क्वॉड पर रूसी चिंताओं को दूर करे भारत

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अमेरिका व रूस के साथ एक साथ संबंध कायम रखने में भारत को आगे परेशानियां आने वाली हैं। रूस, भारत का बहुत लंबे वक्त तक व विश्वस्त सहयोगी रहा है। आज भी रूस भारत के लिए चीन के साथ विवादों में अहम मध्यस्थ है। 1962 से लेकर डोकलाम विवाद हो या लद्दाख में चीनी घुसपैठ हर बार भारत ने रूस को याद किया और रूस ने भी कभी भारत को निराश नहीं किया। लेकिन इस साल भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन के रद्द हो जाने से दोनों देशों के आपसी रिश्तों में ठंडापन आने के आसार दिख रहे हैं क्योंकि पिछले 20 साल में कभी भी कोई ऐसा मौका नहीं आया जब भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन नहीं हुआ हो। दरअसल भारत जब से जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया के साथ क्वॉड समूह का हिस्सा बना है तब से रूस कुछ निराश है।

हालांकि क्वॉड समूह दक्षिण चीन सागर में अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए अस्तित्व में आया है। पिछले कई सालों से दक्षिण चीन सागर में बढ़ रहा चीनी हस्तक्षेप क्वॉड देशों को परेशान कर रहा है। आस्टेÑेलिया-जापान-अमेरिका भारत इनकी दक्षिण चीन सागर के व्यापारिक मार्ग पर काफी ज्यादा निर्भरता है। अमेरिका की चीन प्रतिद्वंदिता के चलते भारत में रूचि बढ़ रही है फिर पाकिस्तान एवं चीन के साथ तनावपूर्ण सम्बंधों के चलते अमेरिका, भारत की सुरक्षा खरीद पर भी नजर रख रहा है। चूंकि अभी तक भारत के सुरक्षा साजो सामान की आपूर्ति में रूस महत्वपूर्ण सहयोगी देश रहा है। आर्थिक उदारीकरण के दौर में अमेरिका भारत की आर्थिक साझेदारी भी बढ़ रही है, जिसके कारण रूसी हितों के प्रभावित होने की रूस को आशंकाएं हैं।

रूस की सबसे बड़ी फिक्र क्वॉड को लेकर हुई है। रूस-अमेरिका संबंध कभी भी सामान्य नहीं हो सके एवं क्वॉड को रूस अपने विरुद्ध एक अमेरिकी घेराबंदी समझ रहा है, जिसका कि भारत औपचारिक सदस्य बन चुका है। इतना ही नहीं भारत-अमेरिका के साथ हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में सैन्य अभ्यास की भी तैयारी में है हिन्द महासागर क्षेत्र में ही रूसी फ्लीट है जिस कारण भारत का बेहद महत्वपूर्ण सहयोगी रूस भारत से कहीं न कहीं दूर हो रहा है। भारत आर्थिक एवं कूटनीतिक तौर पर ‘बहुसहभागीदारी’ के सिद्धांत पर चलने की कोशिश कर रहा है।

परन्तु वर्तमान विश्व अभी भी दो शक्तियों के बीच विभक्त है, ऐसे में रूस नहीं चाहता कि विश्व में उसे कोई देश अमेरिका से कम आंके। भारत को अब रूस के साथ रक्षा कूटनीति के अलावा सांस्कृतिक, आर्थिक मामलों में संबंधों को संतुलित करने के प्रयास तेज करने होंगे। अमेरिका के उस किसी भी प्लान का हिस्सा बनने से भारत को बचना चाहिए जो रूस विरोधी है। स्पष्ट तौर पर भारत को हिंद प्रशांत महासागर में रूसी हितों की भी फिक्र करनी चाहिए। हालांकि भारत अपनी विदेश नीति में एक संप्रभु राष्टÑ है, जिसके लिए भारत को किसी से निर्देश या श्रुतलेख लेने की आवश्यकता नहीं फिर भी भारत विदेश नीति में अपने पुराने मित्रों को सम्मानजनक स्थान अवश्य दे।

 

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