भारत भी विरासत को संभालें

India should also handle the legacy
पाकिस्तान के राज्य खैबर पख्तूनख्वा की सरकार ने भारतीय फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार व कपूर खानदान के पैतृक घरों को म्यूजियम का रूप देने का निर्णय लिया है। यह कदम हमें भी अपने कलाकारों के साथ जुड़ी विरासत को संभालने का संदेश देता है। अभी कुछ माह पूर्व ही ‘भारत रत्न’ शहनाई वादक बिस्मिल्ला खान का बनारस स्थित घर तोड़ने की खबर चर्चा में आई थी। खान के पारिवारिक सदस्य घर को तोड़कर इसे व्यापारिक इमारत बना रहे थे। संगीत प्रेमियों ने इस बात की आवाज उठाई थी कि खान के घर को संगीत की विरासत के तौर पर संभाला जाए। भले ही यह उनके परिवार का निजी मामला है लेकिन देश की विरासत को संभालने के लिए परिवार को कोई अन्य इमारत या जमीन देकर बिस्मिल्ला खान के पैतृक घर को संभाला जा सकता है।
शहनाईवादक बिस्मिल्ला खान विश्व भर में प्रसिद्ध थे। उनका घर संगीतकारों व संगीत प्रशंसकों के लिए प्रेरणास्रोत है। यह बेहद दुख की बात है कि भारत में प्रतिमाएं इतिहास तो रच देती हैं लेकिन सरकारें इतिहास को संभालने का प्रयास नहीं करती। खान साहब का घर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, जिससे राज्य को आमदनी भी होगी। शहीद भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव की शहादत को संभालने के लिए तत्कालीन भारत सरकार ने कई कदम उठाए थे। हुसैनीवाला के बदले कई गांव पाकिस्तान को देकर शहीदों से जुड़ी यादगार को देश में ऐतिहासिक बनाया गया। इतिहास और विरासत के प्रति सरकार की नीति दूरदर्शी होनी चाहिए। जिन कलाकारों ने देश की विरासत को संभाला, कम-से-कम उन कलाकारों के निधन के बाद उनकी यादों को संभालकर रखना चाहिए। इस मामले में पश्चिमी देश हमारे से बहुत आगे हैं, जिन्होंने खंडहर हो चुकी ऐतिहासिक इमारतों को विश्व के नक्शे पर पेश किया है। कई इमारतें विश्व के अजूबों में शुमार हैं। सदियों पुराने इतिहास को संभालना कुछ मुश्किल जरूर होता है लेकिन वर्तमान में जो सबकुछ सही सलामत है और जिसने एक दिन इतिहास बनना है उसकी संभाल न करना, विरासत का अपमान करना है जो आने वाली पीढ़ियों के साथ भी अन्याय है।

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