बीमारियों की गिरफ्त में भारत

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कार्डियोलॉजिकल सोसायटी आॅफ इंडिया का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि देश में हृदयघात से होने वाली मृत्यु दर में लगातार वृद्धि हो रही है और अगर उच्च रक्तचाप, खराब जीवन शैली, मधुमेह, शराब का सेवन पर अंकुश नहीं लगा, तो फिर हृदयाघात से होने वाली मौतों को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा।

सर्वेक्षण से उद्घाटित हुआ है कि इस समय देश में 54 लाख लोग हार्ट फेल्यर से पीड़ित हैं और प्रत्येक वर्ष दिल के मरीजों की तादाद बढ़ रही है। हृदयघात की बीमारी कई अन्य गैर संचारी बिमारियों को भी जन्म दे रही है।

अभी गत वर्ष ही पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन तथा नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट आॅफ जिनेमिक्स एंड इंटिग्रेटेड बायोलॉजी द्वारा खुलासा किया गया कि भारत की आधी से अधिक आबादी श्वास संबंधी रोगों और फेफड़ों से जुड़ी शिकायतों से ग्रस्त हैं और प्रतिदिन तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग डॉक्टरों के पास स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों के निदान के लिए पहुंच रहे हैं।

चिकित्सकों ने यह निष्कर्ष 880 शहरों में व्यापक अध्ययन के बाद निकाला है। चिकित्सकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि देश की आबादी का 21 प्रतिशत हिस्सा हृदय रोगों, हाइपर टेंशन और उच्च रक्तचाप की चपेट में हैं। रिपोर्ट में फेफड़े की बीमारियों के अलावा दमा और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस जैसे घातक बीमारियों के मरीजों की तादाद बढ़ने का भी उल्लेख है।

साथ ही इस बात का भी जिक्र है कि विश्व की कुल 7़3 अरब की जनसंख्या के मुकाबले भारत की 1़2 अरब की आबादी में सालाना विश्व भर में होने वाली मौतों की 18 प्रतिशत मौतें भारत में होती है। संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक रिपोर्ट से यह भी उद्घाटित हो चुका है कि असंक्रामक बीमारियों (हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर) की वजह से आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2012 से 2030 के बीच इन बीमारियों के इलाज पर तकरीबन 6़2 खरब डॉलर यानी 41 लाख करोड़ रुपए खर्च होगा। यह रिपोर्ट शहरी आबादी के स्वास्थ्य से विकास पर पड़ने वाले असर पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ता शहरीकरण और वहां काम तथा जीवन शैली की स्थितियां ही इन बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2014 से 2050 के बीच में भारत में 404 मिलियन यानी 40 करोड़ 40 लाख आबादी शहरों का हिस्सा बनेगी।

आंकड़ों पर गौर करें तो देश में सालाना होने वाली कुल मौतों में से 6 प्रतिशत लोगों की मौत कैंसर से होती है। यह दुनिया भर में कैंसर से होने वाली कुल मौतों का 8 प्रतिशत है। इसी तरह भारत में 6 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। हर वर्ष तकरीबन 15 लाख लोग मधुमेह की भेंट चढ़ते हैं।

आज की तारीख में भारत की आधी से अधिक आबादी श्वास संबंधी रोगों और फेफड़ों से जुड़ी शिकायतों से ग्रस्त है। ऐसे में कहना गलत नहीं कि भारत विश्व की सर्वाधिक बीमारियों का बोझ उठाने वाले देशों में शुमार हो चुका है और अगर बीमारियों पर नियंत्रण नहीं लगा तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में भारत की पहचान एक बीमारु देश के रुप में होगी।

कैंसर, मधुमेह, हृदय, श्वास रोग और मानसिक रोगों जैसे गैर संक्रामक रोगों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए अभी तक कारगर कदम नहीं उठाए गए हैं। हालांकि इस दिशा में पार्टनरशिप टू फाइट क्रॉनिक डिजीज (पीएॅसीडी) ने हाल ही में संकल्प दिशा स्वस्थ भारत की नाम से एक राष्ट्रीय रुपरेखा तैयार की है।

इसका उद्देश्य देश में 2025 तक स्वस्थ भारत के संकल्प को हासिल करने में सहयोग देना है। चूंकि भारत में गैर संक्रामक रोगों से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं है लिहाजा ऐसे में इस ब्लू प्रिंट से राज्यों को स्वास्थ्य संबंधी मामलों को प्राथमिकता देने में मदद मिलेगी। आज जरुरत तो इस बात की है कि भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्टÑीय संस्थाएं गैर संचारी रोगों से निपटने के लिए समन्वित रुप से असरकारक कार्यक्रम तैयार करें।

-अभिजीत मोहन

 

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