थे। स्थानीय लोगों ने बताया कि लगभग छह परिवार इस इमारत में रह रहे थे। इमारत का आधा हिस्सा जर्जर था, जिसके गिरने की आशंका पहले से ही थी लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे आसपास के लोगों में गुस्सा भी है।
अक्टूबर 2017 को तमिलनाडु में बस स्टंैड की छत गिरने से तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम के 8 कर्मचारियों की दर्दनाक मौत हो गई और तीन अन्य घायल हो गए थे। घटना के समय यह कर्मचारी बस स्टैंड के आरामगृह में सो रहे थे। अभागे कर्मचारियों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह इमारत उनके लिए मौत का सबब बनेगी। ऐसी नींद सोये कि सदा के लिए सो गए। दीवाली के दूसरे दिन यह हादसा घटित हुआ इस हादसे में कई बहनों के भाई मारे गए अभागी बहनें भैयादूज पर अपने भाईयों को टीका भी नहीं लगा सकी। हादसे में कई बच्चे अनाथ हो गए। ऐसे हादसे बहुत ही पीड़ादायक होते हैं। कहते हंै कि यह इमारत काफी पुरानी हो चुकी थी। इससे पहले भी ऐसा ही मामला घटित हो चुका है यह दूसरा मामला है। लापरवाही करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए तो आने वाले समय में इन हादसों को रोका जा सकता है।
2016 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स परिसर में निमार्णाधीन बर्न ओपीडी के बेसमैंट की मिट्टी गिरने से दो मजदूरों की मौत हो गई थी। सोलन या मुंबई यह कोई पहला हादसा नहीं है इससे पहले देश में हजारों ऐसे दर्दनाक हादसे घटित हो चुके हैं। 2016 में गोवा के कनाकोना शहर में फिर एक निमार्णाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मौत हो गई थी और 40 से अधिक इमारत के भीतर दबे हुए जिन्हें काफी मशक्कत के बाद बाहर निकाला जा सका था। वर्ष 2013 में महाराष्ट्र के ठाणे में सात मंजिला इमारत ढहने से 75 लोगों की असामयिक मौत और 60 के घायल होने के लिए कौन जिम्मेवार है? 2013 में हिमाचल प्रदेश के मण्डी में भी एक इमारत के ढह जाने से एक भिखारी महिला दब गई थी जिसे पुलिस व प्रशासन की मदद से चार दिन बाद मलबे के ढेर से जिन्दा निकाल दिया था।
सोलन और मुंबई की घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सीखा और न ही लोगों ने। यह हादसा नहीं हत्या है। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं लोग इमारतों में जमींदोज हो रहे हैं। कहते हैं कि पिछली घटनाओं से सबक लेकर आने वाले भविष्य को सुरक्षित करना बुद्धिमता होती है। मगर न तो लोग हादसों से सबक सीखते हैं और न ही प्रशासन जब हादसा हो जाता है तब सरकार व प्रशासन सक्रिय हो जाते हंै उसके बाद फिर वही परिपाटी चलती रहती है। आखिर कितने हादसों के बाद प्रशासन अपनी जिम्मेवारी निभायेगा इस प्रश्न का जवाब सरकार को देना होगा। इमारतों का निर्माण करने वाले ठेकेदारों को सजा ए मौत देनी चाहिए जो इन हादसों के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार हंै। जो चंद चांदी के सिक्कों की चाहत के लिए लोगों की जिन्दगियां ले रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेना चाहिए जो मानव की जान लेने से भी नहीें हिचकचाते। केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके। एक एक नागरिक की जिंदगी मूल्यवान है।
संतोष कुमार भार्गव
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