अमेरिका सेना की वापिसी के बाद देश के 85 प्रतिशत हिस्से पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। 20 साल की अधूरी लड़ाई के बाद अमेरिका अपने सैनिकों को वापस बुला रहा है और यह वापसी अगस्त महीने तक पूरी हो जाएगी। अमेरिका ने इसके लिए 11 सितंबर की आखिरी डेडलाइन तय की है। अमेरिका की वापिसी का निर्णय ही इस बात का संकेत था कि अब तालिबानों की वापिसी तय है। संयुक्त राष्ट्र सहित किसी भी बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका की वापिसी पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। अफगानिस्तान में हिंसा बढ़ रही है और इन परिस्थितियों में भारत सरकार ने राजनायिकों को वापिस बुलाकर बिल्कुल सही फैसला लिया है।
भारत को अफगानिस्तान के हालातों पर पूरी नजर रखनी होगी। भले ही फिलहाल पाकिस्तान की अफगान तालिबान के साथ नजदीकी की कोई चर्चा नहीं, फिर भी भारत सरकार को अपनी सुरक्षा के प्रति सतर्क रहना होगा। फिलहाल तालिबान संगठन देश पर मुकम्मल कब्जे के लिए लड़ रहे हैं और तालिबानों का दक्षिणी -एशिया क्षेत्र के लिए क्या नजरिया होगा, इसका खुलासा लड़ाई थम जाने के बाद ही आएगा। यूं भी तालिबान नेताओं ने मॉस्को पहुंचकर रूस को भरोसा दिया है कि वह अपनी जमीन का प्रयोग किसी पड़ोसी देश के खिलाफ नहीं होने देंगे। तालिबानों का यह भरोसा सभी पड़ोसी देशों के लिए है या कुछ देशों के लिए इसका भी इंतजार करना होगा। विगत वर्षों में भारत ने अमेरिकी सेना की वापसी पर चिंता व्यक्त की थी, लेकिन ताजा हालातों में भारत को नई रणनीति बनानी पड़ सकती है।
दरअसल अब सब कुछ रूस के हाथ में है। अमेरिका की वापिसी के बाद रूस, अफगानिस्तान का सबसे नजदीकी शक्तिशाली देश है। तालिबानों और अफगानिस्तान सरकार में बातचीत दौरान भी रूस की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। आने वाले समय में भी रूस की भूमिका निर्णायक हो सकती है। 1980 के दशक से यहां रूस का दबदबा था और रूस का समर्थन करने वाली डॉ. नजीब उल्लाह सरकार ने सत्ता संभाली थी। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के बाद रूस की सबसे बड़ी चिंता यह है कि इस्लामी कट्टरवाद अफगानिस्तान से चलकर उसकी चौखट तक न पहुँच जाए। इसी चिंता के मद्देनजर रूस तालिबान को एक संभावित सुरक्षा कवच के रूप में देखता है और उससे अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखता है।
भारत के लिए चिंताजनक बात यह है कि पाकिस्तान की जमीन पर सक्रिय आतंकवादी संगठनों और तालिबानों में कहीं कोई सांठगांठ न बन जाए। विगत दो दशकों से भारत ने अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन किया है और देश के नव-निर्माण के लिए खुले दिल से वित्तीय मदद भी की। अब भारत को अफगान नीति पर पूरी मजबूती से और नए सिरे से पहरा देना होगा। तालिबानों ने देश पर कब्जा कर लेने के बाद जिस तरह शरीयत का कानून लागू किया है उसके मद्देनजर भारत सरकार को नीति निर्माण में बड़ा चौकस रहना होगा।
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