भारतीय रेल अब हर तरह के कोच बनाने में सक्षम

Mumbai News

सफलता : पिछले साल भारतीय रेल ने यात्री कोच और माल ढुलाई वाले वैगनों की डिजाइनिंग क्षमता हासिल की (Indian Railways )

नई दिल्ली (एजेंसी)। भारतीय रेल ने हर तरह के कोच बनाने की क्षमता हासिल कर ली है और अब उसकी नजर घरेलू जरूरतें पूरी करने के साथ ही निर्यात बढ़ाने पर भी है। रेलवे बोर्ड के सदस्य (चल परिसंपत्ति) राजेश अग्रवाल ने बताया कि पिछले साल भारतीय रेल ने वर्चुअल रियलिटी के माध्यम से यात्री कोच और माल ढुलाई वाले वैगनों की डिजाइनिंग क्षमता हासिल कर ली। अब वह किसी भी ग्राहक के अनुकूल कोच या वैगन डिजाइन करने में सक्षम है। इससे कोच निर्यात के बाजार में देश की हिस्सेदारी बढ़ाने की संभावना का द्वार खुल गया है।

  • वर्तमान में कोच निर्यात का बाजार 100 अरब डॉलर से अधिक है
  • जिसमें भारत की हिस्सेदारी 10 करोड़ डॉलर (0.1 प्रतिशत) है।
  • अग्रवाल ने बताया कि हर देश में कोच की डिजाइनिंग अलग-अलग होती है।
  • भारत के अलावा सिर्फ बंगलादेश और पाकिस्तान में ही ब्रॉडगेज है।
  • अफ्रीकी देशों में अलग तरह के गेज हैं ।
  • उत्तरी अमेरिका में अलग, दक्षिण अमेरिका में अलग और यूरोपीय देशों में अलग डिजाइन के कोच की जरूरत होती है।

एक्सल निर्यात करने के विकल्प की तलाश जारी

उन्होंने बताया कि अभी भारत सीमित संख्या में बंगलादेश और श्रीलंका को कोच निर्यात करता है। नयी क्षमता हासिल करने के बाद भारतीय रेल की इकाई रिट्स लिमिटेड को मोजाम्बिक से कोच के आॅर्डर मिले हैं। वहाँ ‘केव’ गेज पर ट्रेनों का परिचालन होता है जिसके लिए कोच की डिजाइन अलग हो जाती है। इसके अलावा उत्तरी अमेरिका में ट्रेनों के पहिए और एक्सल निर्यात करने के विकल्प भी तलाशे जा रहे हैं।

रेल कोच फैक्ट्रियों की उत्पादन क्षमता दुगुनी

हर प्रकार के वैगनों की डिजाइनिंग क्षमता हासिल करने का परिणाम यह हुआ है कि अब ट्रकों, ट्रैक्टरों और ज्यादा ऊँचाई वाले यात्री वाहनों के लिए भी वैगन बनाए जा सकते हैं। इनके प्रोटोटाइप तैयार हैं तथा कोई भी कंपनी इनके लिए रेलवे को आॅर्डर दे सकती है। यदि कोई कंपनी ऐसे वैगन चाहती है जिसमें नीचे दुपहिया वाहन और ऊपर कारें भेजी जा सकें तो उसके लिए भी प्रोटोटाइप तैयार कर लिया गया है। अग्रवाल ने बताया कि रेलवे की चल परिसंपत्ति के लिहाज से पिछला साल क्रांतिकारी रहा। वित्त वर्ष 2017-18 के बाद से रेल कोच फैक्ट्रियों की उत्पादन क्षमता दुगुनी हो चुकी है।

 

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