उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच युद्ध का प्रलाप पिछले कुछ दिनों से कुछ शांत हुआ है। तथापि दोनों पक्षों के बीच युद्ध होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है, जब तब शीघ्रातिशीघ्र कुछ कूटनयिक कदम न उठाए जाएं। जैसा कि सबको मालूम है कि उत्तर कोरिया ने अमेरिका के प्रांत गुआम पर बम गिराने की धमकी दी थी और अमेरिका ने इस पर जोरदार पलटवार करने की बात कही थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत पहले ही युद्ध का बिगुल बजा दिया है।
उन्होंने कहा यदि उत्तर कोरिया ने ऐसी कोई हिमाकत की, तो अमेरिका उत्तर कोरिया पर इतनी आग बरसाएगा जैसे दुनिया ने पहले कभी नहीं देखी होगी। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका की सेना उत्तर कोरिया पर टूट पड़ने के लिए तैयार है। चीन जो उत्तर कोरिया का स्वाभाविक मित्र है, भी इस विवाद में कूदा और उसने दोनों पक्षों से शांति बरतने की अपील की। उत्तर कोरिया ने चीन की सलाह पर ध्यान दिया, क्योंकि उत्तर कोरिया को परमाणु संपन्न सेना बनाने में चीन का ही हाथ है।
यदि युद्ध होता है, तो चीन के पास उत्तर कोरिया को बचाने का एकमात्र विकल्प होगा। चीन का उत्तर कोरिया में बहुत कुछ दांव पर लगा है। उत्तर कोरिया के कुल व्यापार में से 90 प्रतिशत पर चीन का नियंत्रण है। उत्तर कोरिया का सैन्य और परमाणु शस्त्रागार पूरी तरह चीन द्वारा निर्मित है। चीनियों का मानना है कि चीन और उत्तर कोरिया के संबंध उतने ही नजदीकी हैं, जितने कि होंठ और दांत।
अत: यदि चीन उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच इस विवाद में कूदता है, तो क्या भारत पीछे रह सकता है! भारत और चीन दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे को अकड़ दिखा रहे हैं अैर वर्तमान में दोनों के बीच डोकलाम को लेकर पिछले दो महीनों से विवाद चल रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही लद्दाख सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच भिड़ंत हुई थी।
कोरिया प्रायद्वीप पर भारत का बहुत कुछ दांव पर है।
भारत को उत्तर कोरिया से सजग रहना चाहिए क्योंकि भारत के दक्षिण कोरिया के साथ गहन व्यापारिक संबंध है और दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया की आक्रामकता और परमाणु क्षमता का प्रथम निशाना है। उत्तर कोरिया ने पाकिस्तान के परमाणु प्रक्रिया और कश्मीर पर पाकिस्तान के पक्ष का समर्थन किया है। तथापि वह चीन का सबसे करीबी सहयोगी है। अत: भारत को इस बारे में सजग रहना होगा। हाल ही में अमेरिका के एडमिरल हैरी हैरिस ने भारत से इस संबंध में अपनी भूमिका निभाने का अनुरोध करते हए कहा था ‘‘भारत की आवाज एक ऊंची आवाज है और लोग उसकी आवाज पर ध्यान देते हैं।’’
उत्तर कोरिया में युद्ध जैसी स्थिति तब पैदा हुई, जब उत्तर कोरिया ने दो अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइलों का परीक्षण किया जो परमाणु आयुद्ध ले जाने में सक्षम है और अमेरिका के किसी भी क्षेत्र पर हमला कर सकती है। उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम के पीछे चीन का सक्रिय सहयोग रहा है।
कुछ लोगों का मानना है कि उत्तर कोरिया ने इराक और अफगानिस्तान में अमेरिका के आक्रमण को देखते हुए स्वयं की सुरक्षा के लिए ऐसे कदम उठाए। सभी जानते है कि अमेरिका हमेशा से दक्षिण कोरिया का पक्ष लेता रहा है और उसका प्रयास रहा है कि उत्तर कोरिया की परमाणु महत्वाकांक्षा कोरिया प्रायद्वीप की शांति के प्रतिकूल न हो। अमेरिका दक्षिण कोरिया के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास करता रहा है और इसके 28000 सैन्य दस्ते दक्षिण कोरिया में तैनात हैं।
चीन उत्तर कोरिया की सैन्य रूप से सहायता करता रहा है क्योंकि वह अमेरिका और दक्षिण कोरिया द्वारा संयुक्त रूप से इस क्षेत्र में थाड तंत्र की तैनाती से चिंतित है। इसमें लगा हुआ शक्तिशाली राडार दूर चीन तक निगाह रख सकता है। हालांकि, वर्तमान राष्ट्रपति किम जुंग उन चीन के नियंत्रण में नहीं है अत: चीन भी उन देशों में शामिल हो गया जिन्होनें उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए हैं।
चीन उत्तर कोरिया को लेकर असमंजस की स्थिति में है। यदि युद्ध होता है तो अमेरिका को तुंरत दक्षिण कोरिया और जापान एवं इसके अन्य सहयोगियों का सहयोग मिलेगा औरे ऐसे में यह युद्ध पूर्वी चीन और उत्तर चीन तक फैल सकता है। शी जिनपिंग सरकार ने उत्तर कोरिया को कोयला, लौह अयस्क और समुद्री भोजन के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। परन्तु क्या चीन इन प्रतिबंधों को लागू करने में सक्षम है? क्या चीन अमेरिका की उत्तर कोरिया को तेल और गैस की बिक्री पर रोक, उत्तर कोरिया की चाइनीज बैंक तक पहुंच और सीमा पार उपभोक्ता वस्तुओं के व्यापार को रोकने की इच्छा को पूरा करेगा? निश्चित रूप से नहीं।
चीन का एशिया में उसके सबसे बड़े प्रतिद्विंदी भारत के साथ एक लंबा सीमा विवाद रहा है, ऐसे में वह नहीं चाहेगा कि उतरी कोरिया और अमेरिका के बीच विवाद और उग्र रूप ले। परन्तु ट्रंप के अप्रत्याशित और आक्रामक रवैये से चीन पशोपेश में है। ट्रंप ने डोकलाम मददे पर भारत का समर्थन किया है। डोकलाम पर अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन के बजाय भारत का पक्ष लिया है। मेघनाद देसाई के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप इस विवाद पर एक दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में हैं। जब ट्रंप ने मोदी को स्वाधीनता दिवस की बधाई दी तो मोदी ने उत्तर कोरिया पर उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर उनकी प्रशंसा की।
भारत कोरिया प्रायद्वीप मसले पर पूर्व में भी भारत की भूमिका रही है परन्तु यह उतना प्रभावशाली नहीं रही क्योंकि यह सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है। दूसरा, एक गुट निरपेक्ष देश के रूप में भारत को तीसरे विश्व के देशों का समर्थन रहा है परन्तु यह इतना प्रभावशाली नहीं रहा। अब भारत को अमेरिका, इज्रराइल, जापान एवं अन्य यूरोपियन देशों के सहयोगी के रूप में देखा जाता है। अत: इससे अधिक ध्यान आकर्षित होता है।
चीन अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से दादागिरी करता आया है। यह भारत के पड़ोसी देशों को व्यापार, निवेश और आर्थिक सहायता के बल पर खरीद रहा है। जैसा कि कार्ल मार्क्स ने कहा था कि पूंजीवाद साम्राज्यवाद की ओर ले जाता है और चीन खतरनाक रूप से इसी पथ का अनुसरण कर रहा है। भारत को चीन को दक्षिण कोरिया, जापान और अमेरिका के साथ उत्तर कोरिया मुद्दे पर उलझाए रखने की आवश्यकता है और चीन को यह महसूस कराने की आवश्यकता है कि चीन चारों ओर अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकता, अपनी आर्थिक सुदृढ़ता पर इतरा नहीं सकता और उत्तर और दक्षिण कोरिया एवं भारत एवं पाकिस्तान के बीच टकराव को भड़का नहीं सकता।
चीन की नीतियों ने विभिन्न संघर्षरत क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर दी है जो कि किसी भी समय विस्फोटक रूप ले सकती है। जहां वह यह जानता है कि कैसे सस्ते श्रम से पैसा कमाया जाए, वहीं दूसरी ओर उसने कूटनयिक कुशलता को सीमित कर दिया है। वह संघर्ष तो पैदा कर सकता है परन्तु उसको शांत नहीं कर सकता। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि जापान और अमेरिका उत्तर कोरिया में एक सीमित सैन्य टकराव की ओर बढ़ रहे हैं।
यही बात चीन के बारे में दक्षिणी चीन सागर, डोकलाम और भारत के अन्य सीमान्त क्षेत्रों के बारे में कही जा सकती है। उत्तर कोरिया ने भारत को एक अवसर दिया है कि वह चीन के समक्ष इस तथ्य को सिद्ध करे कि अपनी आर्थिक शक्ति के बल पर वह दूसरों के साथ दादागिरी नहीं कर सकता है। सिद्धान्त, कानून, संधियां और समझौते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को परिचालित करते हैं।
-डॉ. डीके गिरी
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