भारत-ब्रिटेन संबंध: बढ़ती साझीदारी

India-UK Relations Increasing Partnership
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अगले वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि होंगे। इस अवसर पर उनकी उपस्थिति ब्रेक्जिट के बाद भारत और ब्रिटेन के बीच बढ़ती साझीदारी की द्योतक है। जॉनसन ब्रिटेन के दूसरे प्रधानमंत्री होंगे जो गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में परेड में उपस्थित रहेंगे। इससे पूर्व 1993 में पूर्व प्रधानमंत्री जॉन मेजर गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि रहे थे।
जॉनसन के प्रधानमंत्री के रूप में यह भारत की पहली यात्रा होगी। भारत प्रोटोकोल और संबंधों को मान्यता देने के मामले में अत्यधिक महत्व देता है विशेषकर तब जब वह गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को आमंत्रित करता है। गणतंत्र दिवस के अवसर पर जॉनसन को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के बाद दोनों देशों के बीच साझीदारी बढ़ाने की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है।
वस्तुत: ब्रिटेन की विदेश नीति में हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र को महत्व देने के कारण भारत सबके लिए एक सामरिक साझीदार बन सकता है। चीन के प्रति अपनी नीति को ध्यान में रखते हुए ब्रिटेन भारत के साथ साझीदारी कर सकता है। अन्य पश्चिमी शक्तियों की तरह ब्रिटेन भी चीन के विस्तारवाद तथा आक्रामक विदेश और आर्थिक नीति के बारे में चिंतित है। इस संबंध में ब्रिटेन ने महामहिम महारानी क्वीन एलिजाबेथ के कैरियर गु्रप को हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में तैनात कर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह कदम इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते वर्चस्व के कारण लिया गया है।
भारत और ब्रिटेन एक संयुक्त सैन्य लॉजिस्टिक समझौता करने वाले हैं जैसा कि भारत ने आस्ट्रेलिया, जापान और अमरीका के साथ किया है। इसका तात्पर्य है कि दोनों देश एक दूसरे की सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं जिसमें ईंधन और अन्य सुविधाएं शामिल हैं साथ ही दोनों देश सैन्य अभ्यास बढाएंगे और एक दूसरे के बंदरगाहों के उपयोग की अनुमति भी देंगे। यह भारत की नीति में एक बड़ा बदलाव है क्योंकि भारत अब तक विशेषकर पश्चिमी शक्तियों के साथ गठबंधन करने से परहेज करता रहा है।
ब्रिटेन भी अब चीन या पाकिस्तान से खुश नहीं है हालांकि इन देशों के लोग बडी संख्या में ब्रिटेन में रह रहे हैं। औपनिवेशक काल के दौरान भारत ब्रिटेन के ताज में एक महत्वपूर्ण नगीना था। भारत की स्वतंत्रता के बाद यहां इस बात पर बहस चलती रही कि क्या भारत को राष्ट्रमंडल का सदस्य रहना चाहिए जिसमें ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेश शामिल थे।
काफी विचार-विमर्श के बाद कैम्ब्रिज में शिक्षित भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने का निर्णय किया । उनका तर्क था कि राष्ट्रमंडल भारत के लिए दुनिया के द्वार खोलेगा। वर्ष 2050 तक भारत में कार्यशील जनसंख्या अमरीका और चीन की संयुक्त जनसंख्या से अधिक होगी। इसके अलावा भारत में अंग्रेजी भाषी मध्यम वर्ग की संख्या बढ़ने के कारण ब्रिटेन के लिए अवसरों के द्वार खुल रहे हैं।
इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत शीघ्र ही विश्व में एक सबसे बड़ा प्रभावशाली देश होगा। ब्रिटेन से भारत को शिक्षा, अनुसंधान और रचनात्मक क्षेत्र में लाभ मिल सकता है तथापि सुदृढ़ द्विपक्षीय संबंध परस्पर ज्ञान, समझ और विश्वास पर निर्भर करेंगे। सांस्कृतिक जागरूकता और एक दूसरे की संस्कृति के प्रति प्रेम से आथिक और कूटनयिक संबंध सुदृढ़Þ हो सकते हैं। इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि ब्रिटेन के युवाओं में भारत के बारे में पर्याप्त समझ नहीं है। मोरी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत के 74 प्रतिशत युवा ब्रिटेन के बारे में जानते हैं ।
जबकि ब्रिटेन के केवल 21 प्रतिशत युवा भारत के बारे में जानते हैं। दूसरी ओर ब्रिटेन में भारतीय छात्रों की रूचि में 49 प्रतिशत की गिरावट आयी है। ब्रिटिश काउंसिल के सुझावों मे कहा या है कि ब्रिटेन-भारत युवा नेता मंच का गठन किया जाए जिसमें 15 से 35 साल के युवाओं को शामिल किया जाए जो वर्ष 2050 तक दोनों देशों में नेतृत्व संभाल रहे होंगे। इससे सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग बढेÞगा। दोनों देशों के बारे में पारस्परिक समझ बढ़ेगी और आर्थिक तथा रणनीतिक मामलों के बारे में दोनों देशों के युवाओं को एक नई दिशा मिलेगी।
दोनों देशों के बीच राजनीति, शिक्षा, संस्थान निर्माता और व्यापार तथा आर्थिक क्षेत्र में प्रगाढ़ ऐतिहासिक संबंधों के बावजूद भारत और ब्रिटेन के बीच संबंध सुदृढ नहीं रहे हैं। औपनिवेशिक राज के कारण दोनों देशों के संबंध में ब्रिटेन की विरासत का प्रभाव बढ़ा है। तथपि उक्त कारणों से भारत और ब्रिटेन के बीच संबंध स्वाभाविक और अपरिहार्य हैं। अब चुनौती इस बात की है कि इन संबंधों का उपयोग दोनों देशों के लाभ के लिए किया जाए। इस संबंध में दो बुनियादी समस्याएं हैं। पहला, भारत पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुदृढ करने के लिए अनिच्छुक है।
उदाहरण के लिए मुक्त व्यापार समझौते को ही लें। यूरोपीय संघ से अलग होने के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए ब्रिटेन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए उत्सुक है किंतु भारत इसके लिए अनिच्छुक है। ब्रिटेन के विदेश सचिव डोमनिक राब ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बैठक के दौरान खुले रूप से कहा कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता ब्रिटेन की उच्च प्राथमिकता है।
15 दिसंबर को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक में इस बात पर सहमति हुई कि भारत-ब्रिटेन साझीदारी विशेषकर व्यापार के क्षेत्र में साझीदारी को बढाने के लिए एक दस वर्षीय रूपरेखा बनाई जाएगी। राब ने कहा कि मेरे विचार से इससे भारत और ब्रिटेन के व्यवसाइयों के लिए अवसर के द्वार खुलेंगे। खाद्यान्न तथा पेय पदार्थों, स्वास्थ्य देखभाल और जीव विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी, रसायन और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में अड़चनों को दूर किया जाएगा। मेरे विचार से इन क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच विपुल संभावनाएं हैं।
कुल मिलाकर भारत ब्रिटेन साझीदारी चार कारकों पर निर्भर करती है। पहला, भारत को पश्चिमी देशों के साथ साझीदारी बनाने की अपनी हिचकिचाहट को दूर करना होगा। यह कूटनयिक विरासत नेहरू के समय से चली आ रही है। दूसरा, भारत और ब्रिटेन दोनों को अमरीका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा पर नजर रखनी होगी। तीसरा, दोनों देशों को कोरोना महामारी से लड़ने के उपायों और उसके प्रभावों पर ध्यान देना होगा। चौथा, ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से अलग होने के नकारात्मक प्रभावों का मूल्यांकन करना होगा और उनके साथ सामंजस्य करना होगा। हम भारत-ब्रिटेन साझीदारी के पक्ष में हैं क्योंकि यह दोनों देशों के लिए वांछनीय और पारस्परिक लाभप्रद है। आशा की जाती है कि भारत और ब्रिटेन का नेतृत्व इस ओर ध्यान देगा।

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