उत्तर भारत में पहाड़ों पर लगातार हो रही बर्फबारी और ठंडी हवाओं के चलने से शीत लहर का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। चाहे जम्मू-कश्मीर हो, हिमाचल, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश हो या फिर महाराष्ट्र हो, भीषण ठंड से लोग बेजार हैं। उत्तराखंड में प्राकृतिक जल स्रोत जमने लगे हैं। केदारनाथ और मुक्तेश्वर में नलों और तालाबों का पानी जमने लगा है। श्रीनगर में डल झील सहित दूसरे जल स्रोतों की दशा भी ऐसी ही है। राजस्थान के गंगानगर, चुरू, बीकानेर, अलवर, हनुमानगढ़, नागौर, जैसलमेर, पाली, जोधपुर, झुंझनू, सीकर, टोंक, जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ में येलो अलर्ट जारी कर दिया गया है। देश के कई हिस्सों में तापमान तीन और पांच सेंटीग्रेड से भी नीचे गिरने से जन-जीवन प्रभावित हुआ है।
इस बार देशवासियों को बीते बरसों की तुलना में भीषण ठंड का सामना करना पड़ रहा है। साल 1965 के दिसंबर माह में देश में शीतलहर का प्रकोप नौ दिन तक रहा था, लेकिन इस बार इसने 1965 का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और इसके जनवरी के पहले पखवाड़े तक रहने का अनुमान है। देश की राजधानी दिल्ली ने तो बीते रविवार को 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यहां पारा 4.6 डिग्री पर उतर गया, जो इस मौसम का सबसे सर्द दिन रहा है। इस स्थिति का अहम कारण जलवायु परिवर्तन के चलते प्रशांत महासागर में हुए मौसम के बदलाव की वजह से ला नीना का प्रभाव है। दरअसल, मौसम के चक्र में प्रशांत महासागर की भूमिका बेहद अहम है। ईएनएसओ (अल नीनो साउथ ओसिलेशन) प्रशांत महासागर की सतह पर पानी और हवा में असामान्य बदलाव लाता है।
इसका असर पूरी दुनिया के वर्षा चक्र, तापमान और वायु संचरण प्रणाली पर पड़ता है। भारत में ला नीना का असर सर्दी के मौसम में ही होता है। इसके चलते हवाएं उत्तर-पूर्व के हिस्सों की ओर से बहती हैं। इससे पैदा पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तर व दक्षिण में निम्न दबाव बनता है, नतीजतन देश में भारी बारिश और बर्फबारी होती है तथा शीतलहर के प्रकोप में वृद्धि होती है। इस बार शीतलहर के प्रकोप से आनेवाले 15-20 दिनों तक राहत मिलने के आसार नहीं हैं। नतीजतन शहरों में प्रदूषण का स्तर भी खतरनाक स्तर में बढ़ा रहेगा। ऐसे में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है। जरूरी होने पर ही, खासकर अधिक आयु के, लोग घर से बाहर निकलें, अन्यथा घर में ही रहें।
कड़ाके की ठंड में लोग अलाव, गर्म कपड़े, टोपी और मफलर के भरोसे हैं। भीषण जानलेवा सर्दी से फसलों के बर्बाद होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। इससे किसान काफी भयभीत हैं। कड़ाके की ठंड पड़ेगी, ऊर्जा की खपत बढ़ेगी, खर्च बढ़ेगा, धीमी आर्थिक प्रगति की दर और बढ़ती मंहगाई आम जनता की जेब पर भारी पड़ेगी। ऐसी हालत में दूसरे साधनों पर निर्भरता और बढेÞगी इससे खाद्यान्न तो प्रभावित होगा ही, अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। बाकी दुनिया की स्थिति भी कमोबेश यही रहेगी। ऐसी स्थिति में बचाव के लिए हमें सचेत रहना चाहिए।
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