पिछले सप्ताह में भारतीय रिजर्व बैंक ने दो चरणों में रेपो रेट में 90 बेसिस प्वाइंट (0.9 प्रतिशत) की बढ़ोतरी की है। अब यह दर 4.90 प्रतिशत हो गई है। इस वृद्धि का मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाना है। इसे देखते हुए देश के केंद्रीय बैंक ने अप्रैल में आकलन किया था कि औसत खुदरा मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 6.3 प्रतिशत, दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 5.8 प्रतिशत, तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) में 5.4 प्रतिशत तथा चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2023) में 5.1 प्रतिशत हो सकती है। (inflation)
दूसरी बार रेपो दरों में कटौती
इसका अर्थ है कि रिजर्व बैंक को भरोसा है कि मुद्रास्फीति चार प्रतिशत (दो प्रतिशत कम या अधिक) के स्वीकृत स्तर पर रह सकती है। ये निर्णय यह भी इंगित कर रहे हैं कि अंतत: रिजर्व बैंक ने यह मान लिया है कि मुद्रास्फीति है। कोरोना संकट से उबरते देश पर रूस-यूक्रेन संकट के चलते बाधित खाद्य शृंखला की मार भी पूरा असर दिखा रही है। बढ़ते आयात खर्च और कमजोर होते रुपये ने केंद्रीय बैंक की चिताएं बढ़ाई हैं। तभी आरबीआई ने लगभग एक माह के अंतराल में दूसरी बार रेपो दरों में कटौती की है। सवाल यह है कि क्या मौद्रिक उपायों से रिकॉर्ड तोड़ती महंगाई पर कुछ असर पड़ेगा। यह भी कि क्या छह का आंकड़ा पार कर चुकी खुदरा महंगाई दर में गिरावट आएगी? (inflation)
बड़े उद्योग पटरी पर आ चुके
महामारी के दौरान पहले ही खुदरा महंगाई बहुत बढ़ गई थी और अगर बाद में थोक मुद्रास्फीति में बढ़त हो रही है, तो देर-सबेर उसका असर खुदरा दामों पर पड़ना स्वाभाविक है। सस्ते कर्ज देने का एक आधार यह भी था कि अर्थव्यवस्था संतोषजनक गति से बढ़ रही है। इसका कारण यह है कि बड़े उद्योग पटरी पर आ चुके हैं और सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में उनका हिस्सा अधिक है। विडंबना यह है कि जीडीपी में बड़े उद्योगों का बड़ा हिस्सा है, पर रोजगार में छोटे और मझोले उद्यमों का योगदान अधिक है। ऐसे में घरेलू बाजार में मांग भी सुस्त है और बाहरी कारणों- रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन से आपूर्ति में बाधा, अन्य भू-राजनीतिक कारक आदि-ने भी मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान दिया है। (inflation)
यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और कई यूरोपीय देशों के प्रतिबंधों के तहत रूस से स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम, वीसा, मास्टरकार्ड, पेपाल आदि बैंकिंग सुविधाओं को रूस में बंद कर दिया गया है। रूस को चीनी प्रणाली की सहायता लेनी पड़ रही है। अगर हमारे देश में विकसित यूपीआइ सिस्टम से बैंकिंग तंत्र और लेन-देन को जोड़ दिया जाए, तो इस तरह की पाबंदियों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पैदा होने वाले अवरोधों की चुनौती का सामना आसानी से किया जा सकता है। वहीं चिंता इस बात की बनी हुई है कि यदि रूस-यूक्रेन युद्ध दुनिया में शीत युद्ध की नई परिस्थितियां पैदा करता है तो निश्चित तौर पर महंगाई को थामना और मुश्किल हो सकता है। ऐसे में प्रौद्योगिकी के विकास से हासिल आत्मनिर्भरता हमें महंगाई से लड़ने की ताकत दे सकती है।