रूस ने नवंबर से यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों का जमाव शुरू किया था। रूसी राष्ट्रपति पुतिन का कहना है कि इस जमाव की मुख्य वजह अमेरिकानीत सामरिक संगठन नाटो का रूस की सीमाओं तक आना है। वे इस बात से नाराज हैं कि अमेरिका और यूरोपीय देश अपने उस वादे से मुकर गये कि सोवियत संघ से अलग हुए पूर्वी यूरोप के देशों में नाटो का विस्तार नहीं होगा, पर ऐसे 14 देशों को नाटो में शामिल कर लिया गया और रूस नाटो देशों से घिरता गया। पुतिन को लगता है कि अब यूक्रेन की बारी है और फिर बेलारूस और जॉर्जिया को भी नाटो में शामिल किया जाएगा। पुतिन ने यूक्रेन को यूरोपीय संघ और नाटो में जाने से रोकने के लिए 2010 में वहां राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच की सरकार बनवायी, जो रूस समर्थक थे, लेकिन यूक्रेन के बहुसंख्यक लोग भ्रष्टाचार, तानाशाही और रूस-परस्ती से नाराज थे। वे पड़ोसी पोलैंड और रोमानिया की तरह यूरोपीय संघ में शामिल होना चाहते थे, ताकि आर्थिक विकास हो सके और लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हो सके।
क्षेत्रफल के हिसाब से यूक्रेन रूस के बाद यूरोप का सबसे बड़ा देश है। जारशाही के दौर में इसे रूस में शामिल किया गया था। यहां सत्तर प्रतिशत लोग यूक्रेनी बोलते हैं और अब रूस से आजाद लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहते हैं। बाकी लोग रूसी बोलते हैं और रूस के साथ ऐतिहासिक रिश्ते बनाये रखना चाहते हैं। कोविड की मार से चरमरायी रूसी अर्थव्यवस्था क्या अमेरिका और नाटो की ताकत के खिलाफ खड़ी रह पायेगी? हमले की सूरत में अमेरिका और यूरोप कड़ी आर्थिक पाबंदियों के साथ रूस की विदेशों में जमा पूंजी को जब्त करने की योजना भी बना रहे हैं। क्या पुतिन और उनके अमीर ओलिगार्क अपनी पूंजी से हाथ धोना चाहेंगे? नाटो के नजरिये से देखें, तो लड़ाई छिड़ने से यूरोप की गैस और तेल की आपूर्ति बंद हो जायेगी। सबसे बड़े और शक्तिशाली देश जर्मनी समेत यूरोप के कई देश रूस से आनेवाली गैस पर निर्भर हैं, जो यूक्रेन से होकर आनेवाली गैस पाइपलाइन से आती है।
गैस के दाम लड़ाई की आशंका भर से तिगुने हो चुके हैं। लड़ाई छिड़ने पर मंहगाई आसमान छूने लगेगी। इसलिए नाटो देश नहीं चाहते कि लड़ाई हो। रूस को भी लड़ाई से कोई सीधा लाभ होता नजर नहीं आता। यूक्रेन के संकट ने रूसी गैस पर आश्रित जर्मनी जैसे देशों को अपनी ऊर्जा नीति पर भी पुनर्विचार करने के लिए विवश किया है। यूक्रेन संकट से भारत को भी सीख लेनी चाहिए और अपनी तेल व गैस की निर्भरता को कम करते हुए अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने की रणनीति अपनानी चाहिए। यूक्रेन का संकट अब लड़ाई के बजाय धैर्य-परीक्षा की लड़ाई की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है। रूस का चीनी खेमे में जाना और एशिया का चीन के प्रभाव क्षेत्र में बदलना भारत-अमेरिका संबंधों के लिए भी नयी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
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