चीन के एफडीआई पर भारत का हमला

India's attack on China's FDI
भारत दुनिया का 8वां सबसे बड़ा एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) सुपर पावर है। एफडीआई आर्थिक विकास का एक प्रमुख घटक है। परंतु चीन ने कोरोना वायरस संकट के दौरान एफडीआई को भी आर्थिक प्रभुत्व स्थापित करने का प्रमुख हथियार बना दिया है। अब जब दुनिया भर में कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था लगातार नीचे गिर रही है,तब एफडीआई के माध्यम से चीन दूसरे देशों के महत्वपूर्ण कंपनियों के अधिग्रहण में लगा हुआ है।
हाल ही में चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने भारत की दिग्गज कंपनी एचडीएफसी लिमिटेड के 1.75 करोड़ शेयर खरीद लिए। इस निवेश के बाद एचडीएफसी में चीनी केंद्रीय बैंक की हिस्सेदारी 1.01 फीसदी हो गई है। चीन के केंद्रीय बैंक ने यह खरीददारी ऐसे वक्त में की है,जब कोरोना वायरस महामारी के कारण एचडीएफसी लिमिटेड के शेयरों में बड़ी गिरावट आई है। जनवरी में एचडीएफसी लिमिटेड के शेयरों का दाम 2500 रुपए थे,लेकिन अभी गिरकर 1600 रुपए के स्तर पर था। इस तरह चीनी केंद्रीय बैंक ने काफी सस्ते में एचडीएफसी लिमिटेड में निवेश किया। एचडीएफसी लिमिटेड में पहले से ही कई विदेशी कंपनियों या संस्थाओं की इससे ज्यादा हिस्सेदारी है। इनमें इनवेस्को ओपनहीमर डेवलपिंग मार्केट फंड (3.33 फीसदी), सिंगापुर सरकार (3.23 फीसदी) और वैनगॉर्ड टोटल इंटरनेशनल स्टॉक इंडेक्स फंड (1.74 फीसदी) शामिल हैं।
चीन को लेकर भारत सरकार की सतर्कता: भारत सरकार ने सावधानी बरतते हुए अब कुछ ऐसे सख्त नियम लागू कर दिए हैं,जिनसे चीन कंपनियों के लिए किसी भारतीय कंपनी में हिस्सेदारी बढ़ाना मुश्किल होगा। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के नवीनतम अधिसूचना के अनुसार भारत की भूमि से संबद्ध देशों के नागरिकों या इन देशों में स्थापित कंपनियों या इन देशों के नागरिकों के स्वामित्व वाली कंपनियों को भारत में किसी भी क्षेत्र में निवेश करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी। सरकार ने स्पष्ट किया है कि इन देशों से आए एफडीआई के कारण भारतीय कंपनियों के हस्तांतरण या स्वामित्व में होने वाले परिवर्तन के लिए सरकार का अनुमोदन अनिवार्य होगा। पहले इस तरह की पाबंदी सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश से होने वाले निवेश पर ही लगी हुई थी। विदेशी निवेश के दो तरीके होते हैं-एक स्वचालित रूट और दूसरा – सरकारी मंजूरी प्रक्रिया के तहत। लेकिन अब सरकार द्वारा संशोधित नियमों के कारण भारत में चीनी एफडीआई का आगमन केवल सरकारी मंजूरी के साथ ही होगा।
चीनी प्रभुत्व का नया रूप भयावह: कोविड-19 वैश्विक महामारी के समय में दुनिया जहाँ स्वास्थ्य सुरक्षा की चिंता में हैं, वहीं चीन दुनियाभर में वैश्विक निवेश में वृद्धि कर रहा है । चीनी निवेश कार्यक्रम यूरोप के लिए भी खतरे की घंटी बन गई है। हालिया घटनाक्रम को देंखे, तो ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई-6के पूर्व प्रमुख जॉन सॉवर्स ने चीनी कंपनियों से यूरोपीय तकनीक को बचाने की बात कही थी। चीन की नजर दुनियाभर के प्रमुख आधारभूत संरचनाओं पर है । ग्रीस के पायरेअस बंदरगाह के तीन में से 2 टर्मिनल चीन के हाथ में आ चुके हैंं और तीसरा भी दूर नहीं है। (फॉरेन पॉलिसी की रिपोर्ट के अनुसार) चीन की कॉस्को कंपनी ने बेल्जियम की टर्मिनल संचालन कंपनी जीब्रूगी में 90% हिस्सेदारी हासिल कर ली है। स्पेन में भी कॉस्को ने सबसे बड़े टर्मिनलों वैलेंशिया और बिल्बाओ के प्रबंधन पर नियंत्रण हासिल कर लिया है। एंटवर्प,ला पैलमैस और रॉटेडर्म में भी चीन के निवेश जारी है। चीन के अभी के निवेशों को मेड इन चाइना-2025 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। चीन पाँच साल बाद अपने कोर सेक्टर की क्षमताओं में अप्रत्याशित वृद्धि भी करना चाहता है। इससे चीनी आर्थिक वर्चस्व की स्थिति उत्पन्न होनी है।
भारत को और सावधानी की आवश्यकता: भारत को कैमेन आइलैंड, सिंगापुर, आयरलैंड और लक्जमबर्ग के विदेशी निवेशों को भी गहनता से जांच करनी चाहिए।(आशंका है कि इन देशों से भारत में जो निवेश हो रहा है, वह मूलत: चीनी निवेश ही है) चीन और हांगकांग से भारत में आ रहे निवेश का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं देशों के जरिए आ रहा है। पिछले कई वर्षों के दौरान 1 अरब डॉलर या उससे अधिक फंड का प्रबंधन करने वाले चीन के कई फंडों ने हांगकांग में अपना कारोबार शुरू किया है। चीन के कोष प्रबंधक विदेशी बाजारों तक पहुंच बनाने के लिए हांगकांग को लांचपैड की तरह इस्तेमाल करते हैं। हांगकांग से अधिकांश निवेश कैमेन आइलैंड जरिए होता है । यह व्यवस्था कुछ इस तरह काम करती है- हांगकांग स्थित फंड अमूमन स्थानीय या चीनी नागरिकों से पैसा जुटाते हैं । विशेषज्ञों के मुताबिक इनमें से अधिकांश निवेश चीनी निवेशकों से आता है,जिसमें वे इसके असली लाभार्थी बन जाते है। इसके बाद हांगकांग के फंड इस राशि को कैमेन में अन्य फंड में निवेश करते है,जो मास्टर फंड का काम करता है और दूसरे बाजारों में निवेश करता है। यही कारण है कि हांगकांग से 90 फीसदी से अधिक फंड सीधे भारत नहीं आता है ।
सिंगापुर के फंड मैनेजरों का चीन के साथ मजबूत संबंधों की संभावना है,क्योंकि वहाँ की आबादी में तीन चौथाई चीनी मूल के हैं । आयरलैंड और लक्जमबर्ग भी विदेशी फंड के मामले में काफी लोकप्रिय हैं और वहां भी चीन का अच्छा खासा पैसा आता है। फिलहाल चीन के 16 एफपीआई भारत में पंजीकृत है, जिनमें से 15 के पास श्रेणी-1 लाइसेंस है। इसकी तुलना में कैमेन के 323,सिंगापुर के 428,आयरलैंड के 611 और लक्जमबर्ग के 1155 एफपीआई भारत में पंजीकृत हैं। सिंगापुर, आयरलैंड और लक्जमबर्ग भारत में निवेश करने वाले 10 शीर्ष देशों में शामिल हैंं। ऐसे में केवल चीन पर प्रतिबंध लगाकर चीनी निवेश को नहीं रोका जा सकता,बल्कि कैमेन आइलैंडस, सिंगापुर, आयरलैंड और लक्जमबर्ग पर भी भारत को कड़ी नजर रखनी होगा।
निष्कर्ष: कोरोना संकट के समय चीनी निवेश दुनिया के लिए संकट बनता जा रहा है। एचडीएफसी लिमिटेड में चीनी निवेश के बाद भारत सरकार ने चीनी एफडीआई के लिए सरकारी मंजूरी को अनिवार्य बनाया है। लेकिन अभी भी भारत को सिंगापुर, आयरलैंड, लक्जमबर्ग और कैमेन आइलैंडस के विदेशी निवेशकों से सावधान रहना होगा। काफी संभव है, इसके पीछे चीनी निवेश के ही तार जुड़े हो। एचडीएफसी में एक फीसदी शेयर खरीदने के बाद चीन अब वोल्वो और हैसलबाल्ड जैसे प्रमुख स्वीडेन के ब्रांड को पूरी तरह खरीदने के करीब है। चीन उन देशों में निवेश के मौके देख सकता है जहाँ उसके खिलाफ कड़े नियम आड़े न आ रहे हो, वहीं जिन देशों ने नियंत्रण के तरीके अपनाए हैं, वहां एकीकृत 10 या 20 फीसदी तक के निवेश पर चीन की नजर रहेगी। भारत में भी चीन एकीकृत सीमा के अन्दर निवेश के प्रयास में वृद्धि कर सकता है।
कोरोना के इस वैश्विक महामारी में भारत को एफडीआई पर बहुत सावधानी से नजर रखनी होगी, अन्यथा चीन वर्तमान परिस्थिति का लाभ उठाने के लिए तैयार है। चीन के निवेशकों ने भारतीय स्टार्टअप में करीब 4 अरब डॉलर का निवेश किया है। उनके निवेश की रफ्तार इतनी तेज है कि भारत के 30 यूनिफॉर्म में से 18 को चीन से वित्त पोषण मिला हुआ है। इससे भारत में निवेश की चीनी आक्रामकता को समझा जा सकता है। इसके साथ ही ऑनलाइन ग्रॉसरी रिटेलर बिगबास्केट, डिजिटल पेमेंट्स प्लेटफार्म पेटीएम,राइड शेयरिंग प्लेटफार्म ओला को अब तक चीनी कंपनियों से निवेश में अरबों डॉलर मिल चुके हैं। ऐसे में सरकार को इन कंपनियों का भी ध्यान रखना होगा, क्योंकि ऐसे स्टार्टअप्स कौलैटेरल डैमेज के रूप में उभर सकते हैं। जरूरी केवल यही नहीं है कि चीन की धरती से भारतीय कंपनियों में मनचाहे निवेश को नियंत्रित किया जाए, बल्कि इसकी भी है कि भारतीय उद्योग जगत की चीन पर निर्भरता कम करने के हरसंभव कदम उठाए जाएं।
राहुल लाल
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।