आखिर गोगरा हॉट सप्रिंग (पेट्रोलिंग पिल्लर 15) से भारत व चीन की सेनाएं पीछे हट गर्इं हैं। इस संबंधी दोनों देशों के बीच 16 दौर की बैठक आठ सितंबर को हुई थी, जिसमें यह फैसला लिया गया था। चीन के रक्षा मंत्रालय ने भी इसकी पुष्टि करते हुए बयान जारी किया था। वास्तव में 2020 में गलवान घाटी में पेंगोग झील में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बन गया था। चीन व्यवहारिक तौर पर कोई समाधान निकालने की बजाए टालमटोल कर रहा था। भारत सरकार विशेष तौर पर विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बारे में स्पष्ट कहा था कि चीन भारत के साथ किए समझौतों का उल्लंघन कर रहा है। यही कारण है कि मामला सिमटने में दो वर्ष का समय लग गया।
भले ही भारत ने अपने सख्त व संतुलित रवैये के कारण चीन के सामने अपनी बराबरी का सम्मान कायम रखने में सफलता हासिल की है, फिर भी यह बात महत्वपूर्ण है कि चीन अपने फैसलों पर कायम रहेगा? नि:संदेह कोई भी देश युद्ध का समर्थन नहीं करता। लेकिन युद्ध के बिना सामान्य हालातों में सीमाओं की रक्षा विशेष तौर पर विवादित क्षेत्रों में सख्त निगरानी व मुस्तैदी की मांग करती है। चीन का इतिहास यह रहा है कि यह देश दो पैर आगे को बढ़ाकर फिर एक पैर पीछे कर लेता रहा है। चीन की कार्रवाईयों को केवल क्षेत्र के साथ-साथ आर्थिक तौर पर भी घेरने की आवश्यकता है। वास्तव में आज केवल हथियारों का युद्ध नहीं रहा बल्कि व्यापार का भी युद्ध है। चीन को अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने के लिए व्यापार के मोर्चे पर भी मजबूत होने की आवश्यकता है।
भारत ने बीते कुछ वर्षों में सीमावर्ती क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर का व्यापक विस्तार किया है, जिससे वहां के विकास के साथ-साथ हमारे सैनिकों की आवाजाही तथा बड़े हथियारों की ढुलाई में भी सहायता मिलेगी। चीनी सेना ने ऐसे कुछ इलाकों में अपना ठिकाना बना लिया है, जहां से वह सामरिक महत्व के मार्गों और दर्रों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। हमें सामरिक रूप से सतर्क रहने के साथ चीन पर कूटनीतिक और आर्थिक दबाव भी बढ़ाना होगा। सीमा क्षेत्र पर चीन की कार्रवाईयों पर सख्त निगरानी ही सबसे आवश्यक है। सेनाओं की वापिसी से चीन भी यह भांप गया था कि अब भारत अड़ गया है। यदि ऐसा माना जाए तब यह चीन की आखिरी गलती होनी चाहिए लेकिन चीन की नीयत में क्या है, इस संबंध में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।
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