पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में नहरों व रजबाहों का पूरा जाल बिछा हुआ है। नहरों का जाल ही इन क्षेत्रों में जहां कृषि खुशहाली का आधार है, वहीं यह पेयजल उपलब्ध कराने का भी सबसे बड़ा संसाधन है, लेकिन खस्ताहाल हो रहे नहरी व्यवस्था के कारण कृषि पट्टी के हालात बेहद दयनीय हो रखे हैं।
इस दयनीय हालात की मुख्य वजहें नहरी प्रशासन का आलसी होना व निचले स्तर पर कर्मियों की कमी होना है, जिसके कारण नहरें घोर अनदेखी का शिकार हो रही हैं। उक्त प्रदेशों में नहरों का निर्माण कुछ ज्यादा पुराना भी नहीं है। ज्यादा पुरानी नहरों का इतिहास अभी करीब 90 वर्ष या 100 वर्ष पुराना ही होगा।
निर्माण के दौरान व उसके बाद के दशकों तक इनकी संभाल सरकार, प्रशासन एवं स्वयं किसानों द्वारा बड़ी ही अपनेपन से की जाती थी। नहरों की सफाई करना, नहरों की बरम को मजबूत बनाना ये सब काम जहां अधिकारी दिन-रात खड़े होकर करवाते थे, वहीं कर्मचारी व किसान भी अपना पूरा खून-पसीना बहाते थे। लेकिन अब सब कुछ पेशेवराना हो गया है।
फिर ऊपर से भ्रष्टाचार के चलते नहरों का ये तंत्र छिन-भिन्न हो रहा है। बिना बरसात के भी आये दिन इन नहरों की पटरी धंस जाने, किनारे टूट जाने के कारण इनके आस-पास के खेतों व गांवों के लिए मुसीबत बनी रहती है। इंदिरा गांधी नहर परियोजना जोकि एशिया की सबसे बड़ी नहर परियोजना है, का प्रतिवर्ष रखरखाव व डिसिल्टिंग के लिए करोड़ों रूपये का बजट राजस्थान व पंजाब सरकार देते हैं,
लेकिन इसके बावजूद 6 सौ किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी इस नहर की हालत बेहद खस्ता हो रही है। इस नहर को राजस्थान के कई जिलों की जीवन रेखा कहा जाता है, लेकिन इसका खुद का जीवन संकटों में घिरा पड़ा है। पंजाब में मालवा, दोआब क्षेत्र में नहरों की पटरी व उनके किनारे दशकों से मुरम्मत की राह तक रहे हैं।
इन नहरों व इनसे जुड़े रजबाहों की लीपापोती स्थानीय किसान ही प्रशासन की लुुुुंज-पुंज मदद से कर रहे हैं। हरियाणा की एसवाईएल नहर जिस पर करोड़ों रूपए खर्च हुए, जिसे अभी पानी की भी दरकार है, को नष्ट-भ्रष्ट किया जा रहा है। एसवाईएल का जो भाग निर्मित हो चुका है, उसकी हालत भी अब खस्ता हो चुकी है। इस खाली नहर में पेड़-झाड़ियां उग आई हैं।
बहुत से स्थानों पर नहर की निर्माण सामग्री को तोड़-फोड़कर चुरा लिया गया है। संबंधित प्रदेश सरकारों को इस ओर तत्काल ध्यान देना चाहिए। नहरें इन प्रदेशों की भाग्यविधाता हैं, जिनका रख-रखाव हॉस्पिटल व सचिवालयों की तरह से किया जाए।
ताकि इनके क्षरण को रोका जा सके। नहरों के पटरिया, उनके किनारे नियमित तौर पर संवारे जाएं, जिनके लिए बेलदार से लेकर, चीफ इंजीनियर तक को पाबंद किया जाए। नहरों के संचालन व रख-रखाव में हो रहे भ्रष्टाचार को भी जांचा जाए और उसे खत्म किया जाए।
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