ऊंचा हुआ भारत का कद

India, Reputation, world
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वैश्विक कूटनीति पर केन्द्रीत रायसीना डायलॉग 2020 में भू राजनीति और भू अर्थनीति पर तो चिंता और चिंतन हुआ ही इसके अलावा अमेरिका-ईरान के बीच तनाव, अफगान शांति प्रक्रिया, पर्यावरण, वैश्विक राजनीति, क्लाइमेंट चेंज, सोशल मीडिया, एजेंडा 2030 और काउंटर टेरेरिज्म सहित देश और दुनिया को प्रभावित करने वाले दूसरे जरूरी मुद्दों पर भी चर्चा हुई। सोशल मीडिया की भूमिका पर उपस्थित प्रतिनिधियों ने अपनी चिंता जाहिर की। प्रसिद्व अर्थशास्त्री और कनाडा के पूर्व पीएम स्टीफन हार्पर ने बच्चों को प्रोपोगैंडा वाली खबरों से बचाने के लिए एक ऐसे पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर बल दिया जिसके तहत बच्चे यह सीख पाएं कि खबरों को किस तरह पढ़ा जाना चाहिए।

एन.के. सोमानी

देश और दुनिया के कूटनीतिक मसलों को समझने के लिए भारत द्वारा शुरू किया गया रायसीना डायलॉग वैश्विक भू-राजनीति और अर्थनीति के लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, राष्ट्रों के बीच आपसी विवादों और तनावों को कम करने में भी कारगर साबित हो रहा है। भारत साल 2016 से लगातार इस डायलॉग का आयोजन कर रहा है। इस बार यह डायलॉग 14-16 जनवरी तक नई दिल्ली के होटल ताज में रखा गया।

बहुराष्ट्रीय देशों के इस संवाद कार्यक्रम में 12 देशों के विदेशमंत्रियों समेत दुनिया के अलग-अलग कोनों से 100 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने शिरकत की, जबकि उद्घाटन सत्र में पीएम नरेंद्र मोदी, डेनमार्क के पूर्व पीएम व नाटो के पूर्व महासचिव अनस राममुसन, न्यूजीलैंड की पीएम हेलेन क्लार्क, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, कनाडा के पूर्व पीएम स्टीफन हार्पर, स्वीडन के पूर्व पीएम कार्ल ब्लिडर, भूटान के पूर्व पीएम शिरिंग तोग्बे, दक्षिण कोरिया के पूर्व पीएम हांग सुइंग सू आदि मौजदू थे।

ईरान की कुर्द सेना के कमाडर कासीम सुलेमानी की हत्या के तुंरत बाद होने वाले रायसीना डायलॉग को 2020 काफी अहम माना जा रहा था। इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि इसमें ईरान के विदेशमंत्री जावेद जरीक व अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैथ्यू पोटिंगर भी उपस्थित हो रहे थे। यूक्रेन के प्लेन को गिराने के बाद आंतरिक और बाहरी मोर्चे पर घिरा हुआ ईरान चाहता था कि भारत इस मामले में मध्यस्थता करे। ऐसा हुआ भी। ईरान के विदेशमंत्री जवाद जरीक ने कान्फ्रेंस से इतर भारत के विदेश मंत्री एस.जयशकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता की। वार्ता के दौरान उन्होेंने विवाद का हल निकालने के लिए भारत के समक्ष मध्यस्थता की पेशकश की । इसके अलावा उन्होंने ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों के मामले में भी भारत से मदद की उम्मीद की।

भारत का स्वतंत्र थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर प्रतिवर्ष रायसीना डायलॉग का आयोजन करता है। इसका मकसद दुनिया के अलग-अलग देशों को एकमंच पर लाना है, ताकि वैश्विक हालात और चुनौतियों पर सार्थक चर्चा की जा सके। कूटनीतिक रणनीति के लिहाज से भी रायसीना डायलॉग का पांचवा संस्करण भारत के लिए काफी अहम रहा। डायलॉग में पहुंचे ब्रिटेन के विदेश एवं कॉमनवेल्थ विभाग के दक्षिण एशिया प्रमुख गैरेथ बेल ने न केवल आतंकवाद से लड़ने में भारत की मदद करने का आश्वासन दिया बल्कि वैश्विक आतंकवाद के लिए उन्होंने सीधे-सीधे पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।

उन्होंने एशिया, यूरोप, अफ्रीका व संसार के दूसरे कोनों से आए हुए प्रतिनिधियों के सामने पाकिस्तान को बेनकाब करते हुए कहा कि अगर पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की काली सूची से बचना चाहता है, तो उसे अपने यहां सक्रिय आतंकी समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि यह सच है कि आतंकवादी समूह पाकिस्तान के भीतर से ही अपनी कार्रवाई का संचालन करते हुए पाकिस्तान सरकार और दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए गंभीर चुनौती पेश करते हैं। उन्होंने कहा कि हमने अपनी धरती पर 19 आतंकी हमलों को नाकाम किया है, हम अपने अनुभव भारत के साथ साझा कर सकते हैं।

दूसरी और रूस ने एक बार फिर भारत और ब्राजील को यूएनओ सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता देने की वकालत की। हालांकी रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव द्वारा हिंद-प्रशांत अवधारणा की आलोचना किए जाने के बाद तकनीकी सत्र में परस्पर आरोप-प्रत्यारोप के स्वर उठे। लावरोव ने हिंद-प्रशांत अवधारणा का विरोध करते हुए कहा कि इसका असल मकसद केवल मौजूदा संरचना में व्यवधान उत्पन्न करना और इस क्षेत्र में चीन के दबदबे को रोकना है।

रूसी विदेशमंत्री की आपत्तियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत और अमेरिका ने कहा कि हिंद-प्रशांत अवधारणा का मकसद किसी देश को अलग-थलग करना नहीं है, बल्कि यह सिद्धात आधारित सोच है। अमेरिकी प्रतिनिधी ने डायलॉग के अंतिम सत्र में कहा कि यह देशों का समुदाय है, जो कानून के शासन का सम्मान करता है, समुद्री क्षेत्र तथा आसमान तक के परिवहन की आजादी के लिए खड़ा रहता है, खुले व्यपापार, खुली सोच को बढ़ावा देता है, तथा प्रत्येक राष्ट्र की संप्रभुता का बचाव करता है।

उन्होंने यूरेशियाई आर्थिक परियोजना जैसी हिंद प्रशात की स्पर्धा वाली सोच की आलोचना करते हए कहा कि इन दृष्टिकोणों में कम स्वतंत्रता, कम खुलापन, कम लचीलापन है और यह अधिक अवरोधक लगाते हैं। रूस ने खाड़ी देशों से क्षेत्र के लिए एक सामान्य सुरक्षा तंत्र विकसित किए जाने की बात कर वैश्विक शांति स्थापना की दिशा में नई पहल के संकेत दिये। रूस ने सुझाव दिया कि इसकी शुरूआत विश्वास निर्माण उपायों और एक दूसरे को सैन्य अभ्यास के लिए आमंत्रित करके होनी चाहिए। भारत अफगानिस्तान संबंधों पर चर्चा करते हुए अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने कहा कि भारत अफगानिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त है।

रायसीना पहाड़ियों के नाम पर रखे गये वैश्विक विमर्श के इस मंच का जब साल 2016 में तत्कालीन विदेशमंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज ने उद्घाटन किया उस वक्त डायलॉग में 35 देशों के 100 से ज्यादा वक्ताओं ने हिस्सा लिया था। इस बार 100 से अधिक देशों के 700 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वैश्विक प्रतिनिधियों का यह जमावड़ा डायलॉग की सफलता का तो द्योतक है ही, साथ ही यह भी दर्शाता है कि भारत ग्लोब फोरन पॉलिसी में मेजर प्लेयर की भूमिका निभाए। देखा जाए तो यह सच भी है। उन्होंने भारत चीन संबंधों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत-चीन संबंध बहुत अनोखा है। क्योंकि दोनों ही पड़ोसी देश इस समय में काफी तेजी से आर्थिक उन्नति कर रहे है।

हालांकि रायसीना डायलॉग शुरू होने से पहले ही इस पर नागरिकता संशोधन कानून की छाया पड़ गयी थी। बांग्लादेश के विदेशमंत्री और गृहमंत्री के बाद उप विदेशमंत्री शहरयार आलम ने भी अचानक डायलॉग में शामिल होने का फैसला बदल दिया। लेकिन बांग्लादेश का कहना है कि पीएम शेख हसीना के संयुक्त अरब अमीरात के दौरे में उनके साथ जाने की वजह से शहरयार ने अपना भारत दौरा रद्द किया है।

शहरयार आलम को डायलॉग में प्रमुख वक्ता के तौर पर बुलाया गया था। लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि भारत में सीएए और एनआरसी की वजह से पैदा हुए तनाव और दोनों देशों के बीच इस वजह से आई दूरियों की वजह से बांग्लादेश ने यह फैसला लिया है। खैर स्थिति चाहे जो भी रही हो रायसीना डायलॉग 2020 के सभी तकनीकी सत्रों के निष्कर्ष की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि 2020 की सदी में जलवायु परिर्वतन, टेक्नोलॉजी, ग्लोबल सिक्योरिटी और मल्टी लैटलिजम यानी बहुपक्षीयवाद जैसे मुद्दे छाये रहने वाले हैं।